क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़
जान का रोग है बला है इश्क़
Duniya Shayari Hindi
बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो
ऐसा कुछ कर के चलो याँ कि बहुत याद रहो
baag Shayari
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
Ab intizaar nhi hota
नवेद-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार भी तो नहीं
ये बे-दिली है कि अब इंतिज़ार भी तो नहीं
जो भूल जाए कोई शग़्ल-ए-जाम-ओ-मीना में
ग़म-ए-हबीब ग़म-ए-रोज़गार भी तो नहीं
मरीज़-ए-बादा-ए-इशरत ये इक जहाँ क्यूँ है
सुरूर-ए-बादा ब-कद्र-ए-ख़ुमार भी तो नहीं
मता-ए-सब्र-ओ-सुकूँ जिस ने दिल से छीन लिया
वो दिल-नवाज़ अदा-आश्कार भी तो नहीं
क़फ़स में जी मिरा लग तो नहीं गया हमदम
कि अब वो नाला-ए-बे-इख़्तयार भी तो नहीं
है ऐन वस्ल में भी पुर-ख़रोश-ए-परवाना
सुकून-ए-क़ल्ब ब-आग़ोश-ए-यार भी तो नहीं
निगाह-ए-नाज़ कि बेगाना-ए-मुहब्बत है
सितम तो ये है कि बे-गाना-वार भी तो नहीं
वो एक रहबर-ए-नादाँ कि जिस को इश्क़ कहें
डुबो के कश्ती-ए-दिल शर्मसार भी तो नहीं
जुनूँ को दर्स-ए-अमल दे के क्या करे कोई
ब-क़द्र-ए-हौसला-ए-दिल बहार भी तो नहीं
Hindi Huun Shayari
उस हुस्न-ए-तअल्लुक़ का अदा शुक्र हो क्यूँ-कर
मैं ने जो किया याद तो उस ने भी किया याद
Hindi Yaad Shayari
ये भूल भी क्या भूल है ये याद भी क्या याद
तू याद है और कोई नहीं तेरे सिवा याद
tera wasl mujhko firak hai
तिरा वस्ल है मुझे बे-ख़ुदी तिरा हिज्र है मुझे आगही
तिरा वस्ल मुझ को फ़िराक़ है तिरा हिज्र मुझ को विसाल है
मैं हूँ दर पर उस के पड़ा हुआ मुझे और चाहिए क्या भला
मुझे बे-परी का हो क्या गला मिरी बे-परी पर-ओ-बाल है
वही मैं हूँ और वही ज़िंदगी वही सुब्ह ओ शाम की सर ख़ुशी
वही मेरा हुस्न-ए-ख़याल है वही उन की शान-ए-जमाल है
Apni duniya ki kahani ho main
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
एक बिगड़ी हुई तस्वीर-ए-जवानी हूँ मैं
आग बन कर जो कभी दिल में निहाँ रहता था
आज दुनिया में उसी ग़म की निशानी हूँ मैं
हाए क्या क़हर है मरहूम जवानी की याद
दिल से कहती है कि ख़ंजर की रवानी हूँ मैं
आलम-अफ़रोज़ तपिश तेरे लिए लाया हूँ
ऐ ग़म-ए-इश्क़ तिरा अहद-ए-जवानी हूँ मैं
चर्ख़ है नग़्मागर अय्याम हैं नग़्मे ‘अख़्तर’
दास्ताँ-गो है ग़म-ए-दहर कहानी हूँ मैं
Khoshbo jaise log mile mere afsane me
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में
शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे
धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने में
जाने किस का ज़िक्र है इस अफ़्साने में
दर्द मज़े लेता है जो दोहराने में
दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में
हम इस मोड़ से उठ कर अगले मोड़ चले
उन को शायद उम्र लगेगी आने में
Anzam-e-mohabbat kya hai
अंजाम-ए-मोहब्बत से मैं बेगाना नहीं हूँ
दीवाना बना फिरता हूँ दीवाना नहीं हूँ
दम भर में जो हो ख़त्म वो अफ़्साना नहीं हूँ
इंसान हूँ इंसान मैं परवाना नहीं हूँ
साक़ी तिरी आँखों को सलामत रक्खे अल्लाह
अब तक तो मैं शर्मिंदा-ए-पैमाना नहीं हूँ
हो बार न ख़ातिर पे तो नासेह कहूँ इक बात
समझा लें जिसे आप वो दीवाना नहीं हूँ
बर्बादियों का ग़म नहीं ग़म है तो ये ग़म है
मिट कर भी मैं ख़ाक-ए-दर-ए-जानाना नहीं हूँ
तौबा तिरे दामन पे जुनूँ-ख़ेज़ निगाहें
हूँ तो मगर अब इतना भी दीवाना नहीं हूँ
सब कुछ मिरे साक़ी ने दिया है मुझे ‘मंज़र’
मोहताज-ए-मय-ओ-शीशा-ओ-पैमाना नहीं हूँ