Mere raste me maikada pada

जब मेरे रास्ते में कोई मय-कदा पड़ा
इक बार अपने ग़म की तरफ़ देखना पड़ा

तर्क-ए-तअल्लुक़ात को इक लम्हा चाहिए
लेकिन तमाम उम्र मुझे सोचना पड़ा

इक तिश्ना-लब ने छीन लिया बढ़ के जाम-ए-मय
साक़ी समझ रहा था सभी को गिरा-पड़ा

आए थे पूछते हुए मयख़ाने का पता
साक़ी से लेकिन अपना पता पूछना पड़ा

यूँ जगमगा रहा है मिरा नक़्श-ए-पा ‘फ़ना’
जैसे हो रास्ते में कोई आइना पड़ा