gham ko humne inayat samjha

चाहत को ज़िंदगी की ज़रूरत समझ लिया
अब ग़म को हम ने तेरी इनायत समझ लिया

खाते रहे हैं ज़ीस्त में क्या क्या मुग़ालते
क़ामत को इस हसीं की क़यामत समझ लिया

किरदार क्या रहा है कभी ये भी सोचते
सज्दे किए तो उन को इबादत समझ लिया

रेशम से नर्म लहजे के पीछे मफ़ाद था
इस ताजिरी को हम ने शराफ़त समझ लिया

अब है कोई हुसैन न लश्कर हुसैन का
सर कट गए तो हम ने शहादत समझ लिया

इस तरह उम्र चैन से काटी ‘शकील’ ने
दुख उस से जो मिला उसे राहत समझ लिया