Urdu Shayari उर्दू-हिन्दी भाषाओँ में कविताएँ लिखी जाती हैं। शायरी में संस्कृत, फ़ारसी, अरबी और तुर्की भाषाओँ के मूल शब्दों का मिश्रित प्रयोग किया जाता है। शायरी लिखने वाले कवि को शायर या सुख़नवर कहा जाता है।

चमन है मक़्तल-ए-नग़्मा अब और क्या कहिए
बस इक सुकूत का आलम जिसे नवा कहिए

असीर-ए-बंद-ए-ज़माना हूँ साहबान-ए-चमन
मिरी तरफ़ से गुलों को बहुत दुआ कहिए

shayari

शेर-ओ-शायरी या सुख़न

Urdu Shayari भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति में ऐसा होता आया है कि अगर कोई शेर लोकप्रीय हो जाए तो वह लोक-संस्कृति में एक सूत्रवाक्य की तरह शामिल हो जाता है। उदाहरण के लिए:

ख़ाक़ हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होने तक – इसका पहला जुमला है ‘हमने माना के तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन’। Urdu Shayari इसमें प्रेमी अपनी प्रेमिका से कह रहा है कि वह जानता है कि उसकी व्याकुलता के बारे में सुनकर वो बिना विलम्ब (तग़ाफ़ुल) किये आ जाएगी |

ये कू-ए-यार ये ज़िंदाँ ये फ़र्श-ए-मय-ख़ाना
इन्हें हम अहल-ए-तमन्ना के नक़्श-ए-पा कहिए

वो एक बात है कहिए तुलू-ए-सुब्ह-ए-नशात
कि ताबिश-ए-बदन ओ शोला-ए-हिना कहिए

और भी ग़म हैं ज़माने में – यह फैज़ अहमद फैज़ के एक शेर का हिस्सा है, पूरा शेर है: ‘मुझ से पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग और भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा’।

यही है जी में कि वो रफ़्ता-ए-तग़ाफुल ओ नाज़
कहीं मिले तो वही क़िस्सा-ए-वफ़ा कहिए

उसे भी क्यूँ न फिर अपने दिल-ए-ज़बूँ की तरह
ख़राब-ए-काकुल ओ आवारा-ए-अदा कहिए

वो एक हर्फ़ है कहिए उसे हिकायत-ए-ज़ुल्फ़
कि शिकवा-ए-रसन ओ बंदिश-ए-बला कहिए

रहे न आँख तो क्यूँ देखिए सितम की तरफ़
कटे ज़बान तो क्यूँ हर्फ़-ए-ना-रवा कहिए

पुकारिए कफ़-ए-क़ातिल को अब मआलिज-ए-दिल
बढ़े जो नाख़ुन-ए-ख़ंजर गिरह-कुशा कहिए

फ़साना जब्र का यारों की तरह क्यूँ ‘मजरूह’
मज़ा तो जब है कि जो कहिए बरमला कहिए