दुनियाभर में सदियों से सूफी को एक पंथ माना गया है. Sufism Shayari  इसका उदय कहां और कब हुआ इसका जिक्र किसी धार्मिक किताब में तो नहीं मिलता है पर इतिहास में सूफी संतों की कही बातों को सहेजकर रखा गया है.
सूफ़ीवाद‘ इस्लाम का एक पहलू है. सूफ़ीपंथी शिया और सुन्नी दोनो फ़िरक़ों या इस्लाम मज़हब के मानने वाले दूसरे समुदायों में भी मिल सकते हैं.

तेरी गली में मैं न चलूँ और सबा चले
यूँ ही ख़ुदा जो चाहे तो बंदे की क्या चले

किस की ये मौज-ए-हुस्न हुई जल्वागर कि यूँ
दरिया में जो हबाब थे आँखें छुपा चले

sufism-kalam

गर मसीहा-नफ़सी है यही मुतरिब तो ख़ैर
जी ही जाते हैं चले तेरी हर इक तान के साथ

दाता गंज बख्श अली हजवेरी लाहौरी रज़ियल्लाहू अन्हू ने अरबी के ‘सुफ्फा‘ और हिंदुस्तानी शब्द ”सफाई” से जोड़ उसका बयान यूँ किया है। Sufism Shayari  सूफ़ी वो है जो अपने नश्वर अस्तित्व को परम सत्य की खोज में डूबा दे और दुनियावी ख्वाहिशों से मुक्त होकर आध्यात्मिकता और सत्यता से अपना रिश्ता जोड़ ले।

हम भी जरस की तरह तो इस क़ाफ़िले के साथ
नाले जो कुछ बिसात में थे सो सुना चले

कह बैठियो न ‘दर्द’ कि अहल-ए-वफ़ा हूँ मैं
उस बेवफ़ा के आगे जो ज़िक्र-ए-वफ़ा चले

हदीसों और क़ुरान की आयतों की रोशनी में गुरु अपने शागिर्दों को हज़रत मोहम्मद के किरदार की खूबियां बताते थे. अपने गुरुओं की मदद से वो भी हज़रत मोहम्मद की शख़्सियत की खूबियों से रूबरू होते थे और उन्हें अपनाते थे. हालांकि सूफ़ियों की तादाद बहुत ज़्यादा नहीं है

अपने हाथों के भी मैं ज़ोर का दीवाना हूँ
रात दिन कुश्ती ही रहती है गरेबान के साथ

जो जफ़ा-जू हैं उन्हें संग-दिली लाज़िम है
काम तलवार को रहता है सदा सान के साथ