Bu Ali Shah Qalandar Sufism Kalam

मनम मेहर-ए-जमाल-ए-ऊ नमी दानम कुजा रफ़्तम
शुदम ग़र्क़-ए-विसाल-ए-ऊ नमी दानम कुजा रफ़्तम

ग़ुलाम-ए-रु-ए-ऊ बूदम असीर-ए-मू-ए-ऊ बूदम
गु़बार-ए-कू-ए-ऊ बूदम नमी दानम कुजा रफ़्तम

बा-आँ मह-आश्ना गश्तम ज़े-जान-ओ-दिल फ़िदा गश्तम
फ़ना गश्तम फ़ना गश्तम नमी दानम कुजा रफ़्तम

शुदम चूँ मुब्तला-ए-ऊ निहादम सर ब-पा-ए-ऊ
शुदम मेहर-ए-लक़ा-ए-ऊ नमी दानम कुजा रफ़्तम

‘क़लन्दर’-बू-अली हस्तम ब-नाम-ए-दोस्त सर-मस्तम
दिल अंदर इश्क़-ए-ऊ बस्तम नमी दानम कुजा रफ़्तम

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Bu Ali Shah Qalandar Kalam

अगरचे मोमिनम या बुत-परस्तम
क़ुबूलम कुन निगारा हर-चे हस्तम

यके काफ़िर दो-सद बुत मी-परस्तद
मनम मिस्कीं यके रा मी-परस्तम

बुते दारम दरून-ए-सीन:-ए-ख़्वेश
ब-रोज़-ओ-शब मन आँ बुत रा परस्तम

मरा गोयन्द चरा बुत मी-परस्ती
चू यारम बुत बूवद मन मी-परस्तम

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Bulleh Shah Quotes

पत्तियां लिखूंगी मैं शाम नूं, पिया मैनूं नज़र ना आवे ।
आंगन बना ड्राउणा, कित बिध रैन वेहावे ।

कागज़ करूं लिख दामने, नैन आंसू लाऊं ।
बिरहों जारी हौं जारी, दिल फूक जलाऊं ।

पांधे पंडत जगत के, पुच्छ रहियां सारे ।
बेद पोथी क्या दोस है, उलटे भाग हमारे ।
नींद गई किते देस नूं, उह भी वैरन हमारे ।

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Kalam Bulleh Shah

रांझा रांझा करदी नी मैं आपे रांझा होई ।
सद्दो नी मैनूं धीदो रांझा, हीर ना आखो कोई ।

रांझा मैं विच्च मैं रांझे विच्च, होर ख़्याल ना कोई ।
मैं नहीं उह आप है, आपनी आप करे दिलजोई ।
रांझा रांझा करदी नी मैं आपे रांझा होई ।

हत्थ खूंडी मेरे अग्गे मंगू, मोढे भूरा लोई ।
बुल्ल्हा हीर सलेटी वेखो, कित्थे जा खलोई ।

रांझा रांझा करदी नी मैं आपे रांझा होई ।
सद्दो नी मैनूं धीदो रांझा, हीर ना आखो कोई ।

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Bulleh Shah Kalam

कह बुल्ल्हा हुन प्रेम कहाणी, जिस तन लागे सो तन जाणे,
अन्दर झिड़कां बाहर ताअने, नेहुं ला इह सुक्ख पाइआ ए ।
मेरे माही क्युं चिर लाइआ ए ।

नैणां कार रोवन दी पकड़ी, इक मरना दो जग्ग दी फकड़ी,
ब्रेहों जिन्द अवल्ली जकड़ी, नी मैं रो रो हाल वंजाइआ ए ।
मेरे माही क्युं चिर लाइआ ए ।

मैं प्याला तहकीक लीता ए जो भर के मनसूर पीता ए,
दीदार मिअराज पिया लीता ए मैं खूह थीं वुज़ू सजाया ए ।
मेरे माही क्युं चिर लाइआ ए ।

इश्क मुल्लां ने बांग दिवाई, शहु आवन दी गल्ल सुणाई,
कर नीयत सजदे वल्ल धाई, नी मैं मूंह महराब लगाया ए ।
मेरे माही क्युं चिर लाइआ ए ।

बुल्ल्हा शहु घर लपट लगाईं, रसते में सभ बण तण जाईं,
मैं वेखां आ इनायत साईं, इस मैनूं शहु मिलाइआ ए ।
मेरे माही क्युं चिर लाइआ ए ।

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Bulleh Shah Urdu Kalam

परदा किस तों राखीदा ।
क्युं ओहले बह बह झाकी दा ।

पहलों आपे साजन साजे दा, हुन दस्सना एं सबक नमाजे दा,
हुन आया आप नज़ारे नूं, विच लैला बण बण झाकी दा ।
परदा किस तों राखीदा ।

शाह शम्मस दी खल्ल लुहाययो, मनसूर नूं सूली दवायओ,
ज़करीए सिर कलवत्तर धराययो, की लेखा रहआ बाकी दा ।
परदा किस तों राखीदा ।

कुन्न केहा फअकून कहाइआ, बे-चूनी दा चून बणाइआ,
खातर तेरी जगत बणाइआ, सिर पर छतर लौलाकी दा ।
परदा किस तों राखीदा ।

हुन साडे वल धाइआ ए ना रहन्दा छुपा छुपाइआ ए,
किते बुल्ल्हा नाम धराइआ ए विच ओहला रक्ख्या ख़ाकी दा ।

परदा किस तों राखीदा ।
क्युं ओहले बह बह झाकी दा ।

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Bulleh Shah Hindi Kalam

दूर दूर असाथों ग्युं, अजला (अरशां) ते आ के बह रहउं,
की कसर कसूर विसारिआ, सानूं आ मिल यार प्यारिआ ।

मेरा इक अनोखा यार है, मेरा ओसे नाल प्यार है,
किवें समझें वड परवाइआ, सानूं आ मिल यार प्यारिआ ।

जदों आपनी आपनी पै गई, धी मां नूं लुट्ट के लै गई,
मूंह बाहरवीं सदी पसारिआ, सानूं आ मिल यार प्यारिआ ।

दर खुल्ल्हा हशर अज़ाब दा, बुरा हाल होया पंजाब दा,
डर हावीए दोज़ख मारिआ, सानूं आ मिल यार प्यारिआ ।

बुल्ल्हा शहु मेरे घर आवसी, मेरी बलदी भा बुझावसी,
इनायत दमदम नाल चितारिआ, सानूं आ मिल यार प्यारिआ ।

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piya piya karte

पिया पिया करते हमीं पिया हुए, अब पिया किस नूं कहीए ।
हजर वसल हम दोनों छोड़े, अब किस के हो रहीए ।
पिया पिया करते हमीं पिया हुए ।

मजनूं लाल दीवाने वांङू, अब लैला हो रहीए ।
पिया पिया करते हमीं पिया हुए ।

बुल्ल्हा शहु घर मेरे आए, अब क्युं ताअने सहीए ।
पिया पिया करते हमीं पिया हुए ।

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Shams Tabrez Quotes

“परिवर्तनों का विरोध करने के बजाय, आत्मसमर्पण करें।
जीवन को तुम्हारे साथ होने दो, तुम्हारे खिलाफ नहीं।
अगर आपको लगता है कि तुम मेरा जीवन उल्टा हो जाएगा,
तो यह चिंता की बात नहीं है।
आप कैसे जानते हैं कि उल्टा बेहतर नहीं है? ”

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bya bya ki tui

बया बया कि तुई जान-ए- जान-ए- जान-ए- समा’
बया कि सर्वे रवानी बबोस्तान-ए- समा’

समा’ बंदए वक़्त-ए- तू बाशद ऐ मेहतर
ज़े वजद-ए- ख़्वेश दर आई तू दर्मेयान-ए- समा’

बरूँ ज़े हर दो जहां आ चू दर समा’ आई
बरूँ ज़े हर दो जहां अस्त ईँ जहान-ए- समा’

बया कि रौनक़-ए- बाज़ार-ए- इश्क़ अज़ लब-ए- तुस्त
के शाहिदीस्त निहानी दर ईँ दुकान-ए- समा’

बया कि सुरत-ए- इश्क़स्त शम्स-ए- तबरेज़ी
कि बाज़ मांद ज़े इश्क़श लब-ओ- देहान-ए- समा’

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