तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम
kamal-e-ishq hai
कमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं
ये किस के हाथ से दामन छुड़ा रहा हूँ मैं
तुम्हीं तो हो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनिया
बचा सको तो बचा लो कि डूबता हूँ मैं
ये मेरे इश्क़ की मजबूरियाँ मआज़-अल्लाह
तुम्हारा राज़ तुम्हीं से छुपा रहा हूँ मैं
इस इक हिजाब पे सौ बे-हिजाबियाँ सदक़े
जहाँ से चाहता हूँ तुम को देखता हूँ मैं
बताने वाले वहीं पर बताते हैं मंज़िल
हज़ार बार जहाँ से गुज़र चुका हूँ मैं
कभी ये ज़ोम कि तू मुझ से छुप नहीं सकता
कभी ये वहम कि ख़ुद भी छुपा हुआ हूँ मैं
मुझे सुने न कोई मस्त-ए-बादा-ए-इशरत
‘मजाज़’ टूटे हुए दिल की इक सदा हूँ मैं
nhi h koi rahbar
नहीं ये फ़िक्र कोई रहबर-ए-कामिल नहीं मिलता
कोई दुनिया में मानूस-ए-मिज़ाज-ए-दिल नहीं मिलता
कभी साहिल पे रह कर शौक़ तूफ़ानों से टकराएँ
कभी तूफ़ाँ में रह कर फ़िक्र है साहिल नहीं मिलता
ये आना कोई आना है कि बस रस्मन चले आए
ये मिलना ख़ाक मिलना है कि दिल से दिल नहीं मिलता
शिकस्ता-पा को मुज़्दा ख़स्तगान-ए-राह को मुज़्दा
कि रहबर को सुराग़-ए-जादा-ए-मंज़िल नहीं मिलता
वहाँ कितनों को तख़्त ओ ताज का अरमाँ है क्या कहिए
जहाँ साइल को अक्सर कासा-ए-साइल नहीं मिलता
ये क़त्ल-ए-आम और बे-इज़्न क़त्ल-ए-आम क्या कहिए
ये बिस्मिल कैसे बिस्मिल हैं जिन्हें क़ातिल नहीं मिलता
bhatki huyi hayat hai
भटकी हुई हयात के रहबर हुसैन हैं
सेहरा हैं करबला तो समन्दर हुसैन हैं
खुशबू पयामे हक की हैं सारे जहान में
गुलज़ार-ए-मुस्तफा के गुल-ए-तर हुसैन हैं
इश्क-ए-हुसैन से मेरी उक़बा संवर गई
सब्र-ओ-रोज़ा के आज भी पैकर हुसैन हैं
बेशक हयात-ओ-मौत का हैं फैसला यही
जी कर यजीद मर गया, घर-घर हुसैन हैं
जान अपनी दे के जिन्दगी बख्शी हैं दीन को
हर दिल का,हर निगाह का मेहवर हुसैन हैं
हैदर के नूर-ए-ईन जिगर गोशा-ए-रसूल
मासूम और बाला-ओ-बरतर हुसैन हैं
‘शहजाद’ उनके दम से ही रौशन हैं कायनात
दीन-ए-मुबीन के माह-ए-मुनव्वर हुसैन हैं
meri halat dekhiye
मेरी हालत देखिए और उन की सूरत देखिए
फिर निगाह-ए-ग़ौर से क़ानून-ए-क़ुदरत देखिए
सैर-ए-महताब-ओ-कवाकिब से तबस्सुम ता-बके
रो रही है वो किसी की शम-ए-तुर्बत देखिए
आप इक जल्वा सरासर मैं सरापा इक नज़र
अपनी हाजत देखिए मेरी ज़रूरत देखिए
अपने सामान-ए-ताय्युश से अगर फ़ुर्सत मिले
बेकसों का भी कभी तर्ज़-ए-मईशत देखिए
मुस्कुरा कर इस तरह आया न कीजे सामने
किस क़दर कमज़ोर हूँ मैं मेरी सूरत देखिए
आप को लाया हूँ वीरानों में इबरत के लिए
हज़रत-ए-दिल देखिए अपनी हक़ीक़त देखिए
सिर्फ़ इतने के लिए आँखें हमें बख़्शी गईं
देखिए दुनिया के मंज़र और ब-इबरत देखिए
मौत भी आई तो चेहरे पर तबस्सुम ही रहा
ज़ब्त पर है किस क़दर हम को भी क़ुदरत देखिए
ये भी कोई बात है हर वक़्त दौलत का ख़याल
आदमी हैं आप अगर तो आदमियत देखिए
फूट निकलेगा जबीं से एक चश्मा हुस्न का
सुब्ह उठ कर ख़ंदा-ए-सामान-ए-क़ुदरत देखिए
रश्हा-ए-शबनम बहार-ए-गुल फ़रोग़-ए-मेहर-ओ-माह
वाह क्या अशआर हैं दीवान-ए-फ़ितरत देखिए
इस से बढ़ कर और इबरत का सबक़ मुमकिन नहीं
जो नशात-ए-ज़िंदगी थे उन की तुर्बत देखिए
थी ख़ता उन की मगर जब आ गए वो सामने
झुक गईं मेरी ही आँखें रस्म-ए-उल्फ़त देखिए
ख़ुश-नुमा या बद-नुमा हो दहर की हर चीज़ में
‘जोश’ की तख़्ईल कहती है कि नुदरत देखिए
kafir ho main kufr ka
काफ़िर बनूँगा कुफ़्र का सामाँ तो कीजिए
पहले घनेरी ज़ुल्फ़ परेशाँ तो कीजिए
उस नाज़-ए-होश को कि है मूसा पे ताना-ज़न
इक दिन नक़ाब उलट के पशीमाँ तो कीजिए
उश्शाक़ बंदगान-ए-ख़ुदा हैं ख़ुदा नहीं
थोड़ा सा नर्ख़-ए-हुस्न को अर्ज़ां तो कीजिए
क़ुदरत को ख़ुद है हुस्न के अल्फ़ाज़ का लिहाज़
ईफ़ा भी हो ही जाएगा पैमाँ तो कीजिए
ता-चंद रस्म-ए-जामा-दरी की हिकायतें
तकलीफ़ यक-तबस्सुम-ए-पिन्हाँ तो कीजिए
यूँ सर न होगी ‘जोश’ कभी इश्क़ की मुहिम
दिल को ख़िरद से दस्त-ओ-गरेबाँ तो कीजिए
fir sar kisi ke dar
फिर सर किसी के दर पे झुकाए हुए हैं हम
पर्दे फिर आसमाँ के उठाए हुए हैं हम
छाई हुई है इश्क़ की फिर दिल पे बे-ख़ुदी
फिर ज़िंदगी को होश में लाए हुए हैं हम
जिस का हर एक जुज़्व है इक्सीर-ए-ज़िंदगी
फिर ख़ाक में वो जिंस मिलाए हुए हैं हम
हाँ कौन पूछता है ख़ुशी का नहुफ़्ता राज़
फिर ग़म का बार दिल पे उठाए हुए हैं हम
हाँ कौन दर्स-ए-इश्क़-ए-जुनूँ का है ख़्वास्त-गार
आए कि हर सबक़ को भुलाए हुए हैं हम
आए जिसे हो जादा-ए-रिफ़अत की आरज़ू
फिर सर किसी के दर पे झुकाए हुए हैं हम
बैअत को आए जिस को हो तहक़ीक़ का ख़याल
कौन-ओ-मकाँ के राज़ को पाए हुए हैं हम
हस्ती के दाम-ए-सख़्त से उकता गया है कौन
कह दो कि फिर गिरफ़्त में आए हुए हैं हम
हाँ किस के पा-ए-दिल में है ज़ंजीर-ए-आब-ओ-गिल
कह दो कि दाम-ए-ज़ुल्फ़ में आए हुए हैं हम
हाँ किस को जुस्तुजू है नसीम-ए-फ़राग़ की
आसूदगी को आग लगाए हुए हैं हम
हाँ किस को सैर-ए-अर्ज़-ओ-समा का है इश्तियाक़
धूनी फिर उस गली में रमाए हुए हैं हम
जिस पर निसार कौन-ओ-मकाँ की हक़ीक़तें
फिर ‘जोश’ उस फ़रेब में आए हुए हैं हम
tera ashra mujhe hai
हर हाल में रहा जो तिरा आसरा मुझे
मायूस कर सका न हुजूम-ए-बला मुझे
हर नग़्मे ने उन्हीं की तलब का दिया पयाम
हर साज़ ने उन्हीं की सुनाई सदा मुझे
हर बात में उन्हीं की ख़ुशी का रहा ख़याल
हर काम से ग़रज़ है उन्हीं की रज़ा मुझे
रहता हूँ ग़र्क़ उन के तसव्वुर में रोज़ ओ शब
मस्ती का पड़ गया है कुछ ऐसा मज़ा मुझे
रखिए न मुझ पे तर्क-ए-मोहब्बत की तोहमतें
जिस का ख़याल तक भी नहीं है रवा मुझे
काफ़ी है उन के पा-ए-हिना-बस्ता का ख़याल
हाथ आई ख़ूब सोज़-ए-जिगर की दवा मुझे
क्या कहते हो कि और लगा लो किसी से दिल
तुम सा नज़र भी आए कोई दूसरा मुझे
बेगाना-ए-अदब किए देती है क्या करूँ
उस महव-ए-नाज़ की निगह-ए-आशना मुझे
उस बे-निशाँ के मिलने की ‘हसरत’ हुई उम्मीद
आब-ए-बक़ा से बढ़ के है ज़हर-ए-फ़ना मुझे
us bot ke pujari hai
उस बुत के पुजारी हैं मुसलमान हज़ारों
बिगड़े हैं इसी कुफ़्र में ईमान हज़ारों
दुनिया है कि उन के रुख़ ओ गेसू पे मिटी है
हैरान हज़ारों हैं परेशान हज़ारों
तन्हाई में भी तेरे तसव्वुर की बदौलत
दिल-बस्तगी-ए-ग़म के हैं सामान हज़ारों
ऐ शौक़ तिरी पस्ती-ए-हिम्मत का बुरा हो
मुश्किल हुए जो काम थे आसान हज़ारों
आँखों ने तुझे देख लिया अब उन्हें क्या ग़म
हालाँकि अभी दिल को हैं अरमान हज़ारों
छाने हैं तिरे इश्क़ में आशुफ़्ता-सरी ने
दुनिया-ए-मुसीबत के बयाबान हज़ारों
इक बार था सर गर्दन-ए-‘हसरत’ पे रहेंगे
क़ातिल तिरी शमशीर के एहसान हज़ारों
Chahat meri nhi hai
चाहत मिरी चाहत ही नहीं आप के नज़दीक
कुछ मेरी हक़ीक़त ही नहीं आप के नज़दीक
कुछ क़द्र तो करते मिरे इज़हार वफ़ा की
शायद ये मोहब्बत ही नहीं आप के नज़दीक
यूँ ग़ैर से बेबाक इशारे सर-ए-महफ़िल
क्या ये मिरी ज़िल्लत ही नहीं आप के नज़दीक
उश्शाक़ पे कुछ हद भी मुक़र्रर है सितम की
या उस की निहायत ही नहीं आप के नज़दीक
अगली सी न रातें हैं न घातें हैं न बातें
क्या अब मैं वो ‘हसरत’ ही नहीं आप के नज़दीक