jab bhi do aasho nikle

जब भी दो आँसू निकल कर रह गए
दर्द के उनवाँ बदल कर रह गए

कितनी फ़रियादें लबों पर रुक गईं
कितने अश्क आहों में ढल कर रह गए

रुख़ बदल जाता मिरी तक़दीर का
आप ही तेवर बदल कर रह गए

खुल के रोने की तमन्ना थी हमें
एक दो आँसू निकल कर रह गए

ज़िंदगी भर साथ देना था जिन्हें
दो क़दम हमराह चल कर रह गए

तेरे अंदाज़-ए-‘तबस्सुम’ का फ़ुसूँ
हादसे पहलू बदल कर रह गए