jinko har haal me khush pata ho

जिन को हर हालत में ख़ुश और शादमाँ पाता हूँ मैं
उन के गुलशन में बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ पाता हूँ मैं

सुब्ह की मंज़िल का तारों से पता क्या पूछना
ज़ुल्मत-ए-शब कारवाँ-दर-कारवाँ पाता हूँ मैं

चाँद के उस पार सूरज से उधर तारों से दूर
रक़्स करते रोज़-ओ-शब लाखों जहाँ पाता हूँ मैं

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asar dekha ab dua raat bhar ki

असर देखा दुआ जब रात भर की
ज़िया कुछ कुछ है तारों में सहर की

हुए रुख़्सत जहाँ से सुब्ह होते
कहानी हिज्र की यूँ मुख़्तसर की

तड़प उट्ठे लहद के सोने वाले
ज़मीं की सम्त क्यूँ तुम ने नज़र की

सहर देखें ये हसरत ले गए हम
बताएँ क्या तुम्हें क्यूँकर सहर की

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nhi hai koi fikar kisi ko

नहीं ये फ़िक्र कोई रहबर-ए-कामिल नहीं मिलता
कोई दुनिया में मानूस-ए-मिज़ाज-ए-दिल नहीं मिलता

कभी साहिल पे रह कर शौक़ तूफ़ानों से टकराएँ
कभी तूफ़ाँ में रह कर फ़िक्र है साहिल नहीं मिलता

ये आना कोई आना है कि बस रस्मन चले आए
ये मिलना ख़ाक मिलना है कि दिल से दिल नहीं मिलता

शिकस्ता-पा को मुज़्दा ख़स्तगान-ए-राह को मुज़्दा
कि रहबर को सुराग़-ए-जादा-ए-मंज़िल नहीं मिलता

वहाँ कितनों को तख़्त ओ ताज का अरमाँ है क्या कहिए
जहाँ साइल को अक्सर कासा-ए-साइल नहीं मिलता

ये क़त्ल-ए-आम और बे-इज़्न क़त्ल-ए-आम क्या कहिए
ये बिस्मिल कैसे बिस्मिल हैं जिन्हें क़ातिल नहीं मिलता

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ashiki ja faza hoti hai

आशिक़ी जाँ-फ़ज़ा भी होती है
और सब्र-आज़मा भी होती है

रूह होती है कैफ़-परवर भी
और दर्द-आश्ना भी होती है

हुस्न को कर न दे ये शर्मिंदा
इश्क़ से ये ख़ता भी होती है

बन गई रस्म बादा-ख़्वारी भी
ये नमाज़ अब क़ज़ा भी होती है

जिस को कहते हैं नाला-ए-बरहम
साज़ में वो सदा भी होती है

क्या बता दो ‘मजाज़’ की दुनिया
कुछ हक़ीक़त-नुमा भी होती है

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jigar aur dil ko bachana hai

जिगर और दिल को बचाना भी है
नज़र आप ही से मिलाना भी है

मोहब्बत का हर भेद पाना भी है
मगर अपना दामन बचाना भी है

जो दिल तेरे ग़म का निशाना भी है
क़तील-ए-जफ़ा-ए-ज़माना भी है

ये बिजली चमकती है क्यूँ दम-ब-दम
चमन में कोई आशियाना भी है

ख़िरद की इताअत ज़रूरी सही
यही तो जुनूँ का ज़माना भी है

न दुनिया न उक़्बा कहाँ जाइए
कहीं अहल-ए-दिल का ठिकाना भी है

मुझे आज साहिल पे रोने भी दो
कि तूफ़ान में मुस्कुराना भी है

ज़माने से आगे तो बढ़िए ‘मजाज़’
ज़माने को आगे बढ़ाना भी है

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Sharminda Shayari

तुम क्या जानो अपने आप से कितना मैं शर्मिंदा हूँ
छूट गया है साथ तुम्हारा और अभी तक ज़िंदा हूँ

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tamanna ban gai hai ab kya

तमन्ना बन गई है माया-ए-इल्ज़ाम क्या होगा
मगर दिल है अभी तक तिश्ना-ए-पैग़ाम क्या होगा

वो बेताब-ए-तमाशा ही सही ऐ ताब-ए-नज़्ज़ारा
लरज़ उठता है दिल ये सोच कर अंजाम क्या होगा

यहाँ जो कुछ भी है वो परतव-ए-एहसास है साक़ी
ब-जुज़ बादा जवाब-ए-गर्दिश-ए-अय्याम क्या होगा

कभी जिस के यक़ीं से काएनात-ए-इश्क़ रौशन थी
वही अब है असीर-ए-हल्क़ा-ए-औहाम क्या होगा

जुनून-ए-शौक़ का आलम हमा मस्ती सही लेकिन
ये आलम भी जवाब-ए-शोख़ी-ए-पैग़ाम क्या होगा

चले तो हो मिज़ाज-ए-यार की पुर्सिश को ऐ ‘बेकल’
मगर ये सोच लो अंदाज़-ए-इस्तिफ़्हाम क्या होगा

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hum chattano ki tarah sahil hai

हम चटानों की तरह साहिल पे ढाले जाएँगे
फिर हमें सैलाब के धारे बहा ले जाएँगे

ऐसी रुत आई अँधेरे बन गए मिम्बर के बुत
गुंबद-ओ-मेहराब क्या जुगनू बचा ले जाएँगे

पहले सब ता’मीर करवाएँगे काग़ज़ के मकाँ
फिर हवा के रुख़ पे अंगारे उछाले जाएँगे

हम वफ़ादारों में हैं उस के मगर मश्कूक हैं
इक न इक दिन उस की महफ़िल से निकाले जाएँगे

जंग में ले जाएँगे सरहद पे सब तीर-ओ-तफ़ंग
हम तो अपने साथ मिट्टी की दुआ ले जाएँगे

शहर को तहज़ीब के झोंकों ने नंगा कर दिया
गाँव के सर का दुपट्टा भी उड़ा ले जाएँगे

दास्तान-ए-इश्क़ को ‘बेकल’ न दे गीतों का रूप
दोस्त हैं बेबाक सब लहजे चुरा ले जाएँगे

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