Hazrat Shaikh Abdul Qadir Jilani

Hazrat Sheikh Abdul Qadir Jilani (Rehmatullah Alaih) Farmate Hai –

“Shirk Sirf Boot Parsti Hi Nahi Hai Balki Nafsani Khwahishat Ki Pairwi Aur Duniya Ki Kisi Bhi Chiz Ke Sath Ishq Ki Kefiyat Se Munsalik Ho Jana Ye Sarahatn Shirk Hai,

Khuda Ke Siwa Har Chiz Gaire Khuda He Aur Har Gaire Khuda Ki Khwahish Shirk Hai,

Lihaza Is Se Parhez Karo .

Apne Nafs Ki Buraiyyo Se Darte Raho, Haq Ki Talash Me Koshish Karte Raho, Gaflat Ki Zindgi Ko Apna Shiaar Na Banawo ..

Musalman Kabhi Gafil Nahi Rehta…

Read More...

Tareef us khuda ki jinse jaha banaya

तारीफ़ उस ख़ुदा की जिस ने जहाँ बनाया
कैसी ज़मीं बनाई क्या आसमाँ बनाया

पाँव तले बिछाया क्या ख़ूब फ़र्श-ए-ख़ाकी
और सर पे लाजवर्दी इक साएबाँ बनाया

मिट्टी से बेल-बूटे क्या ख़ुशनुमा उगाए
पहना के सब्ज़ ख़िलअत उन को जवाँ बनाया

ख़ुश-रंग और ख़ुशबू गुल फूल हैं खिलाए
इस ख़ाक के खंडर को क्या गुलिस्ताँ बनाया

मेवे लगाए क्या क्या ख़ुश-ज़ाएक़ा रसीले
चखने से जिन के मुझ को शीरीं-दहाँ बनाया

सूरज बना के तू ने रौनक़ जहाँ को बख़्शी
रहने को ये हमारे अच्छा मकाँ बनाया

प्यासी ज़मीं के मुँह में मेंह का चुवाया पानी
और बादलों को तू ने मेंह का निशाँ बनाया

ये प्यारी प्यारी चिड़ियाँ फिरती हैं जो चहकती
क़ुदरत ने तेरी उन को तस्बीह-ख़्वाँ बनाया

तिनके उठा उठा कर लाईं कहाँ कहाँ से
किस ख़ूब-सूरती से फिर आशियाँ बनाया

ऊँची उड़ें हवा में बच्चों को पर न भूलें
इन बे-परों का उन को रोज़ी-रसाँ बनाया

क्या दूध देने वाली गाएँ बनाईं तू ने
चढ़ने को मेरे घोड़ा क्या ख़ुश-इनाँ बनाया

रहमत से तेरी क्या क्या हैं नेमतें मयस्सर
इन नेमतों का मुझ को है क़द्र-दाँ बनाया

आब-ए-रवाँ के अंदर मछली बनाई तू ने
मछली के तैरने को आब-ए-रवाँ बनाया

हर चीज़ से है तेरी कारीगरी टपकती
ये कारख़ाना तू ने कब राएगाँ बनाया

Read More...

Bazm-e-izad me beparda

बज़्म-ए-ईजाद में बे-पर्दा कोई साज़ नहीं
है ये तेरी ही सदा ग़ैर की आवाज़ नहीं

कह सके कौन वो क्या है मगर अज़-रू-ए-यक़ीं
गुल नहीं शम्अ’ नहीं सर्व-ए-सर-अफ़राज़ नहीं

दिल हो बे-लौस तो क्या वजह-ए-तसल्ली हो दरोग़
ताइर-ए-मुर्दा मगर तोमा-ए-शहबाज़ नहीं

बुलबुलों का था जहाँ सेहन-ए-चमन में अम्बोह
आज चिड़िया भी वहाँ ज़मज़मा-पर्दाज़ नहीं

भाग वीराना-ए-दुनिया से कि इस मंज़िल में
नुज़्ल-ए-मेहमान ब-जुज़ माइदा-ए-आज़ नहीं

दिलबरी जज़्ब-ए-मोहब्बत का करिश्मा है फ़क़त
कुछ करामत नहीं जादू नहीं एजाज़ नहीं

दिल की तस्ख़ीर है शीरीं-सुख़नी पर मौक़ूफ़
कुछ करामत नहीं जादू नहीं एजाज़ नहीं

दस्त-ए-क़ुदरत ने मुझे आप बनाया है तो फिर
कौन सा काम है मेरा कि ख़ुदा-साज़ नहीं

Read More...