कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत
जिस का जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो ख़ामोश है
ek yaad hai unki
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
wasl ki banti hai
वस्ल की बनती हैं इन बातों से तदबीरें कहीं
आरज़ूओं से फिरा करती हैं तक़दीरें कहीं
बे-ज़बानी तर्जुमान-ए-शौक़ बेहद हो तो हो
वर्ना पेश-ए-यार काम आती हैं तक़रीरें कहीं
मिट रही हैं दिल से यादें रोज़गार-ए-ऐश की
अब नज़र काहे को आएँगी ये तस्वीरें कहीं
इल्तिफ़ात-ए-यार था इक ख़्वाब-ए-आग़ाज़-ए-वफ़ा
सच हुआ करती हैं इन ख़्वाबों की ताबीरें कहीं
तेरी बे-सब्री है ‘हसरत’ ख़ामकारी की दलील
गिर्या-ए-उश्शाक़ में होती हैं तासीरें कहीं
tere dard se jisko nisbat nhi
तिरे दर्द से जिस को निस्बत नहीं है
वो राहत मुसीबत है राहत नहीं है
जुनून-ए-मोहब्बत का दीवाना हूँ मैं
मिरे सर में सौदा-ए-हिकमत नहीं है
तिरे ग़म की दुनिया में ऐ जान-ए-आलम
कोई रूह महरूम-ए-राहत नहीं है
मुझे गरम-ए-नज़्ज़ारा देखा तो हँस कर
वो बोले कि इस की इजाज़त नहीं है
झुकी है तिरे बार-ए-इरफ़ाँ से गर्दन
हमें सर उठाने की फ़ुर्सत नहीं है
ये है उन के इक रू-ए-रंगीं का परतव
बहार-ए-तिलिस्म-ए-लताफ़त नहीं है
तिरे सरफ़रोशों में है कौन ऐसा
जिसे दिल से शौक़-ए-शहादत नहीं है
तग़ाफ़ुल का शिकवा करूँ उन से क्यूँकर
वो कह देंगे तू बे-मुरव्वत नहीं है
वो कहते हैं शोख़ी से हम दिलरुबा हैं
हमें दिल नवाज़ी की आदत नहीं है
शहीदान-ए-ग़म हैं सुबुक रूह क्या क्या
कि उस दिल पे बार-ए-नदामत नहीं है
नमूना है तक्मील-ए-हुस्न-ए-सुख़न का
गुहर बारी-ए-तबा-ए-हसरत नहीं है
taj mahal ghazal
ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही
तुझ को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से
बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मअ’नी
सब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मअ’नी
मेरी महबूब पस-ए-पर्दा-ए-तश्हीर-ए-वफ़ा
तू ने सतवत के निशानों को तो देखा होता
मुर्दा-शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली
अपने तारीक मकानों को तो देखा होता
अन-गिनत लोगों ने दुनिया में मोहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के
लेकिन उन के लिए तश्हीर का सामान नहीं
क्यूँकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़्लिस थे
ये इमारात ओ मक़ाबिर ये फ़सीलें ये हिसार
मुतलक़-उल-हुक्म शहंशाहों की अज़्मत के सुतूँ
सीना-ए-दहर के नासूर हैं कोहना नासूर
जज़्ब है उन में तिरे और मिरे अज्दाद का ख़ूँ
मेरी महबूब उन्हें भी तो मोहब्बत होगी
जिन की सन्नाई ने बख़्शी है उसे शक्ल-ए-जमील
उन के प्यारों के मक़ाबिर रहे बेनाम-ओ-नुमूद
आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़िंदील
ये चमन-ज़ार ये जमुना का किनारा ये महल
ये मुनक़्क़श दर ओ दीवार ये मेहराब ये ताक़
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
aao kabe se uthe
आओ काबे से उठें सू-ए-सनम-ख़ाना चलें
ताबा-ए-फ़क़्र कहे सवलत-ए-शाहाना चलें
काँप उठे बारगह-ए-सर-ए-अफ़ाफ़-ए-मलकूत
यूँ मआसी का लुंढाते हुए पैमाना चलें
आओ ऐ ज़मज़मा-संजान-ए-सरा पर्दा-ए-गुल
ब-हवा-ए-नफ़स-ए-ताज़ा-ए-जानाना चलें
गिर्या-ए-नीम-शब ओ आह-ए-सहर-गाही को
चंग ओ बरबत पे नचाते हुए तुरकाना चलें
ता न महसूस हो वामांदगी-ए-राह-ए-दराज़
ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ का सुनाते हुए अफ़्साना चलें
फेंक कर सुब्हा ओ सज्जादा ओ दस्तार ओ कुलाह
ब रबाब ओ दफ़ ओ तम्बूरा ओ पैमाना चलें
नग़्मा ओ साग़र ओ ताऊस ओ ग़ज़ल के हमराह
सू-ए-ख़ुम-ख़ाना पय-ए-सज्दा-ए-रिन्दाना चलें
ख़ुश्क ज़र्रों पे मचल जाए शमीम ओ तसनीम
सब्त करते हुए यूँ लग़्ज़िश-ए-मस्ताना चलें
दामन-ए-‘जोश’ में फिर भर के मता-ए-कौनैन
ख़िदमत-ए-पीर-ए-मुग़ाँ में पय-ए-नज़राना चलें
sari duniya hai ek parda
सारी दुनिया है एक पर्दा-ए-राज़
उफ़ रे तेरे हिजाब के अंदाज़
मौत को अहल-ए-दिल समझते हैं
ज़िंदगानी-ए-इश्क़ का आग़ाज़
मर के पाया शहीद का रुत्बा
मेरी इस ज़िंदगी की उम्र दराज़
कोई आया तिरी झलक देखी
कोई बोला सुनी तिरी आवाज़
हम से क्या पूछते हो हम क्या हैं
इक बयाबाँ में गुम-शुदा आवाज़
तेरे अनवार से लबालब है
दिल का सब से अमीक़ गोशा-ए-राज़
आ रही है सदा-ए-हातिफ़-ए-ग़ैब
‘जोश’ हमता-ए-हाफ़िज़-ए-शीराज़
kuch din se zindagi hai
कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं
यूँ देखती है जैसे मुझे जानती नहीं
mujhe khabar kya hai
मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
ये ज़िंदगी की है सूरत तो ज़िंदगी क्या है
haqikat gum hai kya
हक़ीक़त-ए-ग़म-ए-उल्फ़त छुपा रहा हूँ मैं
शिकस्ता-दिल हूँ मगर मुस्कुरा रहा हूँ मैं
कमाल-ए-हौसला-ए-दिल दिखा रहा हूँ मैं
किसी से रस्म-ए-मोहब्बत बढ़ा रहा हूँ मैं
बदल दिया है मोहब्बत ने उन का तर्ज़-ए-अमल
अब उन में शान-ए-तकल्लुफ़ सी पा रहा हूँ मैं
मचल मचल के मैं कहता हूँ बैठिए तो सही
सँभल सँभल के वो कहते हैं जा रहा हूँ मैं
सुनी हुई सी बस इक धुन ज़रूर है लेकिन
ये ख़ुद ख़बर नहीं क्या गुनगुना रहा हूँ मैं