imroz digaram ba-firaq-e-tu

इमरोज़ दीगरम ब-फ़िराक़-ए-तू शाम शुद
दर इन्तिज़ार-ए-वस्ल-ए-तू उ’म्रम तमाम शुद

आमद नमाज़-ए-शाम व न-यामद निगार-ए-मन
ऐ दीद: पासदार कि ख़्वाबम हराम शुद

अफ़सोस-ए-ख़ल्क़ मी-शनवम दर क़िफ़ा-ए-ख़्वेश
कि ईं पुख़्त:-बीं कि बर-सर-ए-सौदा-ए-ख़ाम शुद

तन्हा न मन ब-दान:-ए-ख़ालत मुक़य्यदम
कि ईं दाना हर कि दीद गिरफ़तार-ए-दाम शुद

बस्तम बसे ख़याल कि बीनम जमाल-ए-दोस्त
आँ हम न शुद मुयस्सर-ओ-सौदा-ए-ख़ाम शुद

ख़ाल-ए-तू दानः दानः व ज़ुल्फ़-ए-तू दाम दाम
मुर्ग़े कि दानः दीद गिरफ़्तार-ए-दाम शुद

महमूद-ए-ग़ज़्नवी कि हज़ाराँ ग़ुलाम दाश्त
इश्क़श चुनाँ गिरफ़्तः ग़ुलाम-ए-ग़ुलाम शुद

अबना-ए-रोज़गार ग़ुलामाँ ब-ज़र ख़रंद
‘सादी’ बा-इख़तयार-ओ-इरादत ग़ुलाम शुद