Sakiya to ne mere zarf ko samjha kya

साक़िया तू ने मिरे ज़र्फ़ को समझा क्या है
ज़हर पी लूँगा तिरे हाथ से सहबा क्या है

मैं चला आया तिरा हुस्न-ए-तग़ाफ़ुल ले कर
अब तिरी अंजुमन-ए-नाज़ में रक्खा क्या है

न बगूले हैं न काँटे हैं न दीवाने हैं
अब तो सहरा का फ़क़त नाम है सहरा क्या है

हो के मायूस-ए-वफ़ा तर्क-ए-वफ़ा तो कर लूँ
लेकिन इस तर्क-ए-वफ़ा का भी भरोसा क्या है

कोई पाबंद-ए-मोहब्बत ही बता सकता है
एक दीवाने का ज़ंजीर से रिश्ता क्या है

साक़िया कल के लिए मैं तो न रक्खूँगा शराब
तेरे होते हुए अंदेशा-ए-फ़र्दा क्या है

मेरी तस्वीर-ए-ग़ज़ल है कोई आईना नहीं
सैकड़ों रुख़ हैं अभी आप ने देखा क्या है

साफ़-गोई में तो सुनते हैं ‘फ़ना’ है मशहूर
देखना ये है तिरे मुँह पे वो कहता क्या है