Urdu Gazal यह अरबी साहित्य की प्रसिद्ध काव्य विधा है जो बाद में फ़ारसी, उर्दू, नेपाली और हिंदी साहित्य में भी बेहद लोकप्रिय हुइ। संगीत के क्षेत्र में इस विधा को गाने के लिए इरानी और भारतीय संगीत के मिश्रण से अलग शैली निर्मित हुई।

जी में आता है कि फिर मिज़्गाँ को बरहम कीजिए
कासा-ए-दिल ले के फिर दरयूज़ा-ए-ग़म कीजिए

गूँजता था जिस से कोह-ए-बे-सुतून ओ दश्त-ए-नज्द
गोश-ए-जाँ को फिर उन्हीं नालों का महरम कीजिए

urdu-ghazal

हुस्न-ए-बे-परवा को दे कर दावत-ए-लुत्फ़-ओ-करम
इश्क़ के ज़ेर-ए-नगीं फिर हर दो आलम कीजिए

दौर-ए-पेशीं की तरह फिर डालिए सीने में ज़ख़्म
ज़ख़्म की लज़्ज़त से फिर तय्यार मरहम कीजिए

ग़ज़ल एक ही बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। Urdu Gazal इसके पहले शेर को मतला कहते हैं। ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता कहते हैं। मक़्ते में सामान्यतः शायर अपना नाम रखता है। आम तौर पर ग़ज़लों में शेरों की विषम संख्या होती है

सुब्ह से ता शाम रहिए क़िस्सा-ए-आरिज़ में गुम
शाम से ता सुब्ह ज़िक्र-ए-ज़ुल्फ़-ए-बरहम कीजिए

दिन के हंगामों को कीजिए दिल के सन्नाटे में ग़र्क़
रात की ख़ामोशियों को वक़्फ़-ए-मातम कीजिए

दाइमी आलाम का ख़ूगर बना कर रूह को
ना-गहानी हादसों की गर्दनें ख़म कीजिए

ग़ैज़ की दौड़ी हुई है लहर सी असनाम में
‘जोश’ अब अहल-ए-हरम से दोस्ती कम कीजिए