mera noor tu hain

पनाह मेरी यार मेरे, शौक की फटकार मेरे,
मालिको मौला भी हो, और हो पहरेदार मेरे

नूह तू ही रूह तू ही, कुरंग तू ही तीर तू ही,
आस ओ उम्मीद तू है, ग्यान के दुआर मेरे

नूर तू है सूर तू, दौलते-मन्सूर तू,
बाजेकोहेतूर तू, मार दिए ख़राश मेरे ।

कतरा तू दरिया तू, गुंचा-ओ-खार तू,
शहद तू ज़हर तू, दर्द दिए हज़ार मेरे ।

सूरज का घरबार तू, शुक्र का आगार तू,
आस का परसार तू, पार ले चल यार मेरे ।

रोज़ तू और रोज़ा तू, मँगते की खैरात तू,
गागरा तू पानी तू, लब भिगो इस बार मेरे ।

दाना तू ओ जाल तू, शराब तू ओ जाम तू,
अनगढ़ तू तैयार तू, ऐब दे सुधार मेरे ।

न होते बेखुदी में हम, दिल में दर्द होते कम,रा
ह अपनी चल पड़े तुम, सुने कौन आलाप मेरे

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Roza Nhi Totta

रोज़ा न तोड़ने वाली चीज़ें

वह चीज़ें जिनसे रोज़ा नहीं टूटता और ना ही मकरूह होता है कौन कौन सी हैं?

१- ताज़ा मिस्वाक करना

२- सर या मूंछो पैर तेल लागाना

३- इंजेक्शन या टीका लगवाना

४- आँख में दवा डालना या सुरमा लागाना

५- खुशबु लगाना

६- गर्मी और प्यास की वजह से ग़ुस्ल करना अगरचे पानी की ठंडक जिस्म के अंदर महसूस हो

७- भूल कर खा पि लेना या भूल कर सोहबत करना

८- हलक़ में बिला अख्त्यार धुंवा या मक्खी मच्छर का चला जाना

९.खुद बा खुद के (वोमिटिंग) हो जाना चाहे कितनी ही हो

१०. सोते हुए एहतलाम हो जाना

११- दांतो में खून आये मगर हलक़ में न जाएँ

१२-डकार आना जिस की वजह से खाने का मज़ा हलक़ में महसूस होना

१३. फूल या इत्र की खुशबु सूँघना

१४.भीगा हुवा रुमाल सर पर लपेटना

१५.बीमारी की वजह से गुलूकोज़ ब्लड चढांए

१६. ऑक्सीज़न लेना

१७.नाक ज़ोर से सिदकना-खींचना जिस की वजह से हलक़ में चली जाएँ

१८.राल टपकने को हो तो उसे मुंह में खिंच लेना

१९.थूक बलगम निगलना

२०.पान खाने के बाद कुल्ली और गर्गरा किया लेकिन उस की सुर्खी-लालश मुंह में बाक़ी रह गई जिस का असर थूक के साथ हलक़ में जाना

२१.बिला इख़्तितार खुद बा खुद लोबान या दवाई के छंटकाव का धुंवा हलक़ या नाक में जाना

२२.कुल्ली करने के बाद पानी का असर-तरी का हलक़ में जाना

२३.बाम या क्रीम लागाना

२४.बदनिगाही या बदख्याली की वजह से मज़ी का निकलना

२५.कमज़ोर आदमी का बीवी को बुरी नज़र से देखने या बीवी से सोहबत के तसव्वुर की वजह से इंज़ाल-मनी का निकल जाना. अगर गैर महरम तस्वीर या फिल्म देखने से इंज़ाल हो तो इस गुनाह से रोज़ा मकरूह होग

२६. बीवी का बोसा लेना

२७.मिस्वाक करना जिस का मज़ा भी ज़ुबान पर महसूस हो

२८.ज़ेरे नाफ या बगल के बाल काटना

२८.हार्ट की बीमारी में ज़बान के निचे गोली रखना बशर्ते के उस का दवाई के अजज़ा लुआब-थूक के साथ हलक़ में न जाये.

२९.खून टेस्ट कराना

३०.डायलिसिस कराना

३१.जनाबत की हालत में सहरी करना और सुबह सादिक़ के बाद ग़ुस्ल करना

३२.नहाते हुवे बारिश में भीगते हुवे या तैरते हुवे बिला इख़्तियार पानी कान में चला जाना

३३.कान से मेल निकलना चाहे उस के लिए सलाई कितनी ही मर्तबा कान में डालनी पडे

३४.गर्डो गुबार-धूल मिटटी का बिला इख़्तियार हलक़ या नाक में दाखिल हो जाना

३५.पीछे के रस्ते में मस्से पर या ज़ख़्म पर दवाई लागाना

३६.सहरी का वक़्त ख़त्म होने का ऐलान या रोज़े के टाइम टेबल के वक़्त बाद भी खाते रहा लेकिन सुबह सादिक़ से पहले रुक गया, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए, इस में रोज़ा फ़ासिद होने का खतराः है

📗किताबुल मसाइल २/सफा ७७ से ८४ का खुलासा

मसाइल रोज़ा (रफत) ५९ से ७० का खुलासा.

*🌙इस्लामी तारीख़*🗓

०4~रमज़ानुल~मुबारक~१४४०~हिज़री

✍🏻मुफ़्ती इमरान साहब सुरती

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Hazrat Shaikh Abdul Qadir Jilani

Hazrat Sheikh Abdul Qadir Jilani (Rehmatullah Alaih) Farmate Hai –

“Shirk Sirf Boot Parsti Hi Nahi Hai Balki Nafsani Khwahishat Ki Pairwi Aur Duniya Ki Kisi Bhi Chiz Ke Sath Ishq Ki Kefiyat Se Munsalik Ho Jana Ye Sarahatn Shirk Hai,

Khuda Ke Siwa Har Chiz Gaire Khuda He Aur Har Gaire Khuda Ki Khwahish Shirk Hai,

Lihaza Is Se Parhez Karo .

Apne Nafs Ki Buraiyyo Se Darte Raho, Haq Ki Talash Me Koshish Karte Raho, Gaflat Ki Zindgi Ko Apna Shiaar Na Banawo ..

Musalman Kabhi Gafil Nahi Rehta…

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Ye Shaki Ki karamat hai ya faize mai parasti hai

ये साक़ी की करामत है कि फ़ैज़-ए-मय-परस्ती है
घटा के भेस में मय-ख़ाने पर रहमत बरसती है

ये जो कुछ देखते हैं हम फ़रेब-ए-ख़्वाब-ए-हस्ती है
तख़य्युल के करिश्मे हैं बुलंदी है न पस्ती है

वहाँ हैं हम जहाँ ‘बेदम’ न वीराना न बस्ती है
न पाबंदी न आज़ादी न हुश्यारी न मस्ती है

तिरी नज़रों पे चढ़ना और तिरे दिल से उतर जाना
मोहब्बत में बुलंदी जिस को कहते हैं वो पस्ती है

वही हम थे कभी जो रात दिन फूलों में तुलते थे
वही हम हैं कि तुर्बत चार फूलों को तरसती है

करिश्मे हैं कि नक़्काश-ए-अज़ल नैरंगियाँ तेरी
जहाँ में माइल-ए-रंग-ए-फ़ना हर नक़्श-ए-हस्ती है

इसे भी नावक-ए-जानाँ तू अपने साथ लेता जा
कि मेरी आरज़ू दिल से निकलने को तरसती है

हर इक ज़र्रे में है इन्नी-अनल्लाह की सदा साक़ी
अजब मय-कश थे जिन की ख़ाक में भी जोश-ए-मस्ती है

ख़ुदा रक्खे दिल-ए-पुर-सोज़ तेरी शोला-अफ़्शानी
कि तू वो शम्अ है जो रौनक़-ए-दरबार-ए-हस्ती है

मिरे दिल के सिवा तू ने भी देखी बेकसी मेरी
कि आबादी न हो जिस में कोई ऐसी भी बस्ती है

हिजाबात-ए-तअय्युन माने-ए-दीदार समझा था
जो देखा तो नक़ाब-ए-रू-ए-जानाँ मेरी हस्ती है

अजब दुनिया-ए-हैरत आलम-ए-गोर-ए-ग़रीबाँ है
कि वीराने का वीराना है और बस्ती की बस्ती है

कहीं है अब्द की धुन और कहीं शोर-ए-अनल-हक़ है
कहीं इख़्फ़ा-ए-मस्ती है कहीं इज़हार-ए-मस्ती है

बनाया रश्क-ए-महर-ओ-मह तिरी ज़र्रा-नवाज़ी ने
नहीं तो क्या है ‘बेदम’ और क्या ‘बेदम’ की हस्ती है

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Hazrat Maula Ali Ka Farman

मुश्किलतरीन काम बहतरीन लोगों के हिस्से में आते हैं.
क्योंकि वो उसे हल करने की सलाहियत रखते हैं “

“कम खाने में सेहत है, कम बोलने में समझदारी है और कम सोना इबादत है”

कभी तुम दुसरों के लिए दिल से दुवा मांग कर देखो
तुम्हें अपने लिए मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी ..

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Maula Ali Ka Farman

जब तुम्हरी मुख़ालफ़त हद से बढ़ने लगे,
तो समझ लो कि अल्लाह तुम्हें कोई मुक़ाम देने वाला है

झूठ बोलकर जीतने से बेहतर है सच बोलकर हार जाओ।
सब्र को ईमान से वो ही निस्बत है जो सिर को जिस्म से है.

दौलत, हुक़ूमत और मुसीबत में आदमी के अक्ल का इम्तेहान होता है
कि आदमी सब्र करता है या गलत क़दम उठता है.

सब्र एक ऐसी सवारी है जो सवार को अभी गिरने नहीं देती।

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Aina kyu Na do

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे

ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे

हसरत ने ला रखा तिरी बज़्म-ए-ख़याल में

गुल-दस्ता-ए-निगाह सुवैदा कहें जिसे

फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा

अफ़्सून-ए-इंतिज़ार तमन्ना कहें जिसे

सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी से डालिए

वो एक मुश्त-ए-ख़ाक कि सहरा कहें जिसे

है चश्म-ए-तर में हसरत-ए-दीदार से निहाँ

शौक़-ए-इनाँ गुसेख़्ता दरिया कहें जिसे

दरकार है शगुफ़्तन-ए-गुल-हा-ए-ऐश को

सुब्ह-ए-बहार पुम्बा-ए-मीना कहें जिसे

‘ग़ालिब’ बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे

ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे

या रब हमें तो ख़्वाब में भी मत दिखाइयो

ये महशर-ए-ख़याल कि दुनिया कहें जिसे

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Farmane Hazrat Ali

किसी की बेबसी पे मत हंसो ये वक़्त तुम पे भी आ सकता है
इन्सान का अपने दुश्मन से इन्तकाम का सबसे अच्छा तरीका ये है
कि वो अपनी खूबियों में इज़ाफा कर दे !!

रिज्क के पीछे अपना इमान कभी खराब मत करो” क्योंकि नसीब का
रीज़क इन्सान को ऐसे तलाश करता है जैसे मरने वाले को मौत

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