Dil ki Awaaz me Awaaz milate rahe

दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए
जागते रहिए ज़माने को जगाते रहिए

दौलत-ए-इश्क़ नहीं बाँध के रखने के लिए
इस ख़ज़ाने को जहाँ तक हो लुटाते रहिए

ज़िंदगी भी किसी महबूब से कुछ कम तो नहीं
प्यार है उस से तो फिर नाज़ उठाते रहिए

ज़िंदगी दर्द की तस्वीर न बनने पाए
बोलते रहिए ज़रा हँसते हँसाते रहिए

रूठना भी है हसीनों की अदा में शामिल
आप का काम मनाना है मनाते रहिए

फूल बिखराता हुआ मैं तौ चला जाऊँगा
आप काँटे मिरी राहों में बिछाते रहिए

बेवफ़ाई का ज़माना है मगर आप ‘हफ़ीज़’
नग़्मा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा सब को सुनाते रहिए

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Jana Kaha tha aur Kaha se chale the hum

जाने कहाँ थे और चले थे कहाँ से हम
बेदार हो गए किसी ख़्वाब-ए-गिराँ से हम

ऐ नौ-बहार-ए-नाज़ तिरी निकहतों की ख़ैर
दामन झटक के निकले तिरे गुल्सिताँ से हम

पिंदार-ए-आशिक़ी की अमानत है आह-ए-सर्द
ये तीर आज छोड़ रहे हैं कमाँ से हम

आओ ग़ुबार-ए-राह में ढूँडें शमीम-ए-नाज़
आओ ख़बर बहार की पूछें ख़िज़ाँ से हम

आख़िर दुआ करें भी तो किस मुद्दआ’ के साथ
कैसे ज़मीं की बात कहें आसमाँ से हम

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Hath khali Hai tere sahar se ja rahe hai

हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते

अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते

अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत कर के
जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते

रेंगने की भी इजाज़त नहीं हम को वर्ना
हम जिधर जाते नए फूल खिलाते जाते

मैं तो जलते हुए सहराओं का इक पत्थर था
तुम तो दरिया थे मिरी प्यास बुझाते जाते

मुझ को रोने का सलीक़ा भी नहीं है शायद
लोग हँसते हैं मुझे देख के आते जाते

हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते

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Asar dekha jab dua raat bhar ki

असर देखा दुआ जब रात भर की
ज़िया कुछ कुछ है तारों में सहर की

हुए रुख़्सत जहाँ से सुब्ह होते
कहानी हिज्र की यूँ मुख़्तसर की

तड़प उट्ठे लहद के सोने वाले
ज़मीं की सम्त क्यूँ तुम ने नज़र की

सहर देखें ये हसरत ले गए हम
बताएँ क्या तुम्हें क्यूँकर सहर की

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Bana Gulab to kate chubha gya

बना गुलाब तो काँटे चुभा गया इक शख़्स
हुआ चराग़ तो घर ही जला गया इक शख़्स

तमाम रंग मिरे और सारे ख़्वाब मिरे
फ़साना थे कि फ़साना बना गया इक शख़्स

मैं किस हवा में उड़ूँ किस फ़ज़ा में लहराऊँ
दुखों के जाल हर इक सू बिछा गया इक शख़्स

पलट सकूँ ही न आगे ही बढ़ सकूँ जिस पर
मुझे ये कौन से रस्ते लगा गया इक शख़्स

मोहब्बतें भी अजब उस की नफ़रतें भी कमाल
मिरी ही तरह का मुझ में समा गया इक शख़्स

मोहब्बतों ने किसी की भुला रखा था उसे
मिले वो ज़ख़्म कि फिर याद आ गया इक शख़्स

खुला ये राज़ कि आईना-ख़ाना है दुनिया
और उस में मुझ को तमाशा बना गया इक शख़्स

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Jawani Zindagi hai na tum samjhe na hum

जवानी ज़िंदगानी है न तुम समझे न हम समझे
ये इक ऐसी कहानी है न तुम समझे न हम समझे

हमारे और तुम्हारे वास्ते में इक नया-पन था
मगर दुनिया पुरानी है न तुम समझे न हम समझे

अयाँ कर दी हर इक पर हम ने अपनी दास्तान-ए-दिल
ये किस किस से छुपानी है न तुम समझे न हम समझे

जहाँ दो दिल मिले दुनिया ने काँटे बो दिए अक्सर
यही अपनी कहानी है न तुम समझे न हम समझे

मोहब्बत हम ने तुम ने एक वक़्ती चीज़ समझी थी
मोहब्बत जावेदानी है न तुम समझे न हम समझे

गुज़ारी है जवानी रूठने में और मनाने में
घड़ी-भर की जवानी है न तुम समझे न हम समझे

मता-ए-हुस्न-ओ-उल्फ़त पर यक़ीं कितना था दोनों को
यहाँ हर चीज़ फ़ानी है न तुम समझे न हम समझे

अदा-ए-कम-निगाही ने किया रुस्वा मोहब्बत को
ये किस की मेहरबानी है न तुम समझे न हम समझे

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Fakirana aaye sada kar chale

फ़क़ीराना आए सदा कर चले
कि म्याँ ख़ुश रहो हम दुआ कर चले

जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम
सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले

शिफ़ा अपनी तक़दीर ही में न थी
कि मक़्दूर तक तो दवा कर चले

पड़े ऐसे अस्बाब पायान-ए-कार
कि नाचार यूँ जी जला कर चले

वो क्या चीज़ है आह जिस के लिए
हर इक चीज़ से दिल उठा कर चले

कोई ना-उमीदाना करते निगाह
सो तुम हम से मुँह भी छुपा कर चले

बहुत आरज़ू थी गली की तिरी
सो याँ से लहू में नहा कर चले

दिखाई दिए यूँ कि बे-ख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले

जबीं सज्दा करते ही करते गई
हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले

परस्तिश की याँ तक कि ऐ बुत तुझे
नज़र में सभों की ख़ुदा कर चले

झड़े फूल जिस रंग गुलबुन से यूँ
चमन में जहाँ के हम आ कर चले

न देखा ग़म-ए-दोस्ताँ शुक्र है
हमीं दाग़ अपना दिखा कर चले

गई उम्र दर-बंद-ए-फ़िक्र-ए-ग़ज़ल
सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले

कहें क्या जो पूछे कोई हम से ‘मीर’
जहाँ में तुम आए थे क्या कर चले

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Hijab door tumhara shabab kr dega

हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा
ये वो नशा है तुम्हें बे-हिजाब कर देगा

मिरा ख़याल मुझे कामयाब कर देगा
ख़ुदा इसी को ज़ुलेख़ा का ख़्वाब कर देगा

मिरी दुआ को ख़ुदा मुस्तजाब कर देगा
तिरा ग़ुरूर मुझे कामयाब कर देगा

ये दाग़ खाए हैं जिस के फ़िराक़ में हम ने
वो इक नज़र में उन्हें आफ़्ताब कर देगा

किया है जिस के लड़कपन ने दिल मिरा टुकड़े
कलेजा ख़ून अब उस का शबाब कर देगा

सुनी नहीं ये मसल घर का भेदी लंका ढाए
तुझे तो दिल की ख़बर इज़्तिराब कर देगा

न देखना कभी आईना भूल कर देखो
तुम्हारे हुस्न का पैदा जवाब कर देगा

किसी के हिज्र में इस दर्द से दुआ माँगी
निदाएँ आईं ख़ुदा कामयाब कर देगा

ग़म-ए-फ़िराक़ में गिर्ये को शग़्ल समझा था
ख़बर न थी मिरी मिट्टी ख़राब कर देगा

किसे ख़बर थी तिरे ज़ुल्म के लिए अल्लाह
मुझी को रोज़-ए-अज़ल इंतिख़ाब कर देगा

उठा न हश्र के फ़ित्ना को चाल से नादाँ
तिरे शहीद का बे-लुत्फ़ ख़्वाब कर देगा

वो गालियाँ हमें दें और हम दुआएँ दें
ख़जिल उन्हें ये हमारा जवाब कर देगा

जवाब-ए-साफ़ न दे मुझ को ये वो आफ़त है
मिरे सुकून को भी इज़्तिराब कर देगा

कहीं छुपाए से छुपता है लाल गुदड़ी में
फ़रोग़-ए-हुस्न तुझे बे-नक़ाब कर देगा

तिरी निगाह से बढ़ कर है चर्ख़ की गर्दिश
मुझे तबाह ये ख़ाना-ख़राब कर देगा

डुबोएगी मुझे ये चश्म-ए-तर मोहब्बत में
ख़राब काम मिरा इज़्तिराब कर देगा

रक़ीब नाम न ले इश्क़ का जता देना
ये शोला वो है जला कर कबाब कर देगा

वफ़ा तो ख़ाक करेगा मिरा उदू तुम से
वफ़ा के नाम की मिट्टी ख़राब कर देगा

अजीब शख़्स है पीर-ए-मुग़ाँ से मिल ज़ाहिद
नशे में चूर तुझे बे-शराब कर देगा

बड़ों की बात बड़ी है हमें नहीं बावर
जो आसमाँ से न होगा हबाब कर देगा

भलाई अपनी है सब की भलाई में ‘बेख़ुद’
कभी हमें भी ख़ुदा कामयाब कर देगा

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Raunako par hai bahare tere diwane ki

रौनक़ों पर हैं बहारें तिरे दीवानों से
फूल हँसते हुए निकले हैं निहाँ-ख़ानों से

लाख अरमानों के उजड़े हुए घर हैं दिल में
ये वो बस्ती है कि आबाद है वीरानों से

लाला-ज़ारों में जब आती हैं बहारें साक़ी
आग लग जाती है ज़ालिम तिरे पैमानों से

अब कोई दैर में उल्फ़त का तलबगार नहीं
उठ गई रस्म-ए-वफ़ा हाए सनम-ख़ानों से

पास आते गए जिस दर्जा बयाबानों के
दूर होते गए हम और बयाबानों से

अब के हमराह गुज़ारेंगे जुनूँ का मौसम
दामनों की ये तमन्ना है गरेबानों से

इस ज़माने के वो मय-नोश वो बदमस्त हैं हम
पारसा हो के निकलते हैं जो मय-ख़ानों से

हाए क्या चीज़ है कैफ़ियत-ए-सोज़-ए-उल्फ़त
कोई पूछे ये तिरे सोख़्ता-सामानों से

फिर बहार आई जुनूँ-ख़ेज़ हवाएँ ले कर
फिर बुलावे मुझे आते हैं बयाबानों से

ख़ाक किस मस्त-ए-मोहब्बत की है साक़ी इन में
कि मुझे बू-ए-वफ़ा आती है पैमानों से

ग़ैर की मौत पे वो रोते हैं और हम ‘अफ़सर’
ज़हर पीते हैं छलकते हुए पैमानों से

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Aa gaye fer tere armaan mitane ko

आ गए फिर तिरे अरमान मिटाने हम को
दिल से पहले ये लगा देंगे ठिकाने हम को

सर उठाने न दिया हश्र के दिन भी ज़ालिम
कुछ तिरे ख़ौफ़ ने कुछ अपनी वफ़ा ने हम को

कुछ तो है ज़िक्र से दुश्मन के जो शरमाते हैं
वहम में डाल दिया उन की हया ने हम को

ज़ुल्म का शौक़ भी है शर्म भी है ख़ौफ़ भी है
ख़्वाब में छुप के वो आते हैं सताने हम को

चार दाग़ों पे न एहसान जताओ इतना
कौन से बख़्श दिए तुम ने ख़ज़ाने हम को

बात करने की कहाँ वस्ल में फ़ुर्सत ‘बेख़ुद’
वो तो देते ही नहीं होश में आने हम को

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