Bada ajeeb h uska ek khayal

बड़ा अजीब था उस का विदाअ’ होना भी
न हो सका मिरा उस से लिपट के रोना भी

फ़सीलें छूने लगी हैं अब आसमानों को
अजब है एक दरीचे का बंद होना भी

न कोई ख़्वाब है आँखों में अब न बेदारी
तिरे सबब था मिरा जागना भी सोना भी

तिरे फ़क़ीर को इतनी सी जा भी काफ़ी है
जो तेरे दिल में निकल आए एक कोना भी

ये कम नहीं जो मयस्सर है ज़िंदगी से मुझे
कभी-कभार का हँसना उदास होना भी

तिरा गुज़ारना हमवार रास्तों से हमें
हमारे पाँव में काँटे कभी चुभोना भी

चला गया कोई आँखों में गर्द उड़ाता हुआ
न काम आया कोई टोटका न टोना भी

‘तलब’ बड़ी ही अज़िय्यत का काम होता है
बिखरते टूटते रिश्तों का बोझ ढोना भी