chandi me rokhe jeva tera

चाँदनी में रुख़-ए-ज़ेबा नहीं देखा जाता
माह ओ ख़ुर्शीद को यकजा नहीं देखा जाता

यूँ तो उन आँखों से क्या क्या नहीं देखा जाता
हाँ मगर अपना ही जल्वा नहीं देखा जाता

दीदा-ओ-दिल की तबाही मुझे मंज़ूर मगर
उन का उतरा हुआ चेहरा नहीं देखा जाता

ज़ब्त-ए-ग़म हाँ वही अश्कों का तलातुम इक बार
अब तो सूखा हुआ दरिया नहीं देखा जाता

ज़िंदगी आ तुझे क़ातिल के हवाले कर दूँ
मुझ से अब ख़ून-ए-तमन्ना नहीं देखा जाता

अब तो झूटी भी तसल्ली ब-सर-ओ-चश्म क़ुबूल
दिल का रह रह के तड़पना नहीं देखा जाता

Read More...

rukhsat hua to aakh mila kar nhi gya

रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया
वो क्यूँ गया है ये भी बता कर नहीं गया

वो यूँ गया कि बाद-ए-सबा याद आ गई
एहसास तक भी हम को दिला कर नहीं गया

यूँ लग रहा है जैसे अभी लौट आएगा
जाते हुए चराग़ बुझा कर नहीं गया

बस इक लकीर खींच गया दरमियान में
दीवार रास्ते में बना कर नहीं गया

शायद वो मिल ही जाए मगर जुस्तुजू है शर्त
वो अपने नक़्श-ए-पा तो मिटा कर नहीं गया

घर में है आज तक वही ख़ुश्बू बसी हुई
लगता है यूँ कि जैसे वो आ कर नहीं गया

तब तक तो फूल जैसी ही ताज़ा थी उस की याद
जब तक वो पत्तियों को जुदा कर नहीं गया

रहने दिया न उस ने किसी काम का मुझे
और ख़ाक में भी मुझ को मिला कर नहीं गया

वैसी ही बे-तलब है अभी मेरी ज़िंदगी
वो ख़ार-ओ-ख़स में आग लगा कर नहीं गया

‘शहज़ाद’ ये गिला ही रहा उस की ज़ात से
जाते हुए वो कोई गिला कर नहीं गया

Read More...

ye jonu tha

ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई
फिर फँसा ज़ुल्फ़ों में दिल फिर वही आफ़त आई

Read More...

aarjo thi

आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या
क्या बताऊँ कि मेरे दिल में है अरमाँ क्या क्या

Read More...

teri anjuman me ye dekha

तिरी अंजुमन में ज़ालिम अजब एहतिमाम देखा
कहीं ज़िंदगी की बारिश कहीं क़त्ल-ए-आम देखा

मेरी अर्ज़-ए-शौक़ पढ़ लें ये कहाँ उन्हें गवारा
वहीं चाक कर दिया ख़त जहाँ मेरा नाम देखा

बड़ी मिन्नतों से आ कर वो मुझे मना रहे हैं
मैं बचा रहा हूँ दामन मिरा इंतिक़ाम देखा

ऐ ‘शकील’ रूह-परवर तिरी बे-ख़ुदी के नग़्मे
मगर आज तक न हम ने तिरे लब पे जाम देखा

Read More...

kaise kahdo mulakaat nhi hoti

कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है

आप लिल्लाह न देखा करें आईना कभी
दिल का आ जाना बड़ी बात नहीं होती है

छुप के रोता हूँ तिरी याद में दुनिया भर से
कब मिरी आँख से बरसात नहीं होती है

हाल-ए-दिल पूछने वाले तिरी दुनिया में कभी
दिन तो होता है मगर रात नहीं होती है

जब भी मिलते हैं तो कहते हैं कि कैसे हो ‘शकील’
इस से आगे तो कोई बात नहीं होती है

Read More...

Zindagi tujh pe iljaam hai

ज़िंदगी तुझ पे अब इल्ज़ाम कोई क्या रक्खे
अपना एहसास ही ऐसा है जो तन्हा रक्खे

किन शिकस्तों के शब-ओ-रोज़ से गुज़रा होगा
वो मुसव्विर जो हर इक नक़्श अधूरा रक्खे

ख़ुश्क मिट्टी ही ने जब पाँव जमाने न दिए
बहते दरिया से फिर उम्मीद कोई क्या रक्खे

आ ग़म-ए-दोस्त उसी मोड़ पे हो जाऊँ जुदा
जो मुझे मेरा ही रहने दे न तेरा रक्खे

आरज़ूओं के बहुत ख़्वाब तो देखो हो ‘वसीम’
जाने किस हाल में बे-दर्द ज़माना रक्खे

Read More...