Hamara Azme Safar kab kidhar ka ho jaye

हमारा अज्म़ -ए – सफ़र कब किधर का हो जाये
यह वो नहीं जो किसी रहगुज़र का हो जाये

खुली हवाओं में उड़ना तो उसकी फ़ितरत है
परिन्दा क्यों किसी शाख़ – ए – शजर का हो जाये