teri jaliye ke niche

तेरी झालियों के नीचे, तेरी रहमतों के साए
जिसे देखनी हो जन्नत वो मदीना देख आए

कैसी वहाँ की रातें, कैसी वहाँ की बातें
उन्हें पूछ लो नबी का जो मदीना देख आए

ना ये बात शान की है, ना ये बात माल-ओ-ज़र की
वही जाता है मदीने, आक़ा जिसे बुलाए

रोज़े के सामने मैं ये दुआएं मांगता था
मेरा दम निकल तो जाए, ये समां बदल न जाए

तयबा के ए मुसाफिर ! तुम्हें देता हूँ दुआएं
दरे-मुस्तफ़ा पे जा कर तू जहां को भूल जाए

वो ज़हूरी यार मेरा, वही ग़मगुसार मेरा
मेरी क़ब्र पर जो आ कर नात-ए-नबी सुनाए

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mehraz ki raat hain

आज मौला बख़्श फ़ज़्ले रब से है दूल्हा बना
ख़ुशनुमा फूलों का इस के सर पे है सेहरा सजा

इस की शादी ख़ाना आबादी हो रब्बे-मुस्तफ़ा
अज़ तुफ़ैले ग़ौसो-ख़्वाजा, अज़ पए अहमद रज़ा

इन की ज़ौजा या ख़ुदा ! करती रहे पर्दा सदा
अज़ तुफ़ैले हज़रते उस्मां ग़निय्ये बा हया

तू सदा रखना सलामत इन का जोड़ा किर्दिगार
इन को झगड़ों से बचाना अज़ तुफ़ैले चार यार

इन को खुशियां दो जहां में तू अता कर किब्रिया
कुछ न छाए इन पे ग़म की रंज की काली घटा

नेक औलाद इन को मौला आफ़ियत से हो अता
वासिता या रब मदीने की मुबारक ख़ाक का

इस तरह महका करे ये घर का घर प्यारे ख़ुदा
फूल महका करते हैं जैसे मदीने के सदा

या इलाही ! दे सआदत इन को हज की बार बार
बार बार इन को दिखा मीठे मुहम्मद का दियार

ये मियां बीवी रहें जन्नत में यक्जा ऐ ख़ुदा
या इलाही तुझ से है अत्तारे आजिज़ की दुआ

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salleh ala mohammadin

जिन का लक़ब है मुस्तफ़ा, स़ल्ले अ़ला मुह़म्मदिन
उन से हमें ख़ुदा मिला, स़ल्ले अ़ला मुह़म्मदिन

या रसूलल्लाह, या रसूलल्लाह
या रसूलल्लाह, या रसूलल्लाह

रूहुल-अमीं तो थक गए और वो अर्श तक गए
अर्शे-बरी पुकार उठा, स़ल्ले अ़ला मुह़म्मदिन

जिन का लक़ब है मुस्तफ़ा, स़ल्ले अ़ला मुह़म्मदिन
जिन का लक़ब है मुस्तफ़ा, स़ल्ले अ़ला मुह़म्मदिन

लाज गुनाहगार की आप के हाथ है नबी
बद है मगर है आप का, स़ल्ले अ़ला मुह़म्मदिन

उन से हमें ख़ुदा मिला, स़ल्ले अ़ला मुह़म्मदिन

या रसूलल्लाह, या रसूलल्लाह
या रसूलल्लाह, या रसूलल्लाह

क़ब्र में जब फिरिश्ते आएं, शक्ले-ख़ुदा-नुमा दिखाएं
पढ़ता उठूं मैं या ख़ुदा, स़ल्ले अ़ला मुह़म्मदिन

जिन का लक़ब है मुस्तफ़ा, स़ल्ले अ़ला मुह़म्मदिन
जिन का लक़ब है मुस्तफ़ा, स़ल्ले अ़ला मुह़म्मदिन

हश्र में सालिके-हज़ीं, थाम के दामने-नबी
अर्ज़ करे ये बर-मला, स़ल्ले अ़ला मुह़म्मदिन

उन से हमें ख़ुदा मिला, स़ल्ले अ़ला मुह़म्मदिन

या रसूलल्लाह, या रसूलल्लाह
या रसूलल्लाह, या रसूलल्लाह

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hasbi rabbi jallallah

लब पर है बस यही सदा, ला-इलाहा इल्लल्लाह
फूलों ने कहा, पत्तों ने कहा, ला-इलाहा इल्लल्लाह

हस्बी रब्बी जल्लल्लाह माफी क़ल्बी गैरुल्लाह
नूरे मुहम्मद सल्लल्लाह ला-इलाहा इल्लल्लाह

तेरे सदक़े से आक़ा सारे जहाँ को दीन मिला
बे-दीनों ने कलमा पड़ा ला-इलाहा इल्लल्लाह

हस्बी रब्बी जल्लल्लाह माफी क़ल्बी गैरुल्लाह
नूरे मुहम्मद सल्लल्लाह ला-इलाहा इल्लल्लाह

ला-इलाहा इल्लल्लाह, ला-इलाहा इल्लल्लाह
ला-इलाहा इल्लल्लाह, ला-इलाहा इल्लल्लाह

आप के जैसा कौन यहाँ इस दुनिया में आया है
जिस ने आप को दिल से चुना उसने सब कुछ पाया है
अल्लाह के वो प्यारे नबी, अल्लाह को ना भूले कभी
हर पल, हर दम यही कहा, ला-इलाहा इल्लल्लाह

हस्बी रब्बी जल्लल्लाह माफी क़ल्बी गैरुल्लाह
नूरे मुहम्मद सल्लल्लाह ला-इलाहा इल्लल्लाह

अल्लाह के पैग़ाम को हम तक पहुँचाया किसने?
खन्दा-पेशानी रख कर दीन को फ़ैलाया किसने?
क़ुफ्र की ज़ुल्मत दूर हुई, हक़ का फेहराया झंडा
चारो तरफ गूंजी ये सदा, ला-इलाहा इल्लल्लाह

हस्बी रब्बी जल्लल्लाह माफी क़ल्बी गैरुल्लाह
नूरे मुहम्मद सल्लल्लाह ला-इलाहा इल्लल्लाह

ला-इलाहा इल्लल्लाह, ला-इलाहा इल्लल्लाह
ला-इलाहा इल्लल्लाह, ला-इलाहा इल्लल्लाह

अहले-ईमानों पर वो ज़ुल्मो-तशद्दुद करते थे
शेहरे अरब में रहते थे, बुत की इबादत करते थे
अहले-क़ुफ़र को मक्का से भागने का रस्ता न मिला
चारो तरफ जब गूँज उठा, ला-इलाहा इल्लल्ला

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dar pe bulalo aaka

आँसू रवां हैं, तिशना-लबी है
दर पर बुलालो ज़हरा के बाबा
आक़ा तुम्हारी रह़मत बड़ी है
दर पर बुलालो ज़हरा के बाबा

आँसू रवां हैं, तिशना-लबी है
दर पर बुलालो ज़हरा के बाबा

ख़स्ता ज़िगर हैं, हम बे-ख़बर हैं
नज़रे-करम हो, हम दर-ब-दर हैं
आँखों से नदीयाँ बहने लगी हैं
दर पर बुलालो ज़हरा के बाबा

आँसू रवां हैं, तिशना-लबी है
दर पर बुलालो ज़हरा के बाबा

दिल में है घाव, टूटी है नाव
अब तो बचाओ, मुज़्दा सुनाओ
मुद्दत से मुझ को ख़्वाहिश बड़ी है
दर पर बुलालो ज़हरा के बाबा

आँसू रवां हैं, तिशना-लबी है
दर पर बुलालो ज़हरा के बाबा

शैख़ैन प्यारे, हसनैन प्यारे
हम्ज़ा के सदक़े, ज़हरा के सदक़े
इतना बता दो कब हाज़री है
दर पर बुलालो ज़हरा के बाबा

आँसू रवां हैं, तिशना-लबी है
दर पर बुलालो ज़हरा के बाबा

दिल का दिया अब बुझने लगा है
साँसों से रिश्ता कटने लगा है
चौख़ट तुम्हारी बस ज़िन्दगी है
दर पर बुलालो ज़हरा के बाबा

आँसू रवां हैं, तिशना-लबी है
दर पर बुलालो ज़हरा के बाबा

तेरा उजागर, घर से निकल कर
त़यबा नगर में पहुंचे ये उड़ कर
कोई सलीका ना बन्दग़ी है
दर पर बुलालो ज़हरा के बाबा

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maula ya salli wa sallam

सहर का वक़्त था मा’सूम कलियाँ मुस्कुराती थीं
हवाएं ख़ैर-मक़दम के तराने गुनगुनाती थी
अभी जिब्रील उतरे भी न थे काअ़बे के मिम्बर से
के इतने में सदा आई ये अब्दुल्लाह के घर से
मुबारक हो ! शहे-हर-दोसरा तशरीफ़ ले आए
मुबारक हो ! मुहम्मद मुस्तफा तशरीफ़ ले आए

मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि

मुह़म्मदुन सय्यिदुल-कौनैनी वस्सक़लयनि
वल्फरीक़यनि मिन उ़र्बि-व्व-मिन अ़जमी

मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि

वो मुह़म्मद फ़ख़्रे-आलम, हादी-ए-कुल-इन्स-ओ-जां
सरवरे-कोनैन, सुल्ताने-अरब, शाहे-अजम
एक दिन जिब्रील से कहने लगे शाहे-उमम
तूमने देखा है जहां, बतलाओ तो कैसे हैं हम?
अर्ज़ की जिब्रील ने ए शाहे-दीं ! ए मोह़तरम !
आपका कोई मुमासिल ही नहीं रब की क़सम

मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि

रसूलल्लाह, ह़बीबल्लाह, इमामल-मुर्सलीन
रसूलल्लाह, ह़बीबल्लाह, इमामल-मुर्सलीन

हुवल-ह़बीबुल्लज़ी तुरजा शफ़ाअ़तुहु
लिकुल्लि हौलि-म्मिनल-अहवालि मुक़्तह़िमि

मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि

मेरे मौला सदा तह़िय्यतो-दुरूद के गजरे
अपने मह़बूब पर जो है तेरी तख़लीक़ बेहतरीं
उसी महबूब से वाबस्ता उम्मीदे-शफ़ाअ़त है
के हर हिम्मत-शिकन-मुश्किल में जिस ने दस्तगीरी की
न कोई आप जैसा था, न कोई आप जैसा है
कोई युसूफ से पूछे मुस्तफ़ा का हुस्न कैसा है
ज़मीनो-आसमां में कोई भी मिसाल ना मिली

मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि

रसूलल्लाह, ह़बीबल्लाह, इमामल-मुर्सलीन
रसूलल्लाह, ह़बीबल्लाह, इमामल-मुर्सलीन

या रब्बि बिल-मुस्त़फ़ा बल्लिग़ मक़ास़िदना
वग़फिर लना मा मद़ा या वासिअ़ल-करमी

मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि

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hum khaak hain aur khaak

हम ख़ाक हैं और ख़ाक ही मावा है हमारा
ख़ाकी तो वोह आदम जदे आ’ला है हमारा

अल्लाह हमें ख़ाक करे अपनी त़लब में
येह ख़ाक तो सरकार से तमग़ा है हमारा

जिस ख़ाक पे रखते थे क़दम सय्यिदे अ़ालम
उस ख़ाक पे क़ुरबां दिले शैदा है हमारा

ख़म हो गई पुश्ते फ़लक इस त़ा’ने ज़मीं से
सुन हम पे मदीना है वोह रुत्बा है हमारा

उस ने ल-क़बे ख़ाक शहन्शाह से पाया
जो ह़ैदरे कर्रार कि मौला है हमारा

ऐ मुद्दइ़यो ! ख़ाक को तुम ख़ाक न समझे
इस ख़ाक में मदफ़ूं शहे बत़्ह़ा है हमारा

है ख़ाक से ता’मीर मज़ारे शहे कौनैन
मा’मूर इसी ख़ाक से क़िब्ला है हमारा

हम ख़ाक उड़ाएंगे जो वोह ख़ाक न पाई
आबाद रज़ा जिस पे मदीना है हमारा

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kab gunah se kanara karuga

कब गुनाहों से कनारा मैं करूँगा या रब !
नेक कब ऐ मेरे अल्लाह ! बनूँगा या रब !

कब गुनाहों के मरज़ से मैं शिफ़ा पाउँगा
कब मैं बीमार, मदीने का बनूँगा या रब !

गर तेरे प्यारे का जल्वा न रहा पेशे नज़र
सख़्तियां नज़्अ की क्यूं कर मैं सहूंगा या रब !

नज़्अ के वक़्त मुझे जल्व-ए-महबूब दिखा
तेरा क्या जाएगा मैं शाद मरूंगा या रब !

क़ब्र में गर न मुहम्मद के नज़ारे होंगे
हश्र तक कैसे मैं फिर तन्हा रहूँगा या रब !

डंक मच्छर का सहा जाता नहीं, कैसे मैं फिर
क़ब्र में बिच्छू के डंक आह सहूंगा या रब !

धुप अँधेरे का भी वह्शत का बसेरा होगा
क़ब्र में कैसे अकेला मैं रहूँगा या रब !

गर कफ़न फाड़ के सांपों ने जमाया क़ब्ज़ा
हाए बरबादी ! कहां जा के छुपूँगा या रब !

क़ब्र महबूब के जल्वों से बसा दे मालिक
ये करम कर दे तो मैं शाद रहूँगा या रब !

गर तू नाराज़ हुवा मेरी हलाकत होगी
हाए ! मैं नारे जहन्नम में जलूँगा या रब !

अफ़्व कर और सदा के लिये राज़ी हो जा
गर करम कर दे तो जन्नत में रहूँगा या रब !

इज़्न से तेरे सरे हश्र कहें काश ! हुज़ूर
साथ अत्तार को जन्नत में रखूँगा या रब !

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marne ki hain tamannah

मरने की है तमन्ना ना जीने की आरज़ू
दश्ते-नबी से जाम को पीने की आरज़ू

इस बेख़ुदी के साथ निकल जाए मेरा दम
गलियों में यार की, ये कमीने की आरज़ू

हुस्न तो मिल गया है युसूफ को दोस्तो,
फूलों को मुस्तफ़ा के पसीने की आरज़ू

इतना हसीन हो जो भरे आँखें नूर से
किस्मत जगा दे ऐसे नगीने की आरज़ू

मंजधार में तिरे जो, तूफ़ान से लड़े जो
डूबे कभी ना ऐसे सफीने की आरज़ू

मांगा किसी ने ज़र और मरने के वास्ते
आ कर दरे नबी पे किसी ने की आरज़ू

खाए वतन के नाम पर जो खुद पे गोलियां
या रब ! मुझे भी उस ही सीने की आरज़ू

जो भी वहां पे मर गया बेख़ुद, जी गया
मुझ को वहां पे मरके है जीने की आरज़ू

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karam tumhara rahega aaka

करम तुम्हारा रहेगा आक़ा, हम आसियों का यही गुज़ारा
तुम्हारे दर पे पड़े रहेंगे, तुम्ही ग़रीबो का हो सहारा

तुम्ही हमारे हो शाफ-ए-मेहशर, तुम्ही हमारे ग़रीब-परवर
न भूले दुनियाँ में जब हमें तुम, तो सारा मेहशर ही है तुम्हारा

हाँ ! सदक़ा आले-अ़ली का दे दो, तुम अपने हर एक वली का दे दो
हाँ ! दे दो सदक़ा-ए-ज़हरा दे दो, हाँ ! सब से आली है घर तुम्हारा

करम ये रब ने किया है हम पर, बनाया इस ने तुम्हारा है दर
बताओ जाऊं कहाँ मैं दर-दर, है कौन आक़ा मेरा सहारा

है मेरा ईमां ये सब से आली, मैं अपने मुर्शिद का हूँ सुवाली
हाँ ! नाम-ए-अ़त्तार है जहां में, वही तो सब से तुम्हारा प्यारा

खड़ा है मीज़ान पे ये अयां, कहाँ हो आक़ा फंसी है ये जां
नहीं है हुस्ने-अ़मल, हाँ ! लेकिन, ये बस तुम्हारा है बस तुम्हारा

करम तुम्हारा रहेगा आक़ा, हम आसियों का यही गुज़ारा
तुम्हारे दर पे पड़े रहेंगे, तुम्ही ग़रीबो का हो सहारा

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