aa jao gunahgaro

आ जाओ गुनहगारो, बे-ख़ौफ़ चले आओ
सरकार की रहमत तो है आम मदीने में

दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं
हसीं दुनिया के सब मंज़र निग़ाहें भूल जाती हैं

दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं
दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं

मिले जो भीक आक़ा के दरे दौलत से मंगतों को
तो शाहाने ज़माना की सखाएँ भूल जाती हैं

दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं
दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं

जो साइल मोहसिने आज़म के एहसां याद रखते हैं
उन्हें सब ताजदारों की अताएँ भूल जाती हैं

दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं
दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं

जो चूमे नक़्शे पा उनके सुरूरे क़ल्ब मिलता है
हो निकली दर्द में जितनी वो आहें भूल जाती हैं

दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं
दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं

छुपा लेते हैं जिस को भी मेरे सरकार दामन में
उन्हें आग़ोशे मादर की पनाहें भूल जाती हैं

दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं
दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं

बसा हो नज़र में जिस की रुखे महबूब का जल्वा
उसे शम्सो क़मर की सब ज़ियाएँ भूल जाती हैं

दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं
दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं

मैं देखूं अपने जुर्मो को तो दिल मेरा दहल जाए
जो रहमत उनकी याद आई सजाएं भूल जाती हैं

दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं
दरे सरकार पे जा कर ख़ताएँ भूल जाती हैं

सुनू जब नात मैं अहमद शबे असरा के दूल्हा की
मुझे अग़्यार की सिफ़्तो सनाएँ भूल जाती है