kamal-e-ishq hai

कमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं
ये किस के हाथ से दामन छुड़ा रहा हूँ मैं

तुम्हीं तो हो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनिया
बचा सको तो बचा लो कि डूबता हूँ मैं

ये मेरे इश्क़ की मजबूरियाँ मआज़-अल्लाह
तुम्हारा राज़ तुम्हीं से छुपा रहा हूँ मैं

इस इक हिजाब पे सौ बे-हिजाबियाँ सदक़े
जहाँ से चाहता हूँ तुम को देखता हूँ मैं

बताने वाले वहीं पर बताते हैं मंज़िल
हज़ार बार जहाँ से गुज़र चुका हूँ मैं

कभी ये ज़ोम कि तू मुझ से छुप नहीं सकता
कभी ये वहम कि ख़ुद भी छुपा हुआ हूँ मैं

मुझे सुने न कोई मस्त-ए-बादा-ए-इशरत
‘मजाज़’ टूटे हुए दिल की इक सदा हूँ मैं