nigahe dar pe lagi hai

निगाहें दर पे लगी हैं उदास बैठे हैं
किसी के आने की हम ले के आस बैठे हैं

नज़र उठा के कोई हम को देखता भी नहीं
अगरचे बज़्म में सब रू-शनास बैठे हैं

इलाही क्या मिरी रुख़्सत का वक़्त आ पहुँचा
ये चारासाज़ मिरे क्यूँ उदास बैठे हैं

इलाही क्यूँ तन-ए-मुर्दा में जाँ नहीं आती
वो बे-नक़ाब हैं तुर्बत के पास बैठे हैं