mehraz ki raat hain

आज मौला बख़्श फ़ज़्ले रब से है दूल्हा बना
ख़ुशनुमा फूलों का इस के सर पे है सेहरा सजा

इस की शादी ख़ाना आबादी हो रब्बे-मुस्तफ़ा
अज़ तुफ़ैले ग़ौसो-ख़्वाजा, अज़ पए अहमद रज़ा

इन की ज़ौजा या ख़ुदा ! करती रहे पर्दा सदा
अज़ तुफ़ैले हज़रते उस्मां ग़निय्ये बा हया

तू सदा रखना सलामत इन का जोड़ा किर्दिगार
इन को झगड़ों से बचाना अज़ तुफ़ैले चार यार

इन को खुशियां दो जहां में तू अता कर किब्रिया
कुछ न छाए इन पे ग़म की रंज की काली घटा

नेक औलाद इन को मौला आफ़ियत से हो अता
वासिता या रब मदीने की मुबारक ख़ाक का

इस तरह महका करे ये घर का घर प्यारे ख़ुदा
फूल महका करते हैं जैसे मदीने के सदा

या इलाही ! दे सआदत इन को हज की बार बार
बार बार इन को दिखा मीठे मुहम्मद का दियार

ये मियां बीवी रहें जन्नत में यक्जा ऐ ख़ुदा
या इलाही तुझ से है अत्तारे आजिज़ की दुआ