Insa Ke Bas Ka Kaam Nhi

अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इन्सान के बस का काम नहीं
फ़ैज़ाने-मोहब्बत आम सही, इर्फ़ाने-मोहब्बत आम नहीं

ये तूने कहा क्या ऐ नादाँ फ़ैयाज़ी-ए-क़ुदरत आम नहीं
तू फ़िक्रो-नज़र तो पैदाकर, क्या चीज़ है जो इनआम नहीं

यारब ये मुकामे-इश्क़ है क्या गो दीदा-ओ-दिल नाकाम नहीं
तस्कीन है और तस्कीन नहीं आराम है और आराम नहीं

आना है जो बज़्मे-जानाँ में पिन्दारे-ख़ुदी को तोड़ के आ
ऐ होशो-ख़िरद के दीवाने याँ होशो-ख़िरद का काम नहीं

इश्क़ और गवारा ख़ुद कर ले बेशर्त शिकस्ते-फ़ाश अपनी
दिल की भी कुछ उनके साज़िश है तन्हा ये नज़र का काम नहीं

सब जिसको असीरी कहते हैं वो तो है असीरी ही लेकिन
वो कौन-सी आज़ादी है जहाँ, जो आप ख़ुद अपना दाम नहीं