Fir dil me mere aayi yaad shahe jilani hindi kalam

फिर दिल में मेरे आई याद शाह-ए-जिलानी
फिरने लगी आंखें में वो सुरत-ए-नूरानी

मकसूद-ए-मुरीदाँ हो ऐ मुर्शिद-ए-ला-सानी
तुम क़िबला-ए-दिनी हो तुम काबा-ए-इमानी

हसनैन के सदक़े में अब मेरी ख़बर लीजिए
मुद्दत से हूँ ऐ मौला मैं वक़्फ़-ए-परेशानी

ऐ दस्त-ए-करम ही कुछ खोले तो गिरह खोले
आसानी में मुश्किल है मुश्किल में है आसानी

शाहों से भी अच्छा हूँ क्या जाने क्या क्या हूँ
हाथ आई है क़िस्मत से दर की तिरे दरबानी

सोते हैं पड़े सुख से आज़ाद हैं हर दुख से
बंदों को तिरे मौला ग़म है न परेशानी

‘बेदम’ ही नहीं ऐ जाँ तन्हा तेरा सौदाई
आ’लम तिरा शैदा है दुनिया तिरी दीवानी

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Ajj rang hai he maa rang hai ri

आज रंग है ऐ माँ रंग है री,
मेरे महबूब के घर रंग है री।
अरे अल्लाह तू है हर,
मेरे महबूब के घर रंग है री।

मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया,
निजामुद्दीन औलिया-अलाउद्दीन औलिया।
अलाउद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया,
फरीदुद्दीन औलिया, कुताबुद्दीन औलिया।
कुताबुद्दीन औलिया मोइनुद्दीन औलिया,
मुइनुद्दीन औलिया मुहैय्योद्दीन औलिया।
आ मुहैय्योदीन औलिया, मुहैय्योदीन औलिया।
वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।

अरे ऐ री सखी री,
वो तो जहाँ देखो मोरो (बर) संग है री।
मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया,
आहे, आहे आहे वा।
मुँह माँगे बर संग है री,
वो तो मुँह माँगे बर संग है री।

निजामुद्दीन औलिया जग उजियारो,
जग उजियारो जगत उजियारो।
वो तो मुँह माँगे बर संग है री।
मैं पीर पायो निजामुद्दीन औलिया।
गंज शकर मोरे संग है री।
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखयो सखी री।
मैं तो ऐसी रंग देस-बदेस में ढूढ़ फिरी हूँ,
देस-बदेस में।
आहे, आहे आहे वा,
ऐ गोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री।

सजन मिलावरा इस आँगन मा।
सजन, सजन तन सजन मिलावरा।
इस आँगन में उस आँगन में।
अरे इस आँगन में वो तो, उस आँगन में।
अरे वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।
आज रंग है ए माँ रंग है री।

ऐ तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मैं तो तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री।
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी सखी री।
ऐ महबूबे इलाही मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी।
देस विदेश में ढूँढ़ फिरी हूँ।
आज रंग है ऐ माँ रंग है ही।
मेरे महबूब के घर रंग है री।

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Quotes By Hazrat Ali In Hindi

1-तुम्हे हुक्म दिया गया है की तुम अल्लाह की आज्ञा का पालन करो,
और तुम्हे इसलिए बनाया गया है ताकि तुम अच्छे कर्म करो….

2- अगर इन्सान को तकब्बुर (घमंड) के बारे में,
अल्लाह की नाराज़गी का इल्म हो जाए तो
बंदा सिर्फ फकीरों और गरीबों से मिले और मिट्टी पर बैठा करे….

3-ज्यादा बोलने से बचो,
क्योंकि इससे गलत बात बोलने और लोगो के आप से बोर हो जाने का डर रहता है

4-आँखों के आंसू दिल की सख्ती की वजह से सूख जातें हैं,
और दिल बार बार गुनाह करने की वजह से सख्त हो जाता है…

5-चुगली करना उसका काम होता है,
जो अपने आप को बेहतर बनाने में असमर्थ होता है….

6-इन्सान भी कितना अजीब है,
की जब वह किसी चीज़ से डरता है तो वह उससे दूर भागता है,
लेकिन यदि वह अल्लाह से डरता है तो उसके और करीब हो जाता

7-कभी भी किसी के पतन को देखकर खुश मत हो,
क्युकी तुम्हे पता नहीं है भविष्य में तुम्हारे साथ क्या होने वाला है

8- सूरत सीरत बगैर के एक ऐसा फूल है,
जिसमे कांटे ज्यादा हो और खुशबू बिलकुल न हो

9- आज का इन्सान सिर्फ दोलत को खुशनसीबी समझता है,
और ये ही उसकी बदनसीबी है

10-तुम सिर्फ अपने खुदा से उम्मीद रखो,
और किसी से मत डरो सिवाय अपने गुनाहों के

11-खालिक से मांगना शुजाअत है,
अगर दे तो रहमत और न दे तो हिकमत.
मखलूक से मांगना जिल्लत है अगर दे तो एहसान और ना दे तो शर्मिंदगी

12-तुम्हारा एक रब है फिर भी तुम उसे याद नहीं करते,
लेकिन उस के कितने बन्दे हैं फिर भी वह तुम्हे नहीं भूलता

13-एक अच्छी रूह और दयालु ह्रदय को कोई चीज़ इतनी दुःख नहीं पहुंचाती,
जितना उन लोगों के साथ रहना जो उसे नहीं समझ सकते

14-शिष्टाचार अच्छा व्यवहार करने में कुछ खर्च नहीं होता,
पर यह सबकुछ खरीद सकता है

15- अपनी सोच को पानी के कतरों से भी ज्यादा साफ रखो,
क्योंकी जिस तरह कतरों से दरिया बनता है उसी तरह सोच से इमान बनता है

16- सम्मान पूर्वक साफगोई से मना कर देना,
एक बड़े और झूठे वादे से बेहतर होता है

17-बात तमीज़ से और एतराज़ दलील से करो क्योंकी,
जबान तो हैवानों में भी होती है,
मगर वह इल्म और सलीके से महरूम होते हैं ….

18-उस व्यक्ति को कभी सुकून नहीं मिलता जो इर्ष्या करता है,
और उसे कोई व्यक्ति प्रेम नहीं करता जिसका ख़राब व्यवहार होता है

19-प्यास न हो तो पानी की कोई कीमत नहीं होती है,
मौत नहीं होती तो ज़िन्दगी की कोई कीमत नहीं होती.
और विश्वास ना हो तो दोस्ती की कोई कीमत नहीं होती…..

20-सोने और चांदी की हिफाज़त करने के बजाए,
अपनी जबान की हिफाज़त करो

21- जब तुम बीमार हो जाओ तो इससे घबराओ मत,
और जितना अधिक हो सके उतना आशावान बने रहो.

22-जब दुनिया आपको घुटनों के बल गिरा देती है तब,
आप प्रार्थना करने की सर्वोत्तम स्तिथी में होते हैं

23-महान व्यक्ति का सबसे अच्छा काम होता है,
माफ़ कर देना और भुला देना…

24-अगर किसी का तरफ आज़माना हो तो उसको ज्यादा इज्जत दो ,
वह आला तरफ हुआ तो आपको और ज्यादा इज्ज़त देगा,
और कम तरफ हुआ तो खुद को आला समझेगा

25-मुश्किलों की वजह से चिंता में मत डूबा करो,
सिर्फ बहुत अंधियारी रातों में ही सितारे ज्यादा तेज़ चमकते हैं..

26-ज़िन्दगी में दो तरह के दिन आतें हैं ,
एक जिसमे आप जीतते हैं,और दूसरा वो दिन जो आपके खिलाफ जाता है.
तो जब तुम्हारी जीत हो तो घमंड मत करो और जब चीज़ें तुम्हारे खिलाफ जाएँ तो सब्र करो.
दोनों ही दिन तुम्हारे लिए परीक्षा हैं

27-निश्चित रूप से ख़ामोशी,
कभी कभी भावपूर्ण जवाब हो सकती है.

28-ईमानदारी तुम्हे अच्छाई की तरफ ले जाती है,
और अच्छाई तुम्हे स्वर्ग (जन्नत) की दावत देती है

29-लफ्ज़ आपके गुलाम होतें हैं मगर सिर्फ बोलने से पहले तक,
बोलने के बाद इन्सान अपने अल्फाज़ का गुलाम बन जाता है,
एक शब्द अपमान कर सकता है और आपके सुख को समाप्त कर सकता है.

30-अगर इन्सान को तकब्बुर (घमंड) के बारे में,
अल्लाह की नाराज़गी का इल्म हो जाए तो
बंदा सिर्फ फकीरों और गरीबों से मिले और मिट्टी पर बैठा करे

31-सूरत और सीरत (चरित्र) में सबसे बड़ा फर्क ये हैं की
सूरत धोखा देती है जबकि सीरत पहचान करवाती है.

32-अक़्लमंद अपने आप को नीचा रखकर बुलंदी हासिल करता है,
और नादान अपने आप को बड़ा समझकर ज़िल्लत उठाता है

33-कम खाने में सेहत है,
कम बोलने में समझदारी है और कम सोना इबादत है….

34-जिसकी अमीरी उसके लिबास में हो वो हमेशा फ़कीर रहेगा
और जिसकी अमीरी उसके दिल में हो वो हमेशा सुखी रहेगा

35-जिसको तुमसे सच्चा प्रेम होगा,
वह तुमको व्यर्थ और नाजायज़ कामों से रोकेगा

36-इन्सान का अपने दुश्मन से इन्तकाम का सबसे अच्छा तरीका ये है,
कि वो अपनी खूबियों में इज़ाफा कर दे…

37-इंसान मायूस और परेशान इसलिए होता है,
क्योंकि वो अपने रब को राज़ी करने के बजाये.
लोगों को राज़ी करने में लगा रहता है

38-हमेशा समझोता करना सीखो.
क्यूंकि थोडा सा झुक जाना किसी रिश्ते का हमेशा के लिए टूट जाने से बेहतर है…

39-अपने जिस्म को ज़रूरत से ज़्यादा न सवारों,
क्योंकि इसे तो मिट्टी में मिल जाना है,
सवॉरना है तो अपनी रूह को सवॉरों क्योंकि इसे तुम्हारे रब के पास जाना है

40-जो इनसान सजदो मे रोता है,
उसे तक़दीर पर रोना नहीं पड़ता..

41-इंसान की ज़ुबान उसकी अक्ल का पता देती है.
और आदमी अपनी ज़ुबान के नीचे छुपा होता है

42- हमेशा ज़लिमो का दुश्मन,
और मज़लूमो का मददगार बन कर रहन

43-अगर कोई शख्स अपनी भूख मिटाने के लिए रोटी चोरी करे तो,
चोर के हाथ काटने के बजाए बादशाह के हाँथ काटे जाए

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madrase mein aashiqon ke jis ki bismillah ho

मदरसे में आशिक़ों के जिस की बिस्मिल्लाह हो
उस का पहला ही सबक़ यारो फ़ना फ़िल्लाह हो

ये सबक़ तूलानी ऐसा है कि आख़िर हो न हो
बे-निहायत को निहायत कैसे या-रब्बाह हो

दूसरा फिर हो सबक़ इल्मुल-फ़ना का इंतिफ़ा
या’नी उस अपनी फ़ना से कुछ न वो आगाह हो

दौड़ आके तब चले जब जोड़ पीछे हो मदद
उस दक़ीक़े को वही पहुँचे जो हक़ आगाह हो

तीसरा उस का सबक़ है फिर के आना इस तरफ़
अब बक़ा बिल्लाह हासिल उस को ख़ातिर-ख़्वाह हो

वो भी आजिज़ हो गए मुश्किल है जिन का रब्त-ओ-ज़ब्त
हाफ़िज़-ओ-मुल्ला यहाँ पर कब दलील-ए-राह हो

हज़रत-ए-इश्क़ आप होवें गर मुदर्रिस चंद रोज़
फिर तो इल्म-ए-फक़्र की तहसील ख़ातिर-ख़्वाह हो

इक तवज्जोह आप की वाफ़ी-ओ-काफ़ी है हमें
कैसा ही क़िस्सा हो तूलानी तो वो कोताह हो

ऐ ‘नियाज़’ अपने तो जो कुछ हो तुम्हीं हो बस फ़क़त
हज़रत-ए-इश्क़ आप हो और आप दामल्लाह हो

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Meri Jaan Ho Jigar Ho Dil Ho Kya Batlao Kya Tum Ho sufi kalaam

मेरी जान हो जिगर हो दिल हो क्या बतलाओ क्या तुम हो
बशर हो या खुदा हो कौन हो बतलाओ क्या तुम हो

मेरे दिल से कोई पूछे के कैसे दिलरुबा तुम हो
हसीन हो माह-ए-रु हो और सर्तपा आता तुम हो

मेरा मारना है के बेजा क्यू के पक्के पारसा तुम हो
कसम खाओ नही हरगिज़ किसी पे मुब्तेला तुम हो

जफ़ा’न पे नाज़ पे ग़मज़ा पे शौकी’न पे शरारत पे
मेरा दिल जिसकी हर क़ाफ़िर अदा पे आ गया तुम हो

तुम्हारा ही मैं बंदा हूँ तुम्ही पर जान देता हूँ
ना कोई दिलरुबा मेरा अगर हो आशना तुम हो

तुम्हारे देखने से दर्द-ए-दिल तस्कीन पाता है
यक़ीनन अपने बीमार-ए-मोहब्बत की दवा तुम हो

तुम्हे क़त्ल की ख्वाहिश मुझे है शौक मरने का
हिला दो खंजर-ए-आबरू अगर मुझसे खफा तुम हो

समझ के राम को अल्लाह बिस्मिल मिट गये उस पे
दागाह बाज़ो के क़िब्ला-गाह हो या परसा तुम हो

कलाम-ए-बिस्मिल

~ हज़रत सूफ़ी मोहॅमेड इफ़्तेखार उल हक़
सिडईक्वी मुजीबी रहमानी रज़्ज़क़ी क़ाद्री चिश्ती नक़्शबंदी सोहारवर्दी मुजद्डिडी नईमी

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Ye bill yaki hussain hai nabi ka noor-e-ain hai

यह कौन ज़ी वक़ार है, बला का शह सवार है
के है हज़ारों कातिलों के सामने डटा हुआ

यह बिल यक़ीं हुसैन है नबी का नूर ए ऐन है
हुसैन है हुसैन है नबी का नूर ए ऐन है

यह कौन हक़-परस्त है, मय-ए रज़ा ए मस्त है
के जिसके सामने कोई बुलंद है न पस्त है
उधर हज़ार घात है, मगर अजीब बात है
के एक से हज़ार का भी हौसला शिकस्त है

यह बिल यक़ीं हुसैन है नबी का नूर ए ऐन है
हुसैन है हुसैन है नबी का नूर ए ऐन है

हुसैन जिसकी सदा ला इलाहा इलल्लाह
हुसैन जिसकी अदा ला इलाहा इलल्लाह
हुसैन जिसकी सना ला इलाहा इलल्लाह
हुसैन जिसकी दुआ ला इलाहा इलल्लाह

जो दहकती आग के शोलों पे सोया वो हुसैन
जिसने अपने ख़ून से आ़लम को धोया वो हुसैन
जो जवां बेटे की मैय्यत पर न रोया वो हुसैन
जिसने सब कुछ खो के फिर भी कुछ न खोया वो हुसैन

रस्म-ए उश्शाक़ यही है के वफ़ा करते हैं
य़ानी हर हाल में हक़ अपना अदा करते हैं
हौसला हज़रत-ए शब्बीर का अल्लाह अल्लाह
सर जुदा होता है और शुक्र-ए ख़ुदा करते हैं

दिलावरी में फ़र्द है बड़ा ही शेर मर्द है
के जिसके दबदबे से रंग दुश्मनों का ज़र्द है
हबीब ए मुस्तफा है ये मुजाहिद ए ख़ुदा है ये
जभी तो इसके सामने यह फौज गर्द गर्द है

यह बिल यक़ीं हुसैन है नबी का नूर ए ऐन है
हुसैन है हुसैन है नबी का नूर ए ऐन है

ईमान की तौक़ीर कहा जाता है
क़ुरआन की तफ़्सीर कहा जाता है
बातिल के सामने जो कभी झुक न सकी
उस ज़ात को शब्बीर कहा जाता है

उधर सिपाह-ए शाम है हज़ार इन्तिज़ाम
उधर हैं दुश्मनान-ए दीं इधर फ़क़त इमाम है
मगर अ़जीब शान है ग़जब की आन-बान है
के जिस तरफ़ उठी है तेग़ बस ख़ुदा का नाम है

यह जिसकी एक ज़र्ब से, कमाल ए फ़न-ए ह़र्ब से
कई शकी गिरे हुए तड़प रहे हैं कर्ब से
गजब है तेग़-ए दो सिरा के एक एक वार पर
उठी सदा ए अलअमा ज़बान-ए शर्क़ ओ ग़र्ब से

अ़बा भी तार तार है, तो जिस्म भी फ़गार है
ज़मीन भी तपी हुई, फलक भी शोला बार है
मगर ये मर्द-ए तेग़ज़न, ये सफ़ शिकन, फ़लक फ़िगन
कमाल-ए सब्र ओ तन दिही से मह्व-ए कारज़ार है

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Ameer Khusro Farsi Kalam

ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँ
कि ताब-ए-हिज्राँ न-दारम ऐ जाँ न लेहू काहे लगाए छतियाँ

शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़ ओ रोज़-ए-वसलत चूँ उम्र-ए-कोताह
सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ

यकायक अज़ दिल दो चश्म जादू ब-सद-फ़रेबम ब-बुर्द तस्कीं
किसे पड़ी है जो जा सुनावे पियारे पी को हमारी बतियाँ

चूँ शम-ए-सोज़ाँ चूँ ज़र्रा हैराँ ज़े-मेहर-ए-आँ-मह ब-गश्तम आख़िर
न नींद नैनाँ न अंग चैनाँ न आप आवे न भेजे पतियाँ

ब-हक़्क़-ए-आँ-मह कि रोज़-ए-महशर ब-दाद मा रा फ़रेब ‘ख़ुसरव’
सपीत मन के दुराय राखूँ जो जाए पाऊँ पिया की खतियाँ

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khuda jane jalwa-e-jana kaha tak hai

क़फ़स की तीलियों से ले के शाख़-ए-आशियाँ तक है
मिरी दुनिया यहाँ से है मिरी दुनिया वहाँ तक है

ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक है
ख़ुदा जाने हमारे इश्क़ की दुनिया कहाँ तक है

ख़ुदा जाने कहाँ से जल्वा-ए-जानाँ कहाँ तक है
वहीं तक देख सकता है नज़र जिस की जहाँ तक है

कोई मर कर तो देखे इम्तिहाँ-गाह-ए-मोहब्बत में
कि ज़ेर-ए-ख़ंजर-ए-क़ातिल हयात-ए-जावेदाँ तक है

नियाज़-ओ-नाज़ की रूदाद-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का क़िस्सा
ये जो कुछ भी है सब उन की हमारी दास्ताँ तक है

क़फ़स में भी वही ख़्वाब-ए-परेशाँ देखता हूँ मैं
कि जैसे बिजलियों की रौ फ़लक से आशियाँ तक है

ख़याल-ए-यार ने तो आते ही गुम कर दिया मुझ को
यही है इब्तिदा तो इंतिहा उस की कहाँ तक है

जवानी और फिर उन की जवानी ऐ मआज़-अल्लाह
मिरा दिल क्या तह-ओ-बाला निज़ाम-ए-दो-जहाँ तक है

हम इतना भी न समझे अक़्ल खोई दिल गँवा बैठे
कि हुस्न-ओ-इश्क़ की दुनिया कहाँ से है कहाँ तक है

वो सर और ग़ैर के दर पर झुके तौबा मआज़-अल्लाह
कि जिस सर की रसाई तेरे संग-ए-आस्ताँ तक है

ये किस की लाश बे-गोर-ओ-कफ़न पामाल होती है
ज़मीं जुम्बिश में है बरहम निज़ाम-ए-आसमाँ तक है

जिधर देखो उधर बिखरे हैं तिनके आशियाने के
मिरी बर्बादियों का सिलसिला या-रब कहाँ तक है

न मेरी सख़्त-जानी फिर न उन की तेग़ का दम-ख़म
मैं उस के इम्तिहाँ तक हूँ वो मेरे इम्तिहाँ तक है

ज़मीं से आसमाँ तक एक सन्नाटे का आलम है
नहीं मालूम मेरे दिल की वीरानी कहाँ तक है

सितमगर तुझ से उम्मीद-ए-करम होगी जिन्हें होगी
हमें तो देखना ये था कि तू ज़ालिम कहाँ तक है

नहीं अहल-ए-ज़मीं पर मुनहसिर मातम शहीदों का
क़बा-ए-नील-गूँ पहने फ़ज़ा-ए-आसमाँ तक है

सुना है सूफ़ियों से हम ने अक्सर ख़ानक़ाहों में
कि ये रंगीं-बयानी ‘बेदम’-ए-रंगीं-बयाँ तक है

क़फ़स की तीलियों से ले के शाख़-ए-आशियाँ तक

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mai gash me ho muhe nhi hosh

में ग़श में हूँ मुझे इतना नहीं होश
तसव्वुर है तिरा या तू हम-आग़ोश

जो नालों की कभी वहशत ने ठानी
पुकारा ज़ब्त बस ख़ामोश ख़ामोश

किसे हो इम्तियाज़-ए-जल्वा-ए-यार
हमें तो आप ही अपना नहीं होश

उठा रक्खा है इक तूफ़ान तू ने
अरे क़तरे तिरा अल्लाह-रे जोश

मैं ऐसी याद के क़ुर्बान जाऊँ
किया जिस ने दो-आलम को फ़रामोश

है बेगानों से ख़ाली ख़ल्वत-ए-राज़
चले जाएँ न अब आएँ मिरे होश

करो रिंदो गुनाह-ए-मय-परस्ती
कि साक़ी है अता-पाश ओ ख़ता-पोश

तिरे जल्वे को मूसा देखते क्या
नक़ाब उठने से पहले उड़ गए होश

करम भी उस का मुझ पर है सितम भी
कि पहलू में है ज़ालिम और रू-पोश

पियो तो ख़ुम के ख़ुम पी जाओ ‘बेदम’
अरे मय-नोश हो तुम या बला-नोश

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dil liya jaan li nhi jati Urdu ghazal | hindi Ghazal – ghazal

दिल लिया जान ली नहीं जाती
आप की दिल-लगी नहीं जाती

सब ने ग़ुर्बत में मुझ को छोड़ दिया
इक मिरी बेकसी नहीं जाती

किए कह दूँ कि ग़ैर से मिलिए
अन-कही तो कही नहीं जाती

ख़ुद कहानी फ़िराक़ की छेड़ी
ख़ुद कहा बस सुनी नहीं जाती

ख़ुश्क दिखलाती है ज़बाँ तलवार
क्यूँ मिरा ख़ून पी नहीं जाती

लाखों अरमान देने वालों से
एक तस्कीन दी नहीं जाती

जान जाती है मेरी जाने दो
बात तो आप की नहीं जाती

तुम कहोगे जो रोऊँ फ़ुर्क़त में
कि मुसीबत सही नहीं जाती

उस के होते ख़ुदी से पाक हूँ मैं
ख़ूब है बे-ख़ुदी नहीं जाती

पी थी ‘बेदम’ अज़ल में कैसी शराब
आज तक बे-ख़ुदी नहीं जाती

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