वही ज़िल्ले-सुब्हानी सामने है

लो अब सारी कहानी सामने है
तुम्हारी ही जु़बानी, सामने है

तुम्हारे अश्व खुद निकले हैं टट्टू
अगरचे राजधानी सामने है

गिराए तख़्त, उछले ताज फिर भी
वही ज़िल्ले-सुब्हानी सामने है

मेरी उरियानियां भी कम पड़ेंगीं
बशर इक ख़ानदानी सामने है

तेरे माथे पे फिर बलवों के टीके-
बुज़ुर्गों की निशानी सामने है !

अभी जम्हूरियत की उम्र क्या है
समूची ज़िन्दगानी सामने है

(ज़िल्ले-सुब्हानी=शासक-प्रवृत्ति, उरियानी=नंगापन, बलवे=दंगे, जम्हूरियत=लोकतंत्र, बशर=व्यक्ति)

-संजय ग्रोवर

147-A, Pocket-A, Dilshad Garden, Delhi-110095