mujhko yar ne jane na diya

उस सम्त मुझ को यार ने जाने नहीं दिया
इक और शहर-ए-यार में आने नहीं दिया

कुछ वक़्त चाहते थे कि सोचें तिरे लिए
तू ने वो वक़्त हम को ज़माने नहीं दिया

मंज़िल है उस महक की कहाँ किस चमन में है
उस का पता सफ़र में हवा ने नहीं दिया

रोका अना ने काविश-ए-बे-सूद से मुझे
उस बुत को अपना हाल सुनाने नहीं दिया

है जिस के बा’द अहद-ए-ज़वाल-आश्ना ‘मुनीर’
इतना कमाल हम को ख़ुदा ने नहीं दिया