kismat ko kya malom

क़िस्मत-ए-शौक़ आज़मा न सके
उन से हम आँख भी मिला न सके

हम से याँ रंज-ए-हिज्र उठ न सका
वाँ वो मजबूर थे वो आ न सके

डर ये था रो न दें कहीं वो उन्हें
हम हँसी में भी गुदगुदा न सके

हम से दिल आप ने उठा तो लिया
पर कहीं और भी लगा न सके

अब कहाँ तुम कहाँ वो रब्त-ए-वफ़ा
याद भी जिस की हम दिला न सके

दिल में क्या क्या थे अर्ज़-ए-हाल के शौक़
उस ने पूछा तो कुछ बता न सके

हम तो क्या भूलते उन्हें ‘हसरत’
दिल से वो भी हमें भुला न सके

Read More...

gham ko humne inayat samjha

चाहत को ज़िंदगी की ज़रूरत समझ लिया
अब ग़म को हम ने तेरी इनायत समझ लिया

खाते रहे हैं ज़ीस्त में क्या क्या मुग़ालते
क़ामत को इस हसीं की क़यामत समझ लिया

किरदार क्या रहा है कभी ये भी सोचते
सज्दे किए तो उन को इबादत समझ लिया

रेशम से नर्म लहजे के पीछे मफ़ाद था
इस ताजिरी को हम ने शराफ़त समझ लिया

अब है कोई हुसैन न लश्कर हुसैन का
सर कट गए तो हम ने शहादत समझ लिया

इस तरह उम्र चैन से काटी ‘शकील’ ने
दुख उस से जो मिला उसे राहत समझ लिया

Read More...

jazbaat ka elaan hai aakhe

हर तरह के जज़्बात का एलान हैं आँखें
शबनम कभी शो’ला कभी तूफ़ान हैं आँखें

आँखों से बड़ी कोई तराज़ू नहीं होती
तुलता है बशर जिस में वो मीज़ान हैं आँखें

आँखें ही मिलाती हैं ज़माने में दिलों को
अंजान हैं हम तुम अगर अंजान हैं आँखें

लब कुछ भी कहें इस से हक़ीक़त नहीं खुलती
इंसान के सच झूट की पहचान हैं आँखें

आँखें न झुकीं तेरी किसी ग़ैर के आगे
दुनिया में बड़ी चीज़ मिरी जान! हैं आँखें

Read More...

safar me dhoop hain

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो

कहीं नहीं कोई सूरज धुआँ धुआँ है फ़ज़ा
ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

Read More...

jo dil se milta hai

मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है
मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है

कहीं है ईद की शादी कहीं मातम है मक़्तल में
कोई क़ातिल से मिलता है कोई बिस्मिल से मिलता है

पस-ए-पर्दा भी लैला हाथ रख लेती है आँखों पर
ग़ुबार-ए-ना-तवान-ए-क़ैस जब महमिल से मिलता है

भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमा-ए-ख़ूबी
मुलाक़ाती तिरा गोया भरी महफ़िल से मिलता है

मुझे आता है क्या क्या रश्क वक़्त-ए-ज़ब्ह उस से भी
गला जिस दम लिपट कर ख़ंजर-ए-क़ातिल से मिलता है

ब-ज़ाहिर बा-अदब यूँ हज़रत-ए-नासेह से मिलता हूँ
मुरीद-ए-ख़ास जैसे मुर्शिद-ए-कामिल से मिलता है

मिसाल-ए-गंज-ए-क़ारूँ अहल-ए-हाजत से नहीं छुपता
जो होता है सख़ी ख़ुद ढूँड कर साइल से मिलता है

जवाब इस बात का उस शोख़ को क्या दे सके कोई
जो दिल ले कर कहे कम-बख़्त तू किस दिल से मिलता है

छुपाए से कोई छुपती है अपने दिल की बेताबी
कि हर तार-ए-नफ़स अपना रग-ए-बिस्मिल से मिलता है

अदम की जो हक़ीक़त है वो पूछो अहल-ए-हस्ती से
मुसाफ़िर को तो मंज़िल का पता मंज़िल से मिलता है

ग़ज़ब है ‘दाग़’ के दिल से तुम्हारा दिल नहीं मिलता
तुम्हारा चाँद सा चेहरा मह-ए-कामिल से मिलता है

Read More...

meri jaan rooth ke jana

ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा

अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा
सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा

तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती है
किस के उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा

आरज़ू ही न रही सुब्ह-ए-वतन की मुझ को
शाम-ए-ग़ुर्बत है अजब वक़्त सुहाना तेरा

ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रक्खा है
काम आता है बुरे वक़्त में आना तेरा

ऐ दिल-ए-शेफ़्ता में आग लगाने वाले
रंग लाया है ये लाखे का जमाना तेरा

तू ख़ुदा तो नहीं ऐ नासेह-ए-नादाँ मेरा
क्या ख़ता की जो कहा मैं ने न माना तेरा

रंज क्या वस्ल-ए-अदू का जो तअ’ल्लुक़ ही नहीं
मुझ को वल्लाह हँसाता है रुलाना तेरा

काबा ओ दैर में या चश्म-ओ-दिल-ए-आशिक़ में
इन्हीं दो-चार घरों में है ठिकाना तेरा

तर्क-ए-आदत से मुझे नींद नहीं आने की
कहीं नीचा न हो ऐ गोर सिरहाना तेरा

मैं जो कहता हूँ उठाए हैं बहुत रंज-ए-फ़िराक़
वो ये कहते हैं बड़ा दिल है तवाना तेरा

बज़्म-ए-दुश्मन से तुझे कौन उठा सकता है
इक क़यामत का उठाना है उठाना तेरा

अपनी आँखों में अभी कौंद गई बिजली सी
हम न समझे कि ये आना है कि जाना तेरा

यूँ तो क्या आएगा तू फ़र्त-ए-नज़ाकत से यहाँ
सख़्त दुश्वार है धोके में भी आना तेरा

‘दाग़’ को यूँ वो मिटाते हैं ये फ़रमाते हैं
तू बदल डाल हुआ नाम पुराना तेरा

Read More...

hamari mohabbat kya hai

अभी हमारी मोहब्बत किसी को क्या मालूम
किसी के दिल की हक़ीक़त किसी को क्या मालूम

यक़ीं तो ये है वो ख़त का जवाब लिक्खेंगे
मगर नविश्ता-ए-क़िस्मत किसी को क्या मालूम

ब-ज़ाहिर उन को हया-दार लोग समझे हैं
हया में जो है शरारत किसी को क्या मालूम

क़दम क़दम पे तुम्हारे हमारे दिल की तरह
बसी हुई है क़यामत किसी को क्या मालूम

ये रंज ओ ऐश हुए हिज्र ओ वस्ल में हम को
कहाँ है दोज़ख़ ओ जन्नत किसी को क्या मालूम

जो सख़्त बात सुने दिल तो टूट जाता है
इस आईने की नज़ाकत किसी को क्या मालूम

किया करें वो सुनाने को प्यार की बातें
उन्हें है मुझ से अदावत किसी को क्या मालूम

ख़ुदा करे न फँसे दाम-ए-इश्क़ में कोई
उठाई है जो मुसीबत किसी को क्या मालूम

अभी तो फ़ित्ने ही बरपा किए हैं आलम में
उठाएँगे वो क़यामत किसी को क्या मालूम

जनाब-ए-‘दाग़’ के मशरब को हम से तो पूछो
छुपे हुए हैं ये हज़रत किसी को क्या मालूम

Read More...

hum apna hi ashq hain

हम आप ही को अपना मक़्सूद जानते हैं
अपने सिवाए किस को मौजूद जानते हैं

इज्ज़-ओ-नियाज़ अपना अपनी तरफ़ है सारा
इस मुश्त-ए-ख़ाक को हम मस्जूद जानते हैं

सूरत-पज़ीर हम बिन हरगिज़ नहीं वे माने
अहल-ए-नज़र हमीं को मा’बूद जानते हैं

इश्क़ उन की अक़्ल को है जो मा-सिवा हमारे
नाचीज़ जानते हैं ना-बूद जानते हैं

अपनी ही सैर करने हम जल्वा-गर हुए थे
इस रम्ज़ को व-लेकिन मादूद जानते हैं

यारब कसे है नाक़ा हर ग़ुंचा इस चमन का
राह-ए-वफ़ा को हम तो मसदूद जानते हैं

ये ज़ुल्म-ए-बे-निहायत दुश्वार-तर कि ख़ूबाँ
बद-वज़इयों को अपनी महमूद जानते हैं

क्या जाने दाब सोहबत अज़ ख़्वेश रफ़्तगाँ का
मज्लिस में शैख़-साहिब कुछ कूद जानते हैं

मर कर भी हाथ आवे तो ‘मीर’ मुफ़्त है वो
जी के ज़ियान को भी हम सूद जानते हैं

Read More...

kya hai ishq

क्या हक़ीक़त कहूँ कि क्या है इश्क़
हक़-शनासों के हाँ ख़ुदा है इश्क़

दिल लगा हो तो जी जहाँ से उठा
मौत का नाम प्यार का है इश्क़

और तदबीर को नहीं कुछ दख़्ल
इश्क़ के दर्द की दवा है इश्क़

क्या डुबाया मुहीत में ग़म के
हम ने जाना था आश्ना है इश्क़

इश्क़ से जा नहीं कोई ख़ाली
दिल से ले अर्श तक भरा है इश्क़

कोहकन क्या पहाड़ काटेगा
पर्दे में ज़ोर-आज़मा है इश्क़

इश्क़ है इश्क़ करने वालों को
कैसा कैसा बहम किया है इश्क़

कौन मक़्सद को इश्क़ बिन पहुँचा
आरज़ू इश्क़ मुद्दआ है इश्क़

‘मीर’ मरना पड़े है ख़ूबाँ पर
इश्क़ मत कर कि बद बला है इश्क़

Read More...

kiya hai pyar jise

किया है प्यार जिसे हम ने ज़िंदगी की तरह
वो आश्ना भी मिला हम से अजनबी की तरह

किसे ख़बर थी बढ़ेगी कुछ और तारीकी
छुपेगा वो किसी बदली में चाँदनी की तरह

बढ़ा के प्यास मिरी उस ने हाथ छोड़ दिया
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल-लगी की तरह

सितम तो ये है कि वो भी न बन सका अपना
क़ुबूल हम ने किए जिस के ग़म ख़ुशी की तरह

कभी न सोचा था हम ने ‘क़तील’ उस के लिए
करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह

Read More...