न कोई वा’दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
ye na meri kismat
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
teri deed hain
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
gulo me rang bhare
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
maula ya salleh wasallam
सहर का वक़्त था मा’सूम कलियाँ मुस्कुराती थीं
हवाएं ख़ैर-मक़दम के तराने गुनगुनाती थी
अभी जिब्रील उतरे भी न थे काअ़बे के मिम्बर से
के इतने में सदा आई ये अब्दुल्लाह के घर से
मुबारक हो ! शहे-हर-दोसरा तशरीफ़ ले आए
मुबारक हो ! मुहम्मद मुस्तफा तशरीफ़ ले आए
मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि
मुह़म्मदुन सय्यिदुल-कौनैनी वस्सक़लयनि
वल्फरीक़यनि मिन उ़र्बि-व्व-मिन अ़जमी
मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि
वो मुह़म्मद फ़ख़्रे-आलम, हादी-ए-कुल-इन्स-ओ-जां
सरवरे-कोनैन, सुल्ताने-अरब, शाहे-अजम
एक दिन जिब्रील से कहने लगे शाहे-उमम
तूमने देखा है जहां, बतलाओ तो कैसे हैं हम?
अर्ज़ की जिब्रील ने ए शाहे-दीं ! ए मोह़तरम !
आपका कोई मुमासिल ही नहीं रब की क़सम
मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि
रसूलल्लाह, ह़बीबल्लाह, इमामल-मुर्सलीन
रसूलल्लाह, ह़बीबल्लाह, इमामल-मुर्सलीन
हुवल-ह़बीबुल्लज़ी तुरजा शफ़ाअ़तुहु
लिकुल्लि हौलि-म्मिनल-अहवालि मुक़्तह़िमि
मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि
मेरे मौला सदा तह़िय्यतो-दुरूद के गजरे
अपने मह़बूब पर जो है तेरी तख़लीक़ बेहतरीं
उसी महबूब से वाबस्ता उम्मीदे-शफ़ाअ़त है
के हर हिम्मत-शिकन-मुश्किल में जिस ने दस्तगीरी की
न कोई आप जैसा था, न कोई आप जैसा है
कोई युसूफ से पूछे मुस्तफ़ा का हुस्न कैसा है
ज़मीनो-आसमां में कोई भी मिसाल ना मिली
मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि
रसूलल्लाह, ह़बीबल्लाह, इमामल-मुर्सलीन
रसूलल्लाह, ह़बीबल्लाह, इमामल-मुर्सलीन
या रब्बि बिल-मुस्त़फ़ा बल्लिग़ मक़ास़िदना
वग़फिर लना मा मद़ा या वासिअ़ल-करमी
मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि
mai zindagi ka sath
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
hosh balo ko khabar kya
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
yu to marne ke liye
यूँ तो मरने के लिए ज़हर सभी पीते हैं
ज़िंदगी तेरे लिए ज़हर पिया है मैं ने
Zindagi tume mujhe
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
jala ke mishleh jaha
जला के मिशअल-ए-जाँ हम जुनूँ-सिफ़ात चले
जो घर को आग लगाए हमारे साथ चले
दयार-ए-शाम नहीं मंज़िल-ए-सहर भी नहीं
अजब नगर है यहाँ दिन चले न रात चले
हमारे लब न सही वो दहान-ए-ज़ख़्म सही
वहीं पहुँचती है यारो कहीं से बात चले
सुतून-ए-दार पे रखते चलो सरों के चराग़
जहाँ तलक ये सितम की सियाह रात चले
हुआ असीर कोई हम-नवा तो दूर तलक
ब-पास-ए-तर्ज़-ए-नवा हम भी साथ साथ चले
बचा के लाए हम ऐ यार फिर भी नक़्द-ए-वफ़ा
अगरचे लुटते रहे रहज़नों के हाथ चले
फिर आई फ़स्ल कि मानिंद बर्ग-ए-आवारा
हमारे नाम गुलों के मुरासलात चले
क़तार-ए-शीशा है या कारवान-ए-हम-सफ़राँ
ख़िराम-ए-जाम है या जैसे काएनात चले
भुला ही बैठे जब अहल-ए-हरम तो ऐ ‘मजरूह’
बग़ल में हम भी लिए इक सनम का हाथ चले