amir khusro quotes

खुसरो बाजी प्रेम की,
मैं खेलूं पी के संग।
जीत गई तो पी मेरे,
हारी तो पी के संग।।

खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार।
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।।

बल बल जाऊं मैं, तोरे रंग रेजवा;
अपनी सी रंग दीन्ही रे, मोसे नैना मिलाइके।

नदी किनारे मै खड़ी सो पानी झिलमिल होए।
पी गोरी मैं सांवरी , अब किस विध मिलना होय।।

अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई।
जब छवि देखी पीहू की सो अपनी भूल गई।।

संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।
वे नर ऐसे जा रोयेंगे, जैसे रणरेही का खेत।

आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढांप तोहे दूं।
न मैं देखूं और न कोई, न तोहे देखन दूं।

रैन बिना जग दुखी और दुखी चंद्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैन।।

साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़े मोहे को चैन।
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन।।

खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिंदू जोय।
पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।।

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bahut kathin hai dagar pnghat ki

बहुत कठिन है डगर पनघट की
कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी

पनिया भरन को मैं जो गई थी
दौड़ झपट मोरी मटकी पटकी

बहुत कठिन है डगर पनघट की
‘ख़ुसरव’ निज़ाम के बल-बल जइए

लाज रखो मेरे घूँघट पट की
कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी
बहुत कठिन है डगर पनघट की

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tori surat ke balihari nizam

तोरी सूरत के बलिहारी निजाम
तोरी सूरत के बलिहारी
सब सखियन में चुनर मेरी मैली
देख हँसें नर-नारी निजाम

अब के बहार चुनर मोरी रंग दे
पिया रख ले लाज हमारी निजाम

सदक़: बाबा-‘गंज-शकर’ का
रख ले लाज हमारी निजाम

‘क़ुतुब-फ़रीद’ मिल आए बराती
‘ख़ुसरव’ राज-दुलारी निजाम

कोऊ सास कोऊ ननद से झगड़े
हम को आस तिहारी निजाम
तोरी सूरत के बलिहारी निजाम

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Mohe apne hi rang me rangde

मोहे अपने ही रंग में रंग दे रंगीले
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही

हमरी चदरिया पिया की पगरिया दोनों बसंती रंग दे
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही

जो तू माँगे रंग की रंगाई मेरा जोबन गिरवी रख ले
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही

आन परी तोरे दरवाजे पर मिरी लाज-शरम सब रख ले
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही

‘निजामुद्दीन-औलिया’ हैं पीर मेरो प्रेम पीत का संग दे
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही

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Quotes Bandanwaz Gesudraz

देखो वाजिद तनकी चक्की पीड़ चातुर होके सक्की
सौनक इबलीस खिंच खिंच थक्की के या बिस्मिल्लाह अल्ला हो

अलिफ़ अल्ला उसका दिसता म्याने मुहम्मद होकर बसता
पंछी तलब योंकू दिसता के या बिस्मिल्लाह

बन्दानावाज़ बंद हुसेनी सो बंदगी में रहते या बिस्मिल्लाह अल्ला हो

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Ashiqi Kalam Bandanwaz Gesudraz

वाहिद अपने आप था आपे आप निझाया।
परकट जलवे कारने, अलिफ मीम हो आया।।
इश्कौ जलवा देने कर, काफ नून बसाया।।

सवाल- जाती ईमान कौन सा और सिफाती ईमान कौन?
जवाब- अखंड हाल साविती है सो जाती ईमान वह है।
साविती जाती और जाती है सो सिफाती ईमान।।

कहाँलक खींचिया रहेगा तू, दुनिया की परेशानी।
जियेलक फिकर है, दुनिया की, दुनिया देखे तो है फानी।।

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hua hain jamana kharab

हुआ है ज़माना, ख़राब इस क़दर
रहा मत करो, बे-नक़ाब इस कदर

सदा इस शहर में ,जो महकता रहे
कोई खिल,सका ना,गुलाब इस कदर

रहेगी ख़ुमारी , हमें ,ये ता-उमर
पिलायी है उसने ,शराब इस कदर

सदा साथ सच के ,चले ,गिरे ,उठे
कहाँ हम हुए, क़ामयाब इस कदर

सजाये नहीं ,फिर क़भी निग़ाहों ने
गया तोड़ करके,वो ख़वाब इस कदर

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ba-khuda ghair-e-khuda

ब-ख़ुदा ग़ैर-ए-ख़ुदा दर दो-जहाँ चीज़े नीस्त
बे-निशानस्त कज़ू नाम-ओ-निशाँ चीज़े नीस्त

हस्ती-ए-तुस्त हिजाब-ए-तू दिगर न पैदा-अस्त
कि ब-जुज़ दोस्त दरीं पर्दः निहाँ चीज़े नीस्त

चंद महजूब-नशीनी ब-गुमान-ए-दीगराँ
ख़ेमा दर कू-ए-यक़ीं ज़न कि गुमाँ चीज़े नीस्त

बंदा-ए-इश्क़ शुदी तर्क-ए-नसब कुन ‘जामी’
कि दरीं राह फुलाँ इब्न-ए-फुलाँ चीज़े नीस्त

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Az yar-e-kuhan nami kuni yaad

अज़ यार-ए-कुहन नमी कुनी याद
ईं शेवा-ए-नौ मुबारकत-बाद

फ़रियाद-ए-कसे नमी कुनी गोश
पेश कि कुनेम अज़ तू फ़रियाद

आँ सोख़्ता याफ़्त लज़्ज़त-ए-इश्क़
कज़ वस्ल-ए-निशाँ न-दीद व जाँ दाद

बा दौलते बंदगियत हस्तम
अज़ ख़्वाजगी-ए-दो-आलम आज़ाद

मुर्ग़-ए-चमन-ए-वफ़ा अस्त ‘जामी’
दर दाम-ए-ग़म-ओ-बला चे उफ़्ताद

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Farman Sheikh Saadi

वह आदमी वास्‍तव में बुद्धिमान है जो क्रोध में भी गलत बात मुंह से नहीं निकालता। —शैख़ सादी

लोभी को पूरा संसार मिल जाए तो भी वह, भूखा रहता है, लेकिन संतोषी का पेट, एक रोटी से ही भर जाता है। —शैख़ सादी

ग़रीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार ग़रीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। —शैख़ सादी

घमंड करना जाहिलों का काम है। —शैख़ सादी

जो नसीहतें नहीं सुनता, उसे लानत-मलामत सुनने का सुख होता है। —शैख़ सादी

बुरे आदमी के साथ भी भलाई करनी चाहिए – कुत्ते को रोटी का एक टुकड़ा डालकर उसका मुंह बन्द करना ही अच्छा है। —शैख़ सादी

खुदा एक दरवाजा बन्द करने से पहले दूसरा खोल देता है, उसे प्रयत्न कर देखो। —शैख़ सादी

धैर्य रखें, सभी कार्य सरल होने से पहले कठिन ही दिखाई देते हैं। —शैख़ सादी

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