Bu Ali Shah Sufism Kalam

ज़हे-हुसने कि रू-ए-यार दारद
कि दर आग़ोश सद गुलज़ार दारद

सर-ए-ज़ुल्फ़श कि मस्त-ओ-ला-उबाली
कमीँ-गाह-ए-दिल-ए-हुश्यार दारद

बसे मर्दां ज़े-कार उफ़्तादः बीनी
बदाँ चश्मे कि ऊ बीमार दारद

हर आँ सत्रे के बर रूयश नविश्तन्द
हज़ाराँ मानी-ओ-असरार दारद

दिलम दर याद-ए-मिज़्गानत चुनाँ अस्त
कि मी-ख़्वाहद सरे बर दार दारद

‘शरफ़’ दर इश्क़-ए-ऊ गश्त आँ ‘क़लन्दर’
कि हफ़्ताद-ओ-दो-मिल्लत यार दारद