सूफ़ीवाद या तसव्वुफ़  Tasawwuf  इस्लाम का एक रहस्यवादी पंथ है। इसके पंथियों को सूफ़ी(सूफ़ी संत) कहते हैं। इनका लक्ष्य अपने पंथ की प्रगति एवं सूफीवाद की सेवा रहा है।

मिलाऊँ किस की आँखों से मैं अपनी चश्म-ए-हैराँ को
अयाँ जब हर जगह देखूँ उसी के नाज़-ए-पिन्हाँ को

sufism-kalam

सूफ़ी राजाओं से दान-उपहार स्वीकार करते थे इनके कई तरीक़े या घराने हैं Tasawwuf   जिनमें सोहरावर्दी (सुहरवर्दी), नक्शवंदिया, क़ादिरिया, चिष्तिया, कलंदरिया और शुत्तारिया के नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

तुझे ऐ शम्अ क्या देखें ज़माने को दिखाना है
हमें जूँ काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा और ही चराग़ाँ को

न तन्हा कुछ यही अतफ़ाल दुश्मन हैं दिवानों के
भरे है कोह भी देखा तो याँ पत्थरों से दामाँ को

सूफ़ी नाम के स्रोत को लेकर कोई एक मत नहीं है। कुछ लोग इसे यूनानी सोफ़स (sophos, ज्ञान) से निकला मानते हैं। इस मूल से फिलोसफ़ी, थियोसफ़ी इत्यादि शब्द निकले हैं। सूफी का मूल अर्थ “एक जो ऊन (ṣūf) पहनता है”) है, और इस्लाम का विश्वकोश अन्य व्युत्पन्न परिकल्पनाओं को “अस्थिर” कहता है। ऊनी कपड़े पारंपरिक रूप से तपस्वियों और मनीषियों से जुड़े थे।

झमकते हैं सितारों की तरह सुराख़ हस्ती के
छुपाया गो कि जूँ ख़ुर्शीद में दाग़-ए-नुमायाँ को

न वाजिब ही कहा जावे न सादिक़ मुमतना उस पर
किया तश्ख़ीस कुछ हम ने न हरगिज़ शख़्स-ए-इम्काँ को