Siraj Aurangabadi

Siraj Aurangabadi

Siraj Aurangabadi


Siraj Aurangabadi
Native name
Siraj Aurangabadi
Born Siraj-Uddin Aurangabadi
11 March 1712
Aurangabad
Died 1763
Aurangabad, Maharashtra India
Occupation Poet
Language Urdu Persian
Nationality Indian
Genre Ghazal, Nazm
Subject Mysticism, Sufism
Notable works Kulliyat-e-Siraj, Bostan-e-Khayal

E-Book

Kulliyat-e-Siraj

kulliyat-e-siraj

Intekhab-Siraj

intikhab-e-siraj

सिराज औरंगाबादी (1715-1763), सैयद सिराजुद्दीन का लोकप्रिय नाम है। उनका जन्म महाराष्ट्र के औरंगाबाद में हुआ था, जो मुगल सम्राट औरंगजेब के नाम पर एक जगह थी। अपने जीवन के शुरुआती वर्षों से दुनिया भर के साथ बेकाबू जुनून और अधीरता का एक अवतार, सिराज एक सच्चे जीवनसाथी में बदल गया। उन्होंने घर छोड़ दिया, जंगल में भटक गए, कविता लिखी, और उन्हें एक विकृत स्थिति में घर वापस लाया गया। जब तक वह सामान्यता का एक मुकाम हासिल नहीं कर लेता और रहस्यवाद के दायरे में एक उच्च दर्जा प्राप्त कर लेता है, तब तक उसे कई वर्षों तक पहरे पर रखा जाना था।

जीवन का निर्णायक मोड़

सिराज, अभेद्य आत्मा, जीवन के सामान्य तरीकों से विचलन के अपने अक्सर होने वाले मुकाबलों के शुरुआती दौर में फारसी में कविता लिखने से शुरू हुई। उन्होंने उर्दू में भी समान भाव से लिखा। उन्होंने अपनी कविता को स्पष्ट रूप से लिखा और बहुत कुछ खो दिया, जैसा कि कल्पना के रैप्टर्स द्वारा प्रबल किया गया था। वह जल्द ही पाँच हज़ार से अधिक शेरों की अपनी दिवान को पूरा कर सकता था।

जीवन गतिविधि

सिराज औरंगाबादी एक प्रसिद्ध रहस्यवादी कवि थे। उनका जन्म औरंगाबाद महाराष्ट्र, भारत में हुआ था। उनका पूरा नाम सिराज-उद-दीन औरंगाबादी था। वली दखनी के साथ, सिराज, दक्खन से एकमात्र अन्य कवि थे जिन्होंने उर्दू के स्वर और उच्चारण पर गहरी छाप छोड़ी थी। हाफिज जैसे प्रसिद्ध फ़ारसी कवियों से प्रभावित, सिराज ने ग़ज़ल को रहस्यमय अनुभव का एक नया ऑर्केस्ट्रेशन दिया। इसलिए उनकी ग़ज़लों में अर्थ की दो आयामी परतें हैं जो एक स्तर पर रहस्यमय और आध्यात्मिक हैं, और दूसरे पर धर्मनिरपेक्ष और भौतिक हैं।

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majrooh sultanpuri

Majrooh Sultanpuri

Majrooh Sultanpuri


majrooh sultanpuri
जन्म 01 अक्तूबर 1919
निधन 24 मई 2000
उपनाम मजरूह
Spouse: Firdaus Jahan Sultanpuri (m. 1948–2000)
Books Never Mind Your Chains
जन्म स्थान सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

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Diwan-e-Majrooh

diwan-e-majrooh

मजरुह सुल्तानपुरी जन्म 1 अक्टूबर 1919 को उत्तरप्रदेश में स्थित जिला सुल्तानपुर में हुआ था. इनका असली नाम था “असरार उल हसन खान” मगर दुनिया इन्हें मजरूह सुल्तानपुरी के नाम से जानती हैं.मजरूह साहब के पिता एक पुलिस उप-निरीक्षक थे. और उनकी इच्छा थी की अपने बेटे मजरूह सुल्तानपुरी  को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाये और वे बहुत आगे बढे

जीवन गतिविधि

मजरुह सुल्तानपुरी हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार और प्रगतिशील आंदोलन के उर्दू के सबसे बड़े शायरों में से एक थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए देश, समाज और साहित्य को नयी दिशा देने का काम किया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा सुल्तानपुर जिले के गनपत सहाय कालेज में मजरुह सुल्तानपुरी ग़ज़ल के आइने में शीर्षक से मजरूह सुल्तानपुरी पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया।

सफलता

‘जिगर मुरादाबादी’ ने मजरूह सुल्तानपुरी को तब सलाह दी कि फ़िल्मों के लिए गीत लिखना कोई बुरी बात नहीं है। गीत लिखने से मिलने वाली धन राशि में से कुछ पैसे वे अपने परिवार के खर्च के लिए भेज सकते हैं। जिगर मुरादाबादी की सलाह पर मजरूह सुल्तानपुरी फ़िल्म में गीत लिखने के लिए राजी हो गए। संगीतकार नौशाद ने मजरूह सुल्तानपुरी को एक धुन सुनाई और उनसे उस धुन पर एक गीत लिखने को कहा।

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Majaz Lucknawi

Majaz Lucknawi

Majaz Lucknawi


Majaz Lucknawi
Born 19 October 1911
Rudauli, United Provinces of Agra and Oudh, British India
Died 5 December 1955 (aged 44)
Lucknow, Uttar Pradesh, India
Pen name Majaz Lakhnawi
Occupation Poet
Nationality Indian
Genre Ghazal, Nazm, Geet
Subject Love, philosophy, Revolution

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Sazino-Asrar

Sazino-Asrar

Kitab-e-Majaz

kitab-e-majaz

मजाज़ का जन्म 19 अक्तूबर,1911 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के रूदौली गांव में हुआ था। उनके वालिद का नाम चौधरी सिराज उल हक था। चौधरी सिराज उल हक अपने इलाके में पहले आदमी थे, जिन्होंने वकालत की डिग्री हासिल की थी। वे रजिस्ट्री विभाग में सरकारी मुलाजिम थे। वालिद चाहते थे कि उनका बेटा इन्जीनियर बने। इस हसरत से उन्होंने अपने बेटे असरार का दाखिला आगरा के सेण्ट जांस कालेज में इण्टर साइन्स में कराया। यह बात कोई 1929 की है। मगर असरार की लकीरों में तो शायद कुछ और ही लिखा था। आगरा में उन्हें फानी , जज्बी, मैकश अकबराबादी जैसे लोगों की सोहबत मिली।

जीवन का निर्णायक मोड़

आगरा के बाद वे 1931 में बी.ए. करने अलीगढ़ चले गए अलीगढ़ का यह दौर उनके जीवन का निर्णायक मोड़ साबित हुआ। इस शहर में उनका राब्ता मंटो, इस्मत चुगताई, अली सरदार ज़ाफरी , सिब्ते हसन, जाँ निसार अख़्तर जैसे नामचीन शायरों से हुआ ,इनकी सोहबत ने मजाज़ के कलाम को और भी कशिश और वुसअत बख्शी । यहां उन्होंने अपना तखल्लुस ‘मजाज़’ अपनाया। इसके बाद मजाज़ गज़ल की दुनिया में बड़ा सितारा बनकर उभरे और उर्दू अदब के फलक पर छा गये। अलीगढ़ में मजाज़ की आत्मा बसती थी। कहा जाता है कि मजाज़ और अलीगढ़ दोनों एक दूसरे के पूरक थे

जीवन गतिविधि

1935 में वे आल इण्डिया रेडियो की पत्रिका ‘आवाज’ के सहायक संपादक हो कर मजाज़ दिल्ली आ गये। दिल्ली में नाकाम इश्क ने उन्हें ऐसे दर्द दिये कि जो मजाज़ को ताउम्र सालते रहे। यह पत्रिका बमुश्किल एक साल ही चल सकी, सो वे वापस लखनऊ आ गए। इश्क में नाकामी से मजाज़ ने शराब पीना शुरू कर दिया। शराब की लत इस कदर बढ़ी कि लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि मजाज़ शराब को नहीं, शराब मजाज़ को पी रही है।

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Firaq Gorakhpuri

Firaq Gorakhpuri

Firaq Gorakhpuri


Firaq Gorakhpuri
Born Raghupati Sahay
28 August 1896
Gorakhpur, North-Western Provinces, British India
Died 3 March 1982 (aged 85)
New Delhi, India
Pen name Firaq Gorakhpuri فراق گورکھپوری
Occupation Poet, writer, critic, scholar, lecturer, orator
Language Urdu, English, Hindi
Nationality Indian
Education M.A. in English literature
Notable awards Padma Bhushan (1968)
Jnanpith Award (1969)
Sahitya Akademi Fellowship (1970)

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Kulliyat-e-Firaq

kulliyat-e-firaq

Shola-e-Saz

Shola-e-Saz

फिराक गोरखपुरी (मूल नाम रघुपति सहाय) (२८ अगस्त १८९६ – ३ मार्च १९८२) उर्दू भाषा के प्रसिद्ध रचनाकार है। उनका जन्म गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में कायस्थ परिवार में हुआ। इनका मूल नाम रघुपति सहाय था। रामकृष्ण की कहानियों से शुरुआत के बाद की शिक्षा अरबी, फारसी और अंग्रेजी में हुई।

पुरस्कार

उन्हें गुले-नग्मा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से सम्मानित किया गया। बाद में १९७० में इन्हें साहित्य अकादमी का सदस्य भी मनोनीत कर लिया गया था। फिराक गोरखपुरी को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६८ में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था।

 

साहिती सफ़र और रचनायें

फिराक गोरखपुरी की शायरी में गुल-ए-नगमा, मश्अल, रूह-ए-कायनात, नग्म-ए-साज, ग़ज़लिस्तान, शेरिस्तान, शबनमिस्तान, रूप, धरती की करवट, गुलबाग, रम्ज व कायनात, चिरागां, शोअला व साज, हजार दास्तान, बज्मे जिन्दगी रंगे शायरी के साथ हिंडोला, जुगनू, नकूश, आधीरात, परछाइयाँ और तरान-ए-इश्क जैसी खूबसूरत नज्में और सत्यम् शिवम् सुन्दरम् जैसी रुबाइयों की रचना फिराक साहब ने की है। उन्होंने एक उपन्यास साधु और कुटिया और कई कहानियाँ भी लिखी हैं। उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी भाषा में दस गद्य कृतियां भी प्रकाशित हुई हैं।

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Faiz Ahmad Faiz

Faiz Ahmad Faiz

Faiz Ahmad Faiz


Faiz Ahmad Faiz
Native name

Faiz Ahmad Faiz

Born 13 February 1911
Narowal District, Punjab, British India
Died 20 November 1984 (aged 73)
Lahore, Punjab, Pakistan
Occupation poet and journalist
Language Urdu
Russian
English
Punjabi
Arabic
Persian
Nationality British Indian (1911-1947) Pakistani (1947-1984)
Education Arabic literature
B.A., MA
English literature

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Naqsh-e-Faryadi

naqsh-e-faryadi

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (فیض احمد فیض‎), (१९११ – १९८४) भारतीय उपमहाद्वीप के एक विख्यात पंजाबी शायर थे जिनको अपनी क्रांतिकारी रचनाओं में रसिक भाव (इंक़लाबी और रूमानी) के मेल की वजह से जाना जाता है। सेना, जेल तथा निर्वासन में जीवन व्यतीत करने वाले फ़ैज़ ने कई नज़्म, ग़ज़ल लिखी तथा उर्दू शायरी में आधुनिक प्रगतिवादी (तरक्कीपसंद) दौर की रचनाओं को सबल किया। उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए भी मनोनीत किया गया था। फ़ैज़ पर कई बार कम्यूनिस्ट (साम्यवादी) होने और इस्लाम से इतर रहने के आरोप लगे थे पर उनकी रचनाओं में ग़ैर-इस्लामी रंग नहीं मिलते। जेल के दौरान लिखी गई उनकी कविता ‘ज़िन्दान-नामा’ को बहुत पसंद किया गया था।

उर्दू शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की जीवनी और संघर्ष

उनका जन्म १३ फ़रवरी १९११ को लाहौर के पास सियालकोट शहर, पाकिस्तान (तत्कालीन भारत) में हुआ था। उनके पिता एक बैरिस्टर थे और उनका परिवार एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार था। उनकी आरंभिक शिक्षा उर्दू, अरबी तथा फ़ारसी में हुई जिसमें क़ुरआन को कंठस्थ करना भी शामिल था। उसके बाद उन्होंने स्कॉटिश मिशन स्कूल तथा लाहौर विश्वविद्यालय से पढ़ाई की। उन्होंने अंग्रेजी (१९३३) तथा अरबी (१९३४) में ऍम॰ए॰ किया। अपने कामकाजी जीवन की शुरुआत में वो एमएओ कालेज, अमृतसर में लेक्चरर बने। उसके बाद मार्क्सवादी विचारधाराओं से बहुत प्रभावित हुए। “प्रगतिवादी लेखक संघ” से १९३६ में जुड़े और उसके पंजाब शाखा की स्थापना सज्जाद ज़हीर के साथ मिलकर की जो उस समय के मार्क्सवादी नेता थे। १९३८ से १९४६ तक उर्दू साहित्यिक मासिक अदब-ए-लतीफ़ का संपादन किया।

जीवन गतिविधि

सन् १९४१ में उन्होंने अपने छंदो का पहला संकलन नक़्श-ए-फ़रियादी नाम से प्रकाशित किया। एक अंग्रेज़ समाजवादी महिला एलिस जॉर्ज से शादी की और दिल्ली में आ बसे। ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हुए और कर्नल के पद तक पहुँचे। विभाजन के वक़्त पद से इस्तीफ़ा देकर लाहौर वापिस गए। वहाँ जाकर इमरोज़ और पाकिस्तान टाइम्स का संपादन किया। १९४२ से लेकर १९४७ तक वे सेना में थे। लियाकत अली ख़ाँ की सरकार के तख़्तापलट की साजिश रचने के जुर्म में वे १९५१‍ – १९५५ तक कैद में रहे। इसके बाद १९६२ तक वे लाहोर में पाकिस्तानी कला परिषद् में रहे। १९६३ में उन्होंने योरोप, अल्जीरिया तथा मध्यपूर्व का भ्रमण किया और तत्पश्चात १९६४ में पकिस्तान वापस लौटे। वो १९५८ में स्थापित एशिया-अफ़्रीका लेखक संघ के स्थापक सदस्यों में से एक थे। भारत के साथ १९६५ के पाकिस्तान से युद्ध के समय वे वहाँ के सूचना मंत्रालय में कार्यरत थे।

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Ahmad Faraz

Ahmad Faraz

Ahmad Faraz


Ahmad Faraz
Native name
Ahmed Faraz
Born Syed Ahmad Shah Ali
12 January 1931
Kohat, NWFP, British India (now Khyber Pakhtunkhwa, Pakistan)
Died 25 August 2008 (aged 77)
Islamabad, Islamabad Capital Territory, Pakistan
Pen name Faraz Urdu: فراز
Occupation Urdu poet, lecturer
Nationality Pakistani
Citizenship Pakistani
Education MA degrees in Urdu and Persian languages

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Nayafat-e-Faraz

Nayafat-e-Faraz

Tanha-Tanha-Faraz

tana-tan-ahmed-fraz

अहमद फ़राज़ (१४ जनवरी १९३१- २५ अगस्त २००८), असली नाम सैयद अहमद शाह, का जन्म पाकिस्तान के नौशेरां शहर में हुआ था। वे आधुनिक उर्दू के सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों में गिने जाते हैं।

उर्दू शायर अहमद फ़राज़ की जीवनी और संघर्ष

उन्होंने पेशावर विश्वविद्यालय में फ़ारसी और उर्दू विषय का अध्ययन किया था। बाद में वे वहीं प्राध्यापक भी हो गए थे। शायरी का शौक उन्हें बचपन से था। वे अंत्याक्षरी की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया करते थे। लेखन के प्रारंभिक काल में वे इक़बाल की रचनाओं से प्रभावित रहे। फिर धीरे धीरे प्रगतिवादी कविता को पसंद करने लगे। अली सरदार जाफरी और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के पदचिह्नों पर चलते हुए उन्होंने जियाउल हक के शासन के समय कुछ ऐसी गज़लें लिखकर मुशायरों में पढ़ीं जिनके कारण उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। इसी समय वे कई साल पाकिस्तान से दूर यूनाइटेड किंगडम और कनाडा देशों में रहे।

राजनीतिक गतिविधि

फ़रात को उन कविताओं को लिखने के लिए गिरफ्तार किया गया, जिन्होंने पाकिस्तान के सैन्य शासकों की जिया-उल-हक युग के दौरान आलोचना की। उस गिरफ्तारी के बाद, वह एक आत्म-निर्वासित निर्वासन में चला गया। पाकिस्तान लौटने से पहले वह ब्रिटेन, कनाडा और यूरोप में 6 साल तक रहे, जहां उन्हें पाकिस्तान अकादमी ऑफ लेटर के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था और बाद में कई वर्षों से इस्लामाबाद स्थित नेशनल बुक फाउंडेशन के अध्यक्ष थे। उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है 2006 में, उन्होंने 2004 में हिलाल-ए-इम्तियाज पुरस्कार से सम्मानित किया।

उसने अपने वर्तमान लेखों का उल्लेख किया और कहा: “अब मैं केवल तब लिखता हूं जब मैं अंदर से मजबूर हूं।” अपने संरक्षक, क्रान्तिकारी फैज अहमद फैज द्वारा स्थापित परंपरा को बनाए रखने के दौरान, उन्होंने अपने निर्वासन में होने वाले दिनों में कुछ बेहतरीन कविता लिखी। ‘प्रतिरोध की कविता’ के बीच प्रसिद्ध “महासार” है। फरहाज़ को अभिनेता शाहजादा गफ़र ने पोथवारी / मिरपुरी टेलिफिल्म “खाई ऐ ओ” में भी उल्लेख किया था।

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mir taqi mir

Mir Taqi Mir

Mir Taqi Mir


mir taqi mir
Born February 1723
Agra, Mughal India
Died 21 September 1810 (aged 87)
Lucknow, Oudh State, Mughal India
Pen name Mir
Occupation Urdu poet
Period Mughal India
Genre Ghazal, Mathnavi, Persian Poetry
Subject Love, philosophy
Notable works Faiz-e-Mir
Zikr-e-Mir
Nukat-us-Shura
Kulliyat-e-Farsi
Kulliyat-e-Mir

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ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी “मीर” (1723 – 20 सितम्बर 1810) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो। अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी मीर ने अपनी आँखों से देखा था। इस त्रासदी की व्यथा उनकी रचनाओं मे दिखती है। अपनी ग़ज़लों के बारे में एक जगह उन्होने कहा था-

हमको शायर न कहो मीर कि साहिब हमने
दर्दो ग़म कितने किए जमा तो दीवान किया

उर्दू शायर मीर तक़ी मीर की जीवनी और संघर्ष

इनका जन्म आगरा (अकबरपुर) मे हुआ था। उनका बचपन अपने पिता की देखरेख मे बीता। उनके प्यार और करुणा के जीवन में महत्त्व के प्रति नजरिये का मीर के जीवन पे गहरा प्रभाव पड़ा जिसकी झलक उनके शेरो मे भी देखने को मिलती है | पिता के मरणोपरांत, ११ की वय मे, इनके उपर ३०० रुपयों का कर्ज था और पैतृक सम्पत्ति के नाम पर कुछ किताबें। १७ साल की उम्र में वे दिल्ली आ गए। बादशाह के दरबार में १ रुपया वजीफ़ा मुकर्रर हुआ। इसको लेने के बाद वे वापस आगरा आ गए।

शाही खिताब:

‘मीर’ साहब के अपने कहे के अनुसार उनके बारे में राय कैसे बनायी जा सकती हैं? तटस्थ रुप से देखने पर दिखाई देता है कि मीर पर बचपन और जवानी के दिनों में ज़रुर मुसीबतें पड़ी, लेकिन प्रौढ़ावस्था और बुढ़ापे में उन्हें बहुत सुख और सम्मान मिला। जिन लोगों के साथ ऐसा होता है, वे साधारण दूसरों के प्रति और अधिक सहानुभूति रखने वाले मृदु-भाषी और गंभीर हो जाते हैं। ‘मीर’ की कटुता उनके अंत समय तक न गई। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इसका एक ही कारण हो सकता है। वह यह कि ‘मीर’ प्रेम के मामले में हमेशा असफल रहे और जीवन के इस बड़े भारी प्रभाव ने उनके अवचेतन मस्तिष्क में घर करके उनमें असाधारण और कटुता भर दी।

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ibrahim zauq

Ibrahim Zauq

Mohammad Ibrahim Zauq


ibrahim zauq
जन्म 1789
दिल्ली
मृत्यु 1854
दिल्ली, ब्रिटिश इंडिया
उपनाम ज़ौक़
व्यवसाय कवि
राष्ट्रीयता मुग़ल साम्राज्य
अवधि/काल 1837-1857
विधा गज़ल, क़सीदा, मुखम्मस
विषय प्रेम

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मशहूर शायर मोहम्मद इब्राहिम ज़ौक़ का असली नाम शेख़ इब्राहिम था। ग़ालिब के समकालीन शायरों में ज़ौक़ काफी ऊपरी दर्जा रखते हैं। उनका जन्म 1789 में दिल्ली के एक सिपाही शेख़ मुहम्मद रमज़ान के घर हुआ। ज़ौक़ बेहद नरम मिजाज के थे और उनकी याददाश्त बहुत तेज थी। उर्दू-फ़ारसी की कविता की जितनी किताबें उन्होंने पढ़ीं, उन्हें उन्होंने अपने दिमाग में इस तरह सुरक्षित रखा हुआ था कि हवाला देने के लिए किताबों की जरूरत नहीं पड़ती थी। उन्होंने बहुत-सी उम्दा रचनाएं कीं।

कुछ पंक्तियां

मर्ज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे
न दवा याद रहे और न दुआ याद रहे
तुम जिसे याद करो फिर उसे क्या याद रहे
न ख़ुदाई की हो परवा न ख़ुदा याद रहे

अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएंगे

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bahadur-shah-zafar

Bahadur Shah Zafar

Bahadur Shah Zafar


bahadur-shah-zafar
जन्म: 24 October 1775
Delhi, Mughal Empire
मृत्यु: 7 November 1862 (aged 87)
Rangoon, British Burma
पिता (Father) अकबर द्वितीय
माता (Mother) लाल बाई
दादा (Grand-father) आलम अली गौहर बहादुर
दादी (Grand-mother) नवाब कुदसिया बेगम साहिबा
पत्नी (Wife) अशरफ महल,बेगम अख्तर महल,बेगम जीनत महल और बेगम ताज महल
भाई (Brother) सौतेले भई- फरजाना जेब उन-निस्सा,खैर-उन-निस्सा,बीबी फैज़ बक्श और बेगम उम्दा
पुत्र(22) (Son) मिर्ज़ा मुगल,मिर्ज़ा जवान बख्त,मिर्ज़ा शाह अब्बास,मिर्ज़ा फ़तेह-उल-मुल्क बहादुर बिन बहादुर,मिर्ज़ा खिज्र सुल्तान,मिर्ज़ा दारा बख्तमिर्ज़ा उलुघ ताहिर
पुत्री (32)  (Daughters) बेगम फातिमा सुल्तान,राबेया बेगम,रौनक ज़मानी बेगम,कुलसुम ज़मानी बेग,
ग्रांडसन (Grand-son) मिर्ज़ा अबू बख्त,जमशीद बख्त

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बहादुर शाह जफर भारत के अंतिम मुगल सम्राट थे जिनका जन्म 1775 में दिल्ली में हुआ था। जन्म के बाद उनका नाम अबू जफर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह जफर रखा गया था, लेकिन वे बहादुर शाह जफर के रूप में अधिक लोकप्रिय थे। उनके पिता अकबर शाह थे और उसकी माँ लालबाई थी। वे उस मुगल राजवंश के अंतिम शासक थे, जिसने लगभग 300 वर्षों तक भारत पर शासन किया था। उन्होंने अंग्रेजों की बढ़ती शक्ति के कारण मजबूती के साथ अपने साम्राज्य पर शासन नहीं किया।

साहित्यिक जीवन

बहादुर शाह जफर के शासनकाल के दौरान, उर्दू शायरी विकसित हुयी और अपने चरम पर पहुच गयी। अपने दादा और पिता, जो कवि भी थे, से प्रभावित होकर उन्होंने भी खुद में यह रचनात्मक कौशल विकसित किया। उन्होंने साहित्यिक क्षेत्र में भी योगदान दिया। उनकी कविता ज्यादातर प्रेम और रहस्यवाद के इर्दगिर्द रहती थी। उन्होंने ब्रिटिश द्वारा दिए उस दर्द और दुख के बारे में भी लिखा जिसका उन्होंने सामना किया था।

भारत में आजादी की पहली लड़ाई

बहादुरशाह जफर के नेतृत्व में 1857 में शुरू हुयी थी। स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा उन्हें कमांडर-इन-चीफ के रूप में नियुक्त किया गया था। प्रारंभ में विद्रोह काफी सफल रहा था, लेकिन बाद में यह शक्तिशाली ब्रिटिश सेना द्वारा कुचल दिया गया और बहादुर शाह जफर को परास्त कर दिया था। विद्रोह की असफलता के बावजूद क्रांतिकारी बहादुर शाह जफर को ही भारत के सम्राट के रूप में मानते रहे। जफर अपने तीन बेटों और पोतों के साथ दिल्ली में हुमायूं के मकबरे में छिपे हुए थे जब ब्रिटिश सेना ने आकर उनके बेटों और पोतों मौत के घात उतार दिया और उनपर विश्वासघात का आरोप लगाया गया था।

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jigar moradabadi

Jigar Moradabadi

Jigar Moradabadi


jigar moradabadi
जन्मनाम अली सिकंदर
जन्म 6 अप्रैल 1890
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
मृत्यु 9 सितम्बर 1960 (उम्र 70)
गोंडा, उत्तर प्रदेश (यूपी)
शैली ग़ज़ल
व्यवसाय कवि

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जिगर मुरादाबादी (Jigar Moradabadi) , एक और नाम: अली सिकंदर (1890–1960), 20 वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध उर्दू कवि और उर्दू गजल के प्रमुख हस्ताक्षरों में से एक।  उनकी अत्यधिक प्रशंसित कविता संग्रह “आतिश-ए-गुल” के लिए उन्हें 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।

साहित्यिक जीवन

अली सिकंदर से जिगर मुरादाबादी हो जाने तक की यात्रा उनके लिए सहज और सरल नहीं रही थी। हालांकि शायरी उन्हें विरासत में मिली थी। अंग्रेज़ी से बस वाकिफ़ भर थे। पेट पालने के लिए कभी स्टेशन-स्टेशन चश्मे बेचते, कभी कोई और काम कर लिया करते। ‘जिगर’ साहब का शेर पढ़ने का ढंग कुछ ऐसा था कि उस समय के युवा शायर उनके जैसे शेर कहने और उन्हीं के अंदाज़ को अपनाने की कोशिश किया करते थे। इतना ही नहीं उनके जैसा होने के लिए नए शायरों की पौध उनकी ही तरह रंग-रूप करने का जतन करती थी।

व्यक्तिगत जीवन

उन्होने आगरा की तवायफ वहीदन से प्रेम विवाह किया और शीघ्र ही बेमेल मिज़ाज के कारण उनका तलाक भी हो गया। उसके बाद उन्होने मैनपुरी की एक गायिका शीरज़न से प्रेम विवाह किया, किन्तु उसका भी हस्र पहले जैसा ही हुआ। एक बार मशहूर गायिका अख़्तरी बाई फैजाबादी (बेगम अख़्तर) के शादी के पैग़ाम को भी वे ठुकरा चुके थे।

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