हर साँस किसी मरहम से कम ना थी
मैं जैसे कोई ज़ख़्म था भरता चला गया
Ab to Ghabra ke ye kahte Hain
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे
तुम ने ठहराई अगर ग़ैर के घर जाने की
तो इरादे यहाँ कुछ और ठहर जाएँगे
ख़ाली ऐ चारागरो होंगे बहुत मरहम-दाँ
पर मिरे ज़ख़्म नहीं ऐसे कि भर जाएँगे
पहुँचेंगे रहगुज़र-ए-यार तलक क्यूँ कर हम
पहले जब तक न दो आलम से गुज़र जाएँगे
शोला-ए-आह को बिजली की तरह चमकाऊँ
पर मुझे डर है कि वो देख के डर जाएँगे
हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएँगे
आग दोज़ख़ की भी हो जाएगी पानी पानी
जब ये आसी अरक़-ए-शर्म से तर जाएँगे
नहीं पाएगा निशाँ कोई हमारा हरगिज़
हम जहाँ से रविश-ए-तीर-ए-नज़र जाएँगे
सामने चश्म-ए-गुहर-बार के कह दो दरिया
चढ़ के गर आए तो नज़रों से उतर जाएँगे
लाए जो मस्त हैं तुर्बत पे गुलाबी आँखें
और अगर कुछ नहीं दो फूल तो धर जाएँगे
रुख़-ए-रौशन से नक़ाब अपने उलट देखो तुम
मेहर-ओ-माह नज़रों से यारों की उतर जाएँगे
हम भी देखेंगे कोई अहल-ए-नज़र है कि नहीं
याँ से जब हम रविश-ए-तीर-ए-नज़र जाएँगे
‘ज़ौक़’ जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे
Aah ko chahiye ek Umr Asar Hote Tak
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक
परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की ता’लीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक
यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होते तक
ग़म-ए-हस्ती का ‘असद’ किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक
Kalam Parveen Shakir
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
चाँद भी ऐन चैत का उस पे तिरा जमाल भी
सब से नज़र बचा के वो मुझ को कुछ ऐसे देखता
एक दफ़ा तो रुक गई गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी
दिल तो चमक सकेगा क्या फिर भी तराश के देख लें
शीशा-गिरान-ए-शहर के हाथ का ये कमाल भी
उस को न पा सके थे जब दिल का अजीब हाल था
अब जो पलट के देखिए बात थी कुछ मुहाल भी
मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिर
हाथ दुआ से यूँ गिरा भूल गया सवाल भी
उस की सुख़न-तराज़ियाँ मेरे लिए भी ढाल थीं
उस की हँसी में छुप गया अपने ग़मों का हाल भी
गाह क़रीब-ए-शाह-रग गाह बईद-ए-वहम-ओ-ख़्वाब
उस की रफ़ाक़तों में रात हिज्र भी था विसाल भी
उस के ही बाज़ुओं में और उस को ही सोचते रहे
जिस्म की ख़्वाहिशों पे थे रूह के और जाल भी
शाम की ना-समझ हवा पूछ रही है इक पता
मौज-ए-हवा-ए-कू-ए-यार कुछ तो मिरा ख़याल भी
Ham par tumhari chaah
Ham par tumhari chaah ka ilzam hi to hai
dushnām to nahīñ hai ye ikrām hī to hai
karte haiñ jis pe ta.an koī jurm to nahīñ
shauq-e-fuzūl o ulfat-e-nākām hī to hai
dil mudda.ī ke harf-e-malāmat se shaad hai
ai jān-e-jāñ ye harf tirā naam hī to hai
dil nā-umīd to nahīñ nākām hī to hai
lambī hai ġham kī shaam magar shaam hī to hai
dast-e-falak meñ gardish-e-taqdīr to nahīñ
dast-e-falak meñ gardish-e-ayyām hī to hai
āḳhir to ek roz karegī nazar vafā
vo yār-e-ḳhush-ḳhisāl sar-e-bām hī to hai
bhīgī hai raat ‘faiz’ ġhazal ibtidā karo
vaqt-e-sarod dard kā hañgām hī to hai
Tum aaye ho na shab e intizār guzrī
Tum aaye ho na shab e intizār guzrī hai
talāsh meñ hai sahar baar baar guzrī hai
junūñ meñ jitnī bhī guzrī ba-kār guzrī hai
agarche dil pe ḳharābī hazār guzrī hai
huī hai hazrat-e-nāseh se guftugū jis shab
vo shab zarūr sar-e-kū-e-yār guzrī hai
vo baat saare fasāne meñ jis kā zikr na thā
vo baat un ko bahut nā-gavār guzrī hai
na gul khile haiñ na un se mile na mai pī hai
ajiib rañg meñ ab ke bahār guzrī hai
chaman pe ġhārat-e-gul-chīñ se jaane kyā guzrī
qafas se aaj sabā be-qarār guzrī hai
Kab yaad men tera saath
Kab yaad meñ terā saath nahīñ kab haat meñ terā haat nahīñ
sad-shukr ki apnī rātoñ meñ ab hijr kī koī raat nahīñ
mushkil haiñ agar hālāt vahāñ dil bech aa.eñ jaañ de aa.eñ
dil vaalo kūcha-e-jānāñ meñ kyā aise bhī hālāt nahīñ
jis dhaj se koī maqtal meñ gayā vo shaan salāmat rahtī hai
ye jaan to aanī jaanī hai is jaañ kī to koī baat nahīñ
maidān-e-vafā darbār nahīñ yaañ nām-o-nasab kī pūchh kahāñ
āshiq to kisī kā naam nahīñ kuchh ishq kisī kī zaat nahīñ
gar baazī ishq kī baazī hai jo chāho lagā do Dar kaisā
gar jiit ga.e to kyā kahnā haare bhī to baazī maat nahīñ
Aap kī yaad aatī rahī raat bhar
Aap kī yaad aatī rahī raat bhar
chāñdnī dil dukhātī rahī raat bhar
gaah jaltī huī gaah bujhtī huī
sham-e-ġham jhilmilātī rahī raat bhar
koī ḳhushbū badaltī rahī pairahan
koī tasvīr gaatī rahī raat bhar
phir sabā sāya-e-shāḳh-e-gul ke tale
koī qissa sunātī rahī raat bhar
jo na aayā use koī zanjīr-e-dar
har sadā par bulātī rahī raat bhar
ek ummīd se dil bahaltā rahā
ik tamannā satātī rahī raat bhar
Tujhi ko jo yan
तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा
बराबर है दुनिया को देखा न देखा
मिरा ग़ुंचा-ए-दिल है वो दिल गिरफ़्ता
कि जिस को किसू ने कभू वा न देखा
यगाना है तू आह बेगानगी में
कोई दूसरा और ऐसा न देखा
अज़िय्यत मुसीबत मलामत बलाएँ
तिरे इश्क़ में हम ने क्या क्या न देखा
किया मुज को दाग़ों ने सर्व-ए-चराग़ाँ
कभू तू ने आ कर तमाशा न देखा
तग़ाफ़ुल ने तेरे ये कुछ दिन दिखाए
इधर तू ने लेकिन न देखा न देखा
हिजाब-ए-रुख़-ए-यार थे आप ही हम
खुली आँख जब कोई पर्दा न देखा
शब ओ रोज़ ऐ ‘दर्द’ दर पे हूँ उस के
किसू ने जिसे याँ न समझा न देखा
Sanam hazar hua
सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम
कि अस्ल हस्ती-ए-नाबूद है अदम का अदम
इसी जहान में गोया मुझे बहिश्त मिली
अगर रखोगे मिरे पर यही करम का करम
अभी तो तुम ने किए थे हमारी जाँ-बख़्शी
फिर एक दम में वही नीमचा अलम का अलम
वो गुल-बदन का अजब है मिज़ाज-ए-रंगा-रंग
फ़जर कूँ लुत्फ़ तो फिर शाम कूँ सितम का सितम
न रख ‘सिराज’ किसी ख़ूब-रू सें चश्म-ए-वफ़ा
सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम