Ishq hai to hona chahiye

जुनूँ कम जुस्तुजू कम तिश्नगी कम
नज़र आए न क्यूँ दरिया भी शबनम

ब-हम्दिल्लाह तू है जिस का हमदम
कहाँ उस क़ल्ब में गुंजाइश-ए-ग़म

तवज्जोह बे-निहायत और नज़र कम
ख़ुशा ये इल्तिफ़ात-ए-हुस्न-ए-बरहम

मिरी आँखों ने देखा है वो आलम
कि हर आलम है लग़्ज़िश-हा-ए-पैहम

ख़ता क्यूँकर न होती आफ़ियत-सोज़
कि जन्नत ही न थी मेराज-ए-आदम

ख़ुशा ये निस्बत-ए-हुस्न-ओ-मोहब्बत
जहाँ बैठे नज़र आए हमीं हम

वो इक हुस्न-ए-सरापा अल्लाह अल्लाह
कि जिस की हर अदा आलम ही आलम

कहाँ पहलू-ए-ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब
कहाँ इक नाज़नीं दोशीज़ा शबनम

मसर्रत ज़िंदगी का दूसरा नाम
मसर्रत की तमन्ना मुस्तक़िल ग़म

Read More...

Bo tadap jaye ishara koi dena

वो तड़प जाए इशारा कोई ऐसा देना
उस को ख़त लिखना तो मेरा भी हवाला देना

अपनी तस्वीर बनाओगे तो होगा एहसास
कितना दुश्वार है ख़ुद को कोई चेहरा देना

इस क़यामत की जब उस शख़्स को आँखें दी हैं
ऐ ख़ुदा ख़्वाब भी देना तो सुनहरा देना

अपनी तारीफ़ तो महबूब की कमज़ोरी है
अब के मिलना तो उसे एक क़सीदा देना

है यही रस्म बड़े शहरों में वक़्त-ए-रुख़्सत
हाथ काफ़ी है हवा में यहाँ लहरा देना

इन को क्या क़िले के अंदर की फ़ज़ाओं का पता
ये निगहबान हैं इन को तो है पहरा देना

पत्ते पत्ते पे नई रुत के ये लिख दें ‘अज़हर’
धूप में जलते हुए जिस्मों को साया देना

Read More...

Bada ajeeb h uska ek khayal

बड़ा अजीब था उस का विदाअ’ होना भी
न हो सका मिरा उस से लिपट के रोना भी

फ़सीलें छूने लगी हैं अब आसमानों को
अजब है एक दरीचे का बंद होना भी

न कोई ख़्वाब है आँखों में अब न बेदारी
तिरे सबब था मिरा जागना भी सोना भी

तिरे फ़क़ीर को इतनी सी जा भी काफ़ी है
जो तेरे दिल में निकल आए एक कोना भी

ये कम नहीं जो मयस्सर है ज़िंदगी से मुझे
कभी-कभार का हँसना उदास होना भी

तिरा गुज़ारना हमवार रास्तों से हमें
हमारे पाँव में काँटे कभी चुभोना भी

चला गया कोई आँखों में गर्द उड़ाता हुआ
न काम आया कोई टोटका न टोना भी

‘तलब’ बड़ी ही अज़िय्यत का काम होता है
बिखरते टूटते रिश्तों का बोझ ढोना भी

Read More...

kyu banate ho siyasat ko apna hum safar

हम कहीं भी हों मगर ये छुट्टियाँ रह जाएँगी
फूल सब ले जाएँगे पर पत्तियाँ रह जाएँगी

काम करना हो जो कर लो आज की तारीख़ में
आँख नम हो जाएगी फिर सिसकियाँ रह जाएँगी

इस नए क़ानून का मंज़र यही दिखता है अब
पाँव कट जाएँगे लेकिन बेड़ियाँ रह जाएँगी

सिर्फ़ लफ़्ज़ों को नहीं अंदाज़ भी अच्छा रखो
इस जगत में सिर्फ़ मीठी बोलियाँ रह जाएँगी

क्यों बनाते हो सियासत को तुम अपना हम-सफ़र
सब चले जाएँगे लेकिन कुर्सियाँ रह जाएँगी

तुम को भी आदर्श पर ‘आदर्श’ चलना है यहाँ
वर्ना इस दलदल में धँसतीं पीढ़ियाँ रह जाएँगी

Read More...

Tamam umr ye ehsas raha mujhe

दयार-ए-संग में रह कर भी शीशागर था मैं
ज़माना चीख़ रहा था कि बे-ख़बर था मैं

लगी थी आँख तो मर्यम की गोद का था गुमाँ
खुली जब आँख तो देखा सलीब पर था मैं

अमाँ किसे थी मिरे साए में जो रुकता कोई
ख़ुद अपनी आग में जलता हुआ शजर था मैं

तमाम उम्र न लड़ने का ग़म रहा मुझ को
अजब महाज़ पे हारा हुआ ज़फ़र था मैं

हवा-ए-वक़्त ने पत्थर बना दिया वर्ना
लचकती शाख़ से टूटा हुआ समर था मैं

तमाम शहर में जंगल की आग हो जैसे
हवा के दोश पे उड़ती हुई ख़बर था मैं

Read More...

Jo dil pe beet rahi bo koi kya jane

जिन पे अजल तारी थी उन को ज़िंदा करता है
सूरज जल कर कितने दिलों को ठंडा करता है

कितने शहर उजड़ जाते हैं कितने जल जाते हैं
और चुप-चाप ज़माना सब कुछ देखा करता है

मजबूरों की बात अलग है उन पर क्या इल्ज़ाम
जिस को नहीं कोई मजबूरी वो क्या करता है

हिम्मत वाले पल में बदल देते हैं दुनिया को
सोचने वाला दिल तो बैठा सोचा करता है

जिस बस्ती में नफ़सा-नफ़सी का क़ानून चले
उस बस्ती में कौन किसी की पर्वा करता है

प्यार भरी आवाज़ की लय में मद्धम लहजे में
तन्हाई में कोई मुझ से बोला करता है

उस इक शम-ए-फ़रोज़ाँ के हैं और भी परवाने
चाँद अकेला कब सूरज का हल्क़ा करता है

रूह बरहना नफ़्स बरहना ज़ात बरहना जिस की
जिस्म पे वो क्या क्या पोशाकें पहना करता है

अश्कों के सैलाब-ए-रवाँ को ‘अकबर’ मत रोको
बह जाए तो बूझ ये दिल का हल्का करता है

Read More...

wo mere dil me Najar aate ate hai

वो मिरे दिल के तलबगार नज़र आते हैं
शादमानी के अब आसार नज़र आते हैं

जो मिरे नाम से बेज़ार नज़र आते थे
अब वही दिल के तलबगार नज़र आते हैं

अब मोहब्बत के परस्तार कहाँ ऐ साक़ी
सब मोहब्बत के ख़रीदार नज़र आते हैं

अब के गुलशन में अजब रंग से आई है बहार
शाख़-ए-गुल पर भी हमें ख़ार नज़र आते हैं

हाए उम्मीद का पाबंद-ए-करम हो जाना
आज हम ज़ीस्त से बेज़ार नज़र आते हैं

हश्र में किस से करूँ किस की शिकायत ऐ दिल
सब उसी बुत के तरफ़-दार नज़र आते हैं

ख़ुद मनाने को जिन्हें रहमत-ए-हक़ आई है
ऊँचे दर्जे के गुनाहगार नज़र आते हैं

ये है मय-ख़ाना तो फिर आज से मेरी तौबा
सब यहाँ ज़ाहिद-ओ-दीं-दार नज़र आते हैं

उस की बेगाना-रवी का ये फ़ुसूँ तो देखो
आज अहबाब भी अग़्यार नज़र आते हैं

फिर वो माइल-ब-करम होने लगे हैं ‘साहिर’
फिर ग़म-ओ-रंज के आसार नज़र आते हैं

Read More...

Khayal-e-yaar bana baitha hu

बैठा हूँ वक़्फ़-ए-मातम-ए-हस्ती मिटा हुआ
ज़हर-ए-वफ़ा है घर की फ़ज़ा में घुला हुआ

ख़ुद उन के पास जाऊँ न उन को बुलाऊँ पास
पाया है वो मिज़ाज कि जीना बला हुआ

अपनी ज़बाँ को आज वो तासीर है नसीब
जिस को ख़ुदा-ए-हुस्न कहा वो ख़ुदा हुआ

उस पर ग़लत है इश्क़ में इल्ज़ाम-ए-दुश्मनी
क़ातिल है मेरे हुज्ला-ए-जाँ में छुपा हुआ

जाँ है तो फ़िक्र-ए-इशरत-ए-बज़्म-ए-जहाँ भी है
कब दिल से दर्द-ए-आलम-ए-इम्काँ जुदा हुआ

हैं जिस्म-ओ-जाँ बहम ये मगर किस को है ख़बर
किस किस जगह से दामन-ए-दिल है सिला हुआ

है राहवार-ए-शौक़ पे आसेब-ए-बे-दिली
रक्खा है कब से सामने साग़र भरा हुआ

हासिल है जिस को ‘अर्श’ फ़ज़ाओं पे इख़्तियार
वो दिल के साथ खेल रहा है तो क्या हुआ

Read More...

Ab to lagta hai aa jayegi bari meri

उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी
ख़मोशी से गुज़र जाऊँगा मैं भी

मुझे छूने की ख़्वाहिश कौन करता है
कि पल भर में बिखर जाऊँगा मैं भी

बहुत पछताएगा वो बिछड़ कर
ख़ुदा जाने किधर जाऊँगा मैं भी

ज़रा बदलूंगा इस बे-मंज़री को
फिर उस के बाद मर जाऊँगा मैं भी

किसी दीवार का ख़ामोश साया
पुकारे तो ठहर जाऊँगा मैं भी

पता उस का तुम्हें भी कुछ नहीं है
यहाँ से बे-ख़बर जाऊँगा मैं भी

Read More...

Teri Yaad Aati Nhi Mujhko

उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी
ख़मोशी से गुज़र जाऊँगा मैं भी

मुझे छूने की ख़्वाहिश कौन करता है
कि पल भर में बिखर जाऊँगा मैं भी

बहुत पछताएगा वो बिछड़ कर
ख़ुदा जाने किधर जाऊँगा मैं भी

ज़रा बदलूंगा इस बे-मंज़री को
फिर उस के बाद मर जाऊँगा मैं भी

किसी दीवार का ख़ामोश साया
पुकारे तो ठहर जाऊँगा मैं भी

पता उस का तुम्हें भी कुछ नहीं है
यहाँ से बे-ख़बर जाऊँगा मैं भी

Read More...