imroz digaram ba-firaq-e-tu

इमरोज़ दीगरम ब-फ़िराक़-ए-तू शाम शुद
दर इन्तिज़ार-ए-वस्ल-ए-तू उ’म्रम तमाम शुद

आमद नमाज़-ए-शाम व न-यामद निगार-ए-मन
ऐ दीद: पासदार कि ख़्वाबम हराम शुद

अफ़सोस-ए-ख़ल्क़ मी-शनवम दर क़िफ़ा-ए-ख़्वेश
कि ईं पुख़्त:-बीं कि बर-सर-ए-सौदा-ए-ख़ाम शुद

तन्हा न मन ब-दान:-ए-ख़ालत मुक़य्यदम
कि ईं दाना हर कि दीद गिरफ़तार-ए-दाम शुद

बस्तम बसे ख़याल कि बीनम जमाल-ए-दोस्त
आँ हम न शुद मुयस्सर-ओ-सौदा-ए-ख़ाम शुद

ख़ाल-ए-तू दानः दानः व ज़ुल्फ़-ए-तू दाम दाम
मुर्ग़े कि दानः दीद गिरफ़्तार-ए-दाम शुद

महमूद-ए-ग़ज़्नवी कि हज़ाराँ ग़ुलाम दाश्त
इश्क़श चुनाँ गिरफ़्तः ग़ुलाम-ए-ग़ुलाम शुद

अबना-ए-रोज़गार ग़ुलामाँ ब-ज़र ख़रंद
‘सादी’ बा-इख़तयार-ओ-इरादत ग़ुलाम शुद

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man be-maya ki basham

मन बे-मायः कि बाशम कि ख़रीदार-ए-तू बाशम
हैफ़ बाशद कि तू यार-ए-मन-ओ-मन यार-ए-तू बाशम

तू मगर साय:-ए-लुत्फ़-ए-ब-सर-ए-वक़्त-ए-मन आरी
कि मन आँ मायः नदारम कि ब-मिक़्दार-ए-तू बाशम

ख़ेशतन बर तू न बंदम कि मन अज़ ख़ुद न पसंदम
कि तू हरगिज़ गुल-ए-मन बाशी व मन ख़ार-ए-तू बाशम

हरगिज़ अंदेशः न कर्दम कि कमंदत ब-मन उफ़्तद
कि मन आँ वक़्अ’ नदारम कि गिरफ़्तार-ए-तू बाशम

मन चे शाइस्त:-ए-आनम कि तुरा ख़्वानम-ओ-दानम
ब-करम हम तू ब-बख़्शी कि सज़ावार-ए-तू बाशम

गरचे दानम कि ब-वस्लत न रस्म बाज़ न गर्दम
ता दरीं राह ब-मीरम कि तलब-गार-ए-तू बाशम

ख़ाक बादा तन-ए-‘सा’दी’ चु तू ऊ रा न पसंदी
कि न-शायद कि तू फ़ख़्र-ए-मन व मन आ’र-ए-तू बाशम

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arsh ast kehin paya

अर्श अस्त केहीं पाय: ज़े-ऐवान-ए-मोहम्मद
जिबरील-ए-अमीं ख़ादिम-ए-दर्बान-ए-मोहम्मद

आँ ज़ात-ए-ख़ुदावन्द कि मख़्फ़ी अस्त ब-आलम
पैदा-ओ-अयाँ अस्त ब-चश्मान-ए-मोहम्मद

तौरेत कि बर मूसा व इंजील ब-ईसा
शुद महव ब-यक नुक़त:-ए-फ़ुरक़ान-ए-मोहम्मद

अज़ बहर-ए-शफ़ाअ’त चे उलुलअज़्म चे मुर्सल
दर हश्र ज़नद दस्त ब-दामान-ए-मोहम्मद

यक-जाँ चे कुनद ‘सा’दी’-ए-मिस्कीं कि दो-सद जाँ
साज़ेम फ़िदा-ए-सग-ए-दर्बान-ए-मोहम्मद

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yak shabe majnun

यक शबे मजनूँ ब-ख़ल्वत-गाह-ए-राज़
गुफ़्त कि-ऐ परवरदिगार-ए-बे-नियाज़

अज़ चरा नामम तू मजनूँ कर्द:-ई
इश्क़-ए-लैला दर दिलम चूँ कर्द:-ई

कर्द:-ई ख़ार-ए-मुग़ीलाँ बालिशम
मी-बरी शब्हा ब-गरदूँ नालिशम

तू चे ख़्वाही ज़ीं गिरफ़्तारी-ए-मन
ऐ ख़ुदा-ए-मन वज़ीँ ज़ारी-ए-मन

हातिफ़श गुफ़्तः कि ऐ मर्द-ए-ग़रीब
दर मोहब्बत कर्दम ईं ग़महा नसीब

इश्क़-ए-लैला नीस्त ईं कार-ए-मन अस्त
हुस्न-ए-लैला अक्स-ए-रुख़्सार-ए-मन अस्त

ख़ुश-नुमायद नाला-ए-शब-हा-ए-तू
ज़ौक़-हा दारम ब-या-रब-हा-ए-तू

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na man behuda

न मन बेहूदः गिर्द-ए-कूच-ओ-बाज़ार मी-गर्दम
मज़ाक़-ए-आशिक़ी दारम पय-ए-दीदार मी-गर्दम

ख़ुदाया रहम कुन बर मन परेशाँ वार मी-गर्दम
ख़ता-कारम गुनह-गारम ब-हाल-ए-ज़ार मी-गर्दम

शराब-ए-शौक़ मी-नोशम ब-गिर्द-ए-यार मी-गर्दम
सुख़न मस्तानः मी-गोयम वले हुश्यार मी-गर्दम

हज़ाराँ ग़ोत:-हा ख़ूर्दम दरीं दरिया-ए-बे-पायाँ
बरा-ए-गौहर-ए-मा’नी ब-दरिया क़अर मी-गर्दम

गहे ख़ंदम गहे गिर्यम गहे उफ़्तम गहे ख़ेज़म
मसीहा दर दिलम पैदा व मन बीमार मी-गर्दम

बया जानाँ इनायत कुन तू ‘मौलाना-ए-‘रूमी’ रा
ग़ुलाम-ए-‘शम्स-तबरेज़म’ क़लंदर-वार मी-गर्दम

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ma mast-o-kharab

मा मस्त-ओ-ख़राब अज़ मय-ए-माशूक़-ए-अलस्तेम
ज़ाँ मस्त-ए-अलस्तेम कि मा’शूक़ परस्तेम

गर ख़िर्क़:-ओ-सज्जाद: न-बाशद न-बुवद पाक
चूँ बा मय-ओ-माशूक़ ब-ख़ल्वत ब-नशिस्तेम

चे कुफ़्र व चे ईमाँ चू ब-मक़्सूद रसीदेम
चे सोमआ’ चे दैर कि अज़ ईं हम: रस्तेम

शेरानः ज़े-मुल्क-ए-दो-जहाँ पा-ए-कशीदेम
ईं लहज़ः कि बा-दिलबर-ए-ख़ुद दस्त ब-दस्तेम

‘रूमी’ ब-सर-ए-राह-ए-मलामत शुद व ब-नशिस्त
ऐ ख़ल्क़ ब-दानेद कि मा आ’शिक़-ए-मस्तेम

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bahut kathin hai dagar pnghat ki

बहुत कठिन है डगर पनघट की
कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी

पनिया भरन को मैं जो गई थी
दौड़ झपट मोरी मटकी पटकी

बहुत कठिन है डगर पनघट की
‘ख़ुसरव’ निज़ाम के बल-बल जइए

लाज रखो मेरे घूँघट पट की
कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी
बहुत कठिन है डगर पनघट की

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tori surat ke balihari nizam

तोरी सूरत के बलिहारी निजाम
तोरी सूरत के बलिहारी
सब सखियन में चुनर मेरी मैली
देख हँसें नर-नारी निजाम

अब के बहार चुनर मोरी रंग दे
पिया रख ले लाज हमारी निजाम

सदक़: बाबा-‘गंज-शकर’ का
रख ले लाज हमारी निजाम

‘क़ुतुब-फ़रीद’ मिल आए बराती
‘ख़ुसरव’ राज-दुलारी निजाम

कोऊ सास कोऊ ननद से झगड़े
हम को आस तिहारी निजाम
तोरी सूरत के बलिहारी निजाम

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Mohe apne hi rang me rangde

मोहे अपने ही रंग में रंग दे रंगीले
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही

हमरी चदरिया पिया की पगरिया दोनों बसंती रंग दे
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही

जो तू माँगे रंग की रंगाई मेरा जोबन गिरवी रख ले
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही

आन परी तोरे दरवाजे पर मिरी लाज-शरम सब रख ले
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही

‘निजामुद्दीन-औलिया’ हैं पीर मेरो प्रेम पीत का संग दे
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही

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Ashiqi Kalam Bandanwaz Gesudraz

वाहिद अपने आप था आपे आप निझाया।
परकट जलवे कारने, अलिफ मीम हो आया।।
इश्कौ जलवा देने कर, काफ नून बसाया।।

सवाल- जाती ईमान कौन सा और सिफाती ईमान कौन?
जवाब- अखंड हाल साविती है सो जाती ईमान वह है।
साविती जाती और जाती है सो सिफाती ईमान।।

कहाँलक खींचिया रहेगा तू, दुनिया की परेशानी।
जियेलक फिकर है, दुनिया की, दुनिया देखे तो है फानी।।

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