aaye kuch abr kuch sharab

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
इस के बा’द आए जो अज़ाब आए

बाम-ए-मीना से माहताब उतरे
दस्त-ए-साक़ी में आफ़्ताब आए

हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो
सामने फिर वो बे-नक़ाब आए

उम्र के हर वरक़ पे दिल की नज़र
तेरी मेहर-ओ-वफ़ा के बाब आए

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए

न गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूँ रोज़ इंक़लाब आए

जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए

इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजी
गोया हर सम्त से जवाब आए

‘फ़ैज़’ थी राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए

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ye mohabbat tere anjaam pe rona aaya

ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया

यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया

कभी तक़दीर का मातम कभी दुनिया का गिला
मंज़िल-ए-इश्क़ में हर गाम पे रोना आया

मुझ पे ही ख़त्म हुआ सिलसिला-ए-नौहागरी
इस क़दर गर्दिश-ए-अय्याम पे रोना आया

जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का ‘शकील’
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

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gulo me rang bare

गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले

क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले

कभी तो सुब्ह तिरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले

बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही
तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़म-गुसार चले

जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ
हमारे अश्क तिरी आक़िबत सँवार चले

हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलब
गिरह में ले के गरेबाँ का तार तार चले

मक़ाम ‘फ़ैज़’ कोई राह में जचा ही नहीं
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले

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maula ya salleh wasallam

सहर का वक़्त था मा’सूम कलियाँ मुस्कुराती थीं
हवाएं ख़ैर-मक़दम के तराने गुनगुनाती थी
अभी जिब्रील उतरे भी न थे काअ़बे के मिम्बर से
के इतने में सदा आई ये अब्दुल्लाह के घर से
मुबारक हो ! शहे-हर-दोसरा तशरीफ़ ले आए
मुबारक हो ! मुहम्मद मुस्तफा तशरीफ़ ले आए

मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि

मुह़म्मदुन सय्यिदुल-कौनैनी वस्सक़लयनि
वल्फरीक़यनि मिन उ़र्बि-व्व-मिन अ़जमी

मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि

वो मुह़म्मद फ़ख़्रे-आलम, हादी-ए-कुल-इन्स-ओ-जां
सरवरे-कोनैन, सुल्ताने-अरब, शाहे-अजम
एक दिन जिब्रील से कहने लगे शाहे-उमम
तूमने देखा है जहां, बतलाओ तो कैसे हैं हम?
अर्ज़ की जिब्रील ने ए शाहे-दीं ! ए मोह़तरम !
आपका कोई मुमासिल ही नहीं रब की क़सम

मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि

रसूलल्लाह, ह़बीबल्लाह, इमामल-मुर्सलीन
रसूलल्लाह, ह़बीबल्लाह, इमामल-मुर्सलीन

हुवल-ह़बीबुल्लज़ी तुरजा शफ़ाअ़तुहु
लिकुल्लि हौलि-म्मिनल-अहवालि मुक़्तह़िमि

मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि

मेरे मौला सदा तह़िय्यतो-दुरूद के गजरे
अपने मह़बूब पर जो है तेरी तख़लीक़ बेहतरीं
उसी महबूब से वाबस्ता उम्मीदे-शफ़ाअ़त है
के हर हिम्मत-शिकन-मुश्किल में जिस ने दस्तगीरी की
न कोई आप जैसा था, न कोई आप जैसा है
कोई युसूफ से पूछे मुस्तफ़ा का हुस्न कैसा है
ज़मीनो-आसमां में कोई भी मिसाल ना मिली

मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि

रसूलल्लाह, ह़बीबल्लाह, इमामल-मुर्सलीन
रसूलल्लाह, ह़बीबल्लाह, इमामल-मुर्सलीन

या रब्बि बिल-मुस्त़फ़ा बल्लिग़ मक़ास़िदना
वग़फिर लना मा मद़ा या वासिअ़ल-करमी

मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि

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