हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं
वही ज़िल्ले-सुब्हानी सामने है
लो अब सारी कहानी सामने है
तुम्हारी ही जु़बानी, सामने है
तुम्हारे अश्व खुद निकले हैं टट्टू
अगरचे राजधानी सामने है
गिराए तख़्त, उछले ताज फिर भी
वही ज़िल्ले-सुब्हानी सामने है
मेरी उरियानियां भी कम पड़ेंगीं
बशर इक ख़ानदानी सामने है
तेरे माथे पे फिर बलवों के टीके-
बुज़ुर्गों की निशानी सामने है !
अभी जम्हूरियत की उम्र क्या है
समूची ज़िन्दगानी सामने है
(ज़िल्ले-सुब्हानी=शासक-प्रवृत्ति, उरियानी=नंगापन, बलवे=दंगे, जम्हूरियत=लोकतंत्र, बशर=व्यक्ति)
-संजय ग्रोवर
147-A, Pocket-A, Dilshad Garden, Delhi-110095
jisko tum bhool gye
जिस को तुम भूल गए याद करे कौन उस को
जिस को तुम याद हो वो और किसे याद करे
unki yaad aa gai
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन की याद
कट रही है ज़िंदगी आराम से
sach hain ehshan
सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है
चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी
zee chahata hain
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है
ab judai ke safar
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
ye zulf agar khul jaye
ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा
इस रात की तक़दीर सँवर जाए तो अच्छा
जिस तरह से थोड़ी सी तिरे साथ कटी है
बाक़ी भी उसी तरह गुज़र जाए तो अच्छा
दुनिया की निगाहों में भला क्या है बुरा क्या
ये बोझ अगर दिल से उतर जाए तो अच्छा
वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बरबाद किया है
इल्ज़ाम किसी और के सर जाए तो अच्छा
uski yaad aai hai
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
ishq lafze mohabbat
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है