Kabhi Samt-e-Gaib si Kya Hua

कभी सम्त-ए-ग़ैब सीं क्या हुआ कि चमन ज़ुहूर का जल गया
मगर एक शाख़-ए-निहाल-ए-ग़म जिसे दिल कहो सो हरी रही