Category: Bedam Shah Warsi
फिर दिल में मेरे आई याद शाह-ए-जिलानी
फिरने लगी आंखें में वो सुरत-ए-नूरानी
मकसूद-ए-मुरीदाँ हो ऐ मुर्शिद-ए-ला-सानी
तुम क़िबला-ए-दिनी हो तुम काबा-ए-इमानी
हसनैन के सदक़े में अब मेरी ख़बर लीजिए
मुद्दत से हूँ ऐ मौला मैं वक़्फ़-ए-परेशानी
ऐ दस्त-ए-करम ही कुछ खोले तो गिरह खोले
आसानी में मुश्किल है मुश्किल में है आसानी
शाहों से भी अच्छा हूँ क्या जाने क्या क्या हूँ
हाथ आई है क़िस्मत से दर की तिरे दरबानी
सोते हैं पड़े सुख से आज़ाद हैं हर दुख से
बंदों को तिरे मौला ग़म है न परेशानी
‘बेदम’ ही नहीं ऐ जाँ तन्हा तेरा सौदाई
आ’लम तिरा शैदा है दुनिया तिरी दीवानी
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आदम से लायी है हस्ती मे. आरज़ू-ए-रसूल
कहाँ कहाँ लिए फिरती है जुस्त्तजु-ए-रसूल
ख़ुशा वो दिल की हो जिस दिल मे आरज़ू-ए-रसूल
खुश वो आँख जो हो महवे-ए-हुस्न-ए-रुए-रसूल
तलाश-ए-नक़्श-ए-काफये-पा-ए-मुस्तफ़ा की क़सम
चुने है आखो से ज़रराटे-ए-ख़ाके क़ुए-ए-रसूल
फिर उन के नशा-ए-इरफ़ान का पुछना क्या है
जो पी चुके हैं अजल में माय सुब्बू-ए-रसूल
बलाए लू तेरी ऐ जज्ब-ए-शौक-ए-सल्ली-आला
की आज दमन-ए-दिल खिंच रहा है सू-ए-रसूल
शगुफ्ता गुलशन-ए-जहरा का हर गुल-ए-तर है
किसी में रंग-ए-अली और किसी में बू-ए-रसूल
अजब तमाशा हो मैदान-ए-हशर में ‘बेदम’
की सब हो पेश-ए-खुदा और मैं रु-ब-रु-ए-रसूल
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कास्ती-ए-दिल के ना खुदा सल्ले-अला-मोहम्मद
नुहे बनी के पेशबा सल्ले-अला-मोहम्मद
माहा-बा-शो के मैयलका अहेले दिलो के दिल-रूबा
रूही फिदा एक मरहबा सल्ल्ले-अल्ला-मोहम्मद
अहमद अहद के राज़ का मीम ही पर्दा दार था
आप मे आप था छुपा सल्ले-अला-मोहम्मद
खुद ही बुलाया खुद ही गया बनके क़लीम तूर पर
खुद ही गॅश आया बोल उठा सल्ले-अला-मोहम्मद
करती है शोर बुल-बुले, नगमा सारा है कुमरिया
धूम पढ़ी है जां-वा-जान सल्ले-अला-मोहम्मद
बेदम खुस्ता तन से आज देखा चमन मे माजरा
बर्ग को गुल ने दी सदा सल्ले-अला-मोहम्मद
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आई नसीम-ए- कूए मुहम्मद
सल्ल-लल-लाहो आलैहे वस्लम |
खिचने लगा दिल सू-ए-मुहम्मद
सलल्ला हो अलैही वसल्लम |
ऐ सबा क्या याद फरमाया है
आका ने मुझे सुये मोहम्मद |
काबा हमारा कुये मोहम्मद
सलल्ला हो अलैही वसल्लम |
मिद-हते ईमां रु-ए-मोहम्मद
सलल्ला हो अलैही वसल्लम |
तूबा की जानिब तकने वालों
आँखे खोलो होश संभालो |
देखूँ क़द ए दिल जुये मोहम्मद
सलल्ला हो अलैही वसल्लम |
नाम इसी का बाबे करम है।
देखो यही मेहरबे हरम है
देखो ख़म ए अबरू-ए मोहम्मद
सलल्ला हो अलैही वसल्लम
खैरुल बशर खैरुल वरा
सल्ले अला सल्ले अला
शम्स-उद दुहा बदरुद दुजा
सल्ले अला सल्ले अला
हम सब का रुख़ सू-ए काबा,
सू-ए मोहम्मद रू-ए काबा
काबे का काबा कू-ए मोहम्मद
सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम
भीगी भीगी खुशबु लेहकी
बेदम दिल की दुनिया महकी
खुल गए जब गेसुये मोहम्मद
सलल्ला हो अलैही वसल्लम
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क़फ़स की तीलियों से ले के शाख़-ए-आशियाँ तक है
मिरी दुनिया यहाँ से है मिरी दुनिया वहाँ तक है
ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक है
ख़ुदा जाने हमारे इश्क़ की दुनिया कहाँ तक है
ख़ुदा जाने कहाँ से जल्वा-ए-जानाँ कहाँ तक है
वहीं तक देख सकता है नज़र जिस की जहाँ तक है
कोई मर कर तो देखे इम्तिहाँ-गाह-ए-मोहब्बत में
कि ज़ेर-ए-ख़ंजर-ए-क़ातिल हयात-ए-जावेदाँ तक है
नियाज़-ओ-नाज़ की रूदाद-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का क़िस्सा
ये जो कुछ भी है सब उन की हमारी दास्ताँ तक है
क़फ़स में भी वही ख़्वाब-ए-परेशाँ देखता हूँ मैं
कि जैसे बिजलियों की रौ फ़लक से आशियाँ तक है
ख़याल-ए-यार ने तो आते ही गुम कर दिया मुझ को
यही है इब्तिदा तो इंतिहा उस की कहाँ तक है
जवानी और फिर उन की जवानी ऐ मआज़-अल्लाह
मिरा दिल क्या तह-ओ-बाला निज़ाम-ए-दो-जहाँ तक है
हम इतना भी न समझे अक़्ल खोई दिल गँवा बैठे
कि हुस्न-ओ-इश्क़ की दुनिया कहाँ से है कहाँ तक है
वो सर और ग़ैर के दर पर झुके तौबा मआज़-अल्लाह
कि जिस सर की रसाई तेरे संग-ए-आस्ताँ तक है
ये किस की लाश बे-गोर-ओ-कफ़न पामाल होती है
ज़मीं जुम्बिश में है बरहम निज़ाम-ए-आसमाँ तक है
जिधर देखो उधर बिखरे हैं तिनके आशियाने के
मिरी बर्बादियों का सिलसिला या-रब कहाँ तक है
न मेरी सख़्त-जानी फिर न उन की तेग़ का दम-ख़म
मैं उस के इम्तिहाँ तक हूँ वो मेरे इम्तिहाँ तक है
ज़मीं से आसमाँ तक एक सन्नाटे का आलम है
नहीं मालूम मेरे दिल की वीरानी कहाँ तक है
सितमगर तुझ से उम्मीद-ए-करम होगी जिन्हें होगी
हमें तो देखना ये था कि तू ज़ालिम कहाँ तक है
नहीं अहल-ए-ज़मीं पर मुनहसिर मातम शहीदों का
क़बा-ए-नील-गूँ पहने फ़ज़ा-ए-आसमाँ तक है
सुना है सूफ़ियों से हम ने अक्सर ख़ानक़ाहों में
कि ये रंगीं-बयानी ‘बेदम’-ए-रंगीं-बयाँ तक है
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में ग़श में हूँ मुझे इतना नहीं होश
तसव्वुर है तिरा या तू हम-आग़ोश
जो नालों की कभी वहशत ने ठानी
पुकारा ज़ब्त बस ख़ामोश ख़ामोश
किसे हो इम्तियाज़-ए-जल्वा-ए-यार
हमें तो आप ही अपना नहीं होश
उठा रक्खा है इक तूफ़ान तू ने
अरे क़तरे तिरा अल्लाह-रे जोश
मैं ऐसी याद के क़ुर्बान जाऊँ
किया जिस ने दो-आलम को फ़रामोश
है बेगानों से ख़ाली ख़ल्वत-ए-राज़
चले जाएँ न अब आएँ मिरे होश
करो रिंदो गुनाह-ए-मय-परस्ती
कि साक़ी है अता-पाश ओ ख़ता-पोश
तिरे जल्वे को मूसा देखते क्या
नक़ाब उठने से पहले उड़ गए होश
करम भी उस का मुझ पर है सितम भी
कि पहलू में है ज़ालिम और रू-पोश
पियो तो ख़ुम के ख़ुम पी जाओ ‘बेदम’
अरे मय-नोश हो तुम या बला-नोश
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दिल लिया जान ली नहीं जाती
आप की दिल-लगी नहीं जाती
सब ने ग़ुर्बत में मुझ को छोड़ दिया
इक मिरी बेकसी नहीं जाती
किए कह दूँ कि ग़ैर से मिलिए
अन-कही तो कही नहीं जाती
ख़ुद कहानी फ़िराक़ की छेड़ी
ख़ुद कहा बस सुनी नहीं जाती
ख़ुश्क दिखलाती है ज़बाँ तलवार
क्यूँ मिरा ख़ून पी नहीं जाती
लाखों अरमान देने वालों से
एक तस्कीन दी नहीं जाती
जान जाती है मेरी जाने दो
बात तो आप की नहीं जाती
तुम कहोगे जो रोऊँ फ़ुर्क़त में
कि मुसीबत सही नहीं जाती
उस के होते ख़ुदी से पाक हूँ मैं
ख़ूब है बे-ख़ुदी नहीं जाती
पी थी ‘बेदम’ अज़ल में कैसी शराब
आज तक बे-ख़ुदी नहीं जाती
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जुस्तुजू करते ही करते खो गया
उन को जब पाया तो ख़ुद गुम हो गया
क्या ख़बर यारान-ए-रफ़्ता की मिले
फिर न आया उस गली में जो गया
जब उठाया उस ने अपनी बज़्म से
बख़्त जागे पाँव मेरा सो गया
मुझ को है खोए हुए दिल की तलाश
और वो कहते हैं कि जाने दो गया
ख़ैर है क्यूँ इस क़दर बेताब हैं
हज़रत-ए-दिल आप को क्या हो गया
वो मिरी बालीं आ कर फिर गए
जाग कर मेरा मुक़द्दर सो गया
आज फिर ‘बेदम’ की हालत ग़ैर है
मय-कशो लेना ज़रा देखो गया
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कुछ लगी दिल की बुझा लूँ तो चले जाइएगा
ख़ैर सीने से लगा लूँ तो चले जाइएगा
मैं ज़-ख़ुद रफ़्ता हुआ सुनते ही जाने की ख़बर
पहले मैं आप में आ लूँ तो चले जाइएगा
रास्ता घेरे हैं अरमान-ओ-क़लक़ हसरत-ओ-यास
मैं ज़रा भीड़ हटा लूँ तो चले जाइएगा
प्यार कर लूँ रुख़-ए-रौशन की बलाएँ ले लूँ
क़दम आँखों से लगा लूँ तो चले जाइएगा
मेरे होने ही ने ये रोज़-ए-सियह दिखलाया
अपनी हस्ती को मिटा लूँ तो चले जाइएगा
छोड़ कर ज़िंदा मुझे आप कहाँ जाएँगे
पहले मैं जान से जा लूँ तो चले जाइएगा
आप के जाते ही ‘बेदम’ की सुनेगा फिर कौन
अपनी बीती मैं सुना तो चले जाइएगा
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मुझे शिकवा नहीं बर्बाद रख बर्बाद रहने दे
मगर अल्लाह मेरे दिल में अपनी याद रहने दे
क़फ़स में क़ैद रख या क़ैद से आज़ाद रहने दे
बहर-सूरत चमन ही में मुझे सय्याद रहने दे
मिरे नाशाद रहने से अगर तुझ को मसर्रत है
तो मैं नाशाद ही अच्छा मुझे नाशाद रहने दे
तिरी शान-ए-तग़ाफ़ुल पर मिरी बर्बादियाँ सदक़े
जो बर्बाद-ए-तमन्ना हो उसे बर्बाद रहने दे
तुझे जितने सितम आते हैं मुझ पर ख़त्म कर देना
न कोई ज़ुल्म रह जाए न अब बे-दाद रहने दे
न सहरा में बहलता है न कू-ए-यार में ठहरे
कहीं तो चैन से मुझ को दिल-ए-नाशाद रहने दे
कुछ अपनी गुज़री ही ‘बेदम’ भली मालूम होती है
मिरी बीती सुना दे क़िस्सा-ए-फ़रहाद रहने दे
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