अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मिरी तन्हाई की
Hangama-e-gham se tang aa kar izhaar-e-masarrat
हंगामा-ए-ग़म से तंग आ कर इज़हार-ए-मसर्रत कर बैठे
मशहूर थी अपनी ज़िंदा-दिली दानिस्ता शरारत कर बैठे
कोशिश तो बहुत की हम ने मगर पाया न ग़म-ए-हस्ती से मफ़र
वीरानी-ए-दिल जब हद से बढ़ी घबरा के मोहब्बत कर बैठे
हस्ती के तलातुम में पिन्हाँ थे ऐश ओ तरब के धारे भी
अफ़्सोस हमी से भूल हुई अश्कों पे क़नाअत कर बैठे
ज़िंदान-ए-जहाँ से ये नफ़रत ऐ हज़रत-ए-वाइज़ क्या कहना
अल्लाह के आगे बस न चला बंदों से बग़ावत कर बैठे
गुलचीं ने तो कोशिश कर डाली सूनी हो चमन की हर डाली
काँटों ने मुबारक काम किया फूलों की हिफ़ाज़त कर बैठे
हर चीज़ नहीं है मरकज़ पर इक ज़र्रा इधर इक ज़र्रा उधर
नफ़रत से न देखो दुश्मन को शायद वो मोहब्बत कर बैठे
अल्लाह तो सब की सुनता है जुरअत है ‘शकील’ अपनी अपनी
‘हाली’ ने ज़बाँ से उफ़ भी न की ‘इक़बाल’ शिकायत कर बैठे
Nigah-e-naz ka ek war kar ke
निगाह-ए-नाज़ का इक वार कर के छोड़ दिया
दिल-ए-हरीफ़ को बेदार कर के छोड़ दिया
हुई तो है यूँही तरदीद-ए-अहद-ए-लुत्फ़-ओ-करम
दबी ज़बान से इक़रार कर के छोड़ दिया
छुपे कुछ ऐसे कि ता-ज़ीस्त फिर न आए नज़र
रहीन-ए-हसरत-ए-दीदार कर के छोड़ दिया
मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन
किसी ने मुझ को गिरफ़्तार कर के छोड़ दिया
नज़र को जुरअत-ए-तकमील-ए-बंदगी न हुई
तवाफ़-ए-कूच-ए-दिल-दार कर के छोड़ दिया
ख़ुशा वो कशमकश-ए-रब्त-ए-बाहमी जिस ने
दिल ओ दिमाग़ को बे-कार कर के छोड़ दिया
ज़हे-नसीब कि दुनिया ने तेरे ग़म ने मुझे
मसर्रतों का तलबगार कर के छोड़ दिया
करम की आस में अब किस के दर पे जाए ‘शकील’
जब आप ही ने गुनहगार कर के छोड़ दिया
kisi ko jab nigahon ke muqabil
किसी को जब निगाहों के मुक़ाबिल देख लेता हूँ
तो पहले सर झुका के हालत-ए-दिल देख लेता हूँ
मआल-ए-जुस्तुजू-ए-शौक़-ए-कामिल देख लेता हूँ
उठाते ही क़दम आसार-ए-मंज़िल देख लेता हूँ
मैं तुझ से और लुत्फ़-ए-ख़ास का तालिब मआ’ज़-अल्लाह
सितम-गर इस बहाने से तिरा दिल देख लेता हूँ
जो मौजें ख़ास कर चश्म-ओ-चराग़-ए-दाम-ए-तूफ़ाँ हैं
मैं उन मौजों को हम-आग़ोश-ए-साहिल देख लेता हूँ
‘शकील’ एहसास है मुझ को हर इक मौज़ूँ तबीअ’त का
ग़ज़ल पढ़ने से पहले रंग-ए-महफ़िल देख लेता हूँ
Khatune Jina Markaze Iman Fathima
Khatune Jina Markaze Iman Fathima
Aosaf-e- Hameeda o Mumtaz Fathima
Sarta-Ba Kadam Tu Hai Noore Mohammadi
Chadar Hai Teri Chadare Tatheer Fathima
Thokde Jo Bahatar (72) Tere Islam Per Nisar
Bholega Na Islam A Ahsan Fathima
Hai Sabse Juda Kumba Tera Kumbaye Rasool
Bete Tere Hai Din Ke Sultan Fathima
Khawja-Qutub Hai Koi
Ghouso-Nizam Hai
Bete Tere Hai Sabse Juda Ekta Fathima
Hai Hadde Fazail Ke Tu Malika A Jina Hai
Sarkare Do Jahan Ki Tu Jaan Fathima
“Syed” Pe Tere Kitne Fazlo-Karam Huwe
Mangta Huwa Beta Huwa Tera A Fathima
Written By :
Aale-Rasool Sehzadaye Sarkare Ghouse Azam “Syed Mohsin Qadri ” , Davanagere. Karnataka . India
Instagram Page : @faizane_muhiyuddin_
Bas Itni Si Inaayat
Bas Itni Si Inaayat Mujh Pe Aik Baar Kijiye
Kabhi Aa Ke Mere Zakhmon Ka Dedaar Kijiye
Ho Jaaiye Begaane Aap Shauq Se Sanam
Aapka Hoon Aapka Rahunga Aitbaar Kijiye
Parhne Waale Hi Darr Jaayen Dekh Kar Isey
Kitaab-E-Dil Ko Itna Naa Daaghdar Kijiye
Naa Majboor Kijiye, Ke Main Unko Bhool Jaaon
Mujhe Meri Wafaaon Ka Na Gunehgar Kijiye
In Jalte Diyon Ko Dekh Kar Naa Muskuraiye
Zara Hawaaon Ke Chalne Ka Intezaar Kijiye
Karna Hai Ishq Aapse Karte Rahenge Hum
Jo Bhi Karna Hai Aapko Mere Sarkaar , Kijiye
Phir Sapnon Ka Ashiyan Bana Liya Hai Maine
Phir Aandhiyon Ko Aap khabardar Kijiye
Hamen Naa Dikhaiye Ye Daulat Yeh Shohrat
Hum Pyaar Ke Bhokhe Hain Hamen Pyaar Kijiye
Allah ka inaam hai ramzan ishq hai
Rab se lagi ho loh to fir aasan ishq hai
sajde main sar katane ka arman ishq hai
Insan ke uruj ka mizan ishq hai
Allah ka inaam hai ramzan ishq hai
Allah ka inaam hai ramzan ishq hai
Pahele kadam pe ashra-e-rehmat ki barishein
Aur dusre kadam pe hai aelane magfirat
Akhir ke das dinon mein mile aag se nijat
Hain aashikon pe rabb ki musalsal nwazishein
aur dab dabai aankhon mein jannat ki khwahishein
Uski madad se kis kadar aasan ishq hai
Roze ajal bandha tha jo payman ishq hai
Allah ka imaamn hai ramzan ishq hai
iman ki lagzish ka inkaam
ईमान की लग़्ज़िश का इम्कान अरे तौबा
बद-चलनी में ज़ाहिद का चालान अरे तौबा
उठ कर तिरी चौखट से हम और चले जाएँ
इंग्लैण्ड अरे तौबा जापान अरे तौबा
है गोद के पालों से अब ख़ौफ़-ए-दग़ा-बाज़ी
ये अपने ही भांजों पर बोहतान अरे तौबा
इंसानों को दिन दिन भर अब खाना नहीं मिलता
मुद्दत से फ़रोकश हैं रमज़ान अरे तौबा
लिल्लाह ख़बर लीजे अब क़ल्ब-ए-शिकस्ता की
गिरता है मोहब्बत का दालान अरे तौबा
दामान-ए-तक़द्दुस पर दाग़ों की फ़रावानी
इक मौलवी के घर में शैतान अरे तौबा
अब ख़ैरियतें सर करी मालूम नहीं होतीं
गंजों को है नाख़ुन का अरमान अरे तौबा
मशरिक़ पे भी नज़रें हैं मग़रिब पे भी नज़रें हैं
ज़ालिम के तख़य्युल की लम्बान अरे तौबा
ऐ ‘शौक़’ न कुछ कहिए हालत दिल-ए-मुज़्तर की
होता है मसीहा को ख़फ़्क़ान अरे तौबा
sahara maujo ka le le ke bad raha ho
सहारा मौजों का ले ले के बढ़ रहा हूँ मैं
सफ़ीना जिस का है तूफ़ाँ वो नाख़ुदा हूँ मैं
ख़ुद अपने जल्वा-ए-हस्ती का मुब्तला हूँ मैं
न मुद्दई हूँ किसी का न मुद्दआ हूँ मैं
कुछ आगे आलम-ए-हस्ती से गूँजता हूँ मैं
कि दिल से टूटे हुए साज़ की सदा हूँ मैं
पड़ा हुआ हूँ जहाँ जिस तरह पड़ा हूँ मैं
जो तेरे दर से न उठ्ठे वो नक़्श-ए-पा हूँ मैं
जहान-ए-इश्क़ में गो पैकर-ए-वफ़ा हूँ मैं
तिरी निगाह में जब कुछ नहीं तो क्या हूँ मैं
तजल्लियात की तस्वीर खींच कर दिल में
तसव्वुरात की दुनिया बसा रहा हूँ मैं
जुनून-ए-इश्क़ की नैरंगियाँ अरे तौबा
कभी ख़ुदा हूँ कभी बंदा-ए-ख़ुदा हूँ मैं
बदलती रहती है दुनिया मिरे ख़यालों की
कभी मिला हूँ कभी यार से जुदा हूँ मैं
हयात ओ मौत के जल्वे हैं मेरी हस्ती में
तग़य्युरात-ए-दो-आलम का आइना हूँ मैं
तिरी अता के तसद्दुक़ तिरे करम के निसार
कि अब तो अपनी नज़र में भी दूसरा हूँ मैं
बक़ा की फ़िक्र न अंदेशा-ए-फ़ना मुझ को
तअय्युनात की हद से गुज़र गया हूँ मैं
मुझी को देख लें अब तेरे देखने वाले
तू आइना है मिरा तेरा आईना हूँ मैं
मैं मिट गया हूँ तो फिर किस का नाम है ‘बेदम’
वो मिल गए हैं तो फिर किस को ढूँढता हूँ मैं
toor wale teri tanveer liye baithe hain
तूर वाले तिरी तनवीर लिए बैठे हैं
हम तुझी को बुत-ए-बे-पीर लिए बैठे हैं
जिगर ओ दिल की न पूछो जिगर ओ दिल मेरे
निगह-ए-नाज़ के दो तीर लिए बैठे हैं
इन के गेसू दिल-ए-उश्शाक़ फँसाने के लिए
जा-ब-जा हल्क़ा-ए-ज़ंजीर लिए बैठे हैं
ऐ तिरी शान कि क़तरों में है दरिया जारी
ज़र्रे ख़ुर्शीद की तनवीर लिए बैठे हैं
फिर वो क्या चीज़ है जो दिल में उतर जाती है
तेग़ पास उन के न वो तीर लिए बैठे हैं
मय-ए-इशरत से भरे जाते हैं अग़्यार के जाम
हम तही कासा-ए-तक़दीर लिए बैठे हैं
किश्वर ओ इश्क़ में मुहताज कहाँ हैं ‘बेदम’
क़ैस ओ फ़रहाद की जागीर लिए बैठे हैं