तुज से मिलकर तो ये लगता है के अजनबी दोस्त
तो मेरी पहली मोहब्बत थी मेरी आखरी दोस्त
लोग हर बात का अफसाना बना देते है।
ये तो दुनियां है मेरी जान कई दुश्मन कई दोस्त
तेरी क़ामत से भी लिपटी है अमर बेल कोई
मेरी चाहत को भी दुनिया की नज़र खा गयी दोस्त
याद आयी है तो फिर टूट के याद आयी है
कोई गुज़री हुयी मंज़िल कोई भूली हुयी दोस्त
अब आये हो तो एस्सान तुम्हरा लेकिन
वो क़यामत जो गुज़ारनी थी गुज़र भी गयी दोस्त
तेरे लहज़े की थकन में तेरा दिल शामिल है
ऐसा लगता है जुदाई की घडी आ गयी दोस्त
बारिशे संग का मौसम है मेरे शहर में तो
तू ये शीशे सा बदन ले के कहा आ गयी दोस्त
मैं उसे एह-दे-शिकन कैसे समाज लू जिसने
आखरी खत में ये लिखा था फकत आप की दोस्त

Ahmad Faraz Shayari hindi
क्या ऐसे कम सुखन से कोई गुफ्तुगू करे
जो मुस्तकिल सकूत से दिल को लहू करे
अब तो हमें भी तरके मरासिम का दुख नहीं
पर दिल ये चाहता है के आगाज़ तू करे
तेरे बगैर भी तो गनीमत है ज़िन्दगी
खुद को गाबा के कौन तेरी जुस्तजू करे
अब तो ये आरज़ू है के वो ज़ख़्म खाये
ता ज़िन्दगी ये दिल न कोई आरज़ू करे
तुज को भुला दिल है वो सर्मिन्दा नज़र
अब कोई हादसा ही तेरे रु बा-रु-करे
चुप चाप अपनी आग में जलते रहो फ़राज़
दुन्याँ तो अर्ज़े हाल से बे आबरू करे
Ahmad Faraz Shayari
हर कोई दिल की हतेली पे है सहरा रखे
किस को सैराब करे वो किस को प्यासा रखे
उम्र भर कौन निभाता है ताल्लुक इतना
ए मेरी जान के दुश्मन तुझे अल्ल्हा रखे
हम को अच्छा नहीं लगता कोई हम नाम तेरा
कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रखे
दिल भी पागल है के उस शख्स से बा-बस्ता है
जो किसी और का होने दे न अपना रखे
काम नहीं तमाये इबादत भी तो हर्ज़े ज़र से
फक़र तो वो है के जो दीन न दुनिया रखे
हस न इतना भी फकीरों के अकेले पन पर
जा खुदा मेरी तरह तुझको भी तन्हा रखे
ये क़नाअत है अताअत है के चाहत है फ़राज़
हम तो राज़ी है वो जिस हाल में जैसा रक्खे
Ahmad Faraz Ghazal
ये हम जो बाग़ बा बहारो का ज़िकर करते है
तू मुददुआ वो गुल तर वो सरो कामत है
बजा ये फुर्सते हस्ती मगर दिले नादान
न याद करके उसे भूलना क़यामत है
चली चले यूही रस्मे वफ़ा बा मुश्के सितम
के तेगे यार बा सर बा दस्ता सलामत है
सुकुते बहर से साहिल लरज़ रहा है मगर
ये खामोसी किसी खामोसी की अलामत है
अजीब वजा का अहमद फ़राज़ है शायर
के दिलो रिदा मगर पैरहन सलामत है