उसे अब के वफ़ाओं से गुज़र जाने की जल्दी थी
मगर इस बार मुझ को अपने घर जाने की जल्दी थी
इरादा था कि मैं कुछ देर तूफ़ाँ का मज़ा लेता
मगर बेचारे दरिया को उतर जाने की जल्दी थी
मैं अपनी मुट्ठियों में क़ैद कर लेता ज़मीनों को
मगर मेरे क़बीले को बिखर जाने की जल्दी थी
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
वो शाख़ों से जुदा होते हुए पत्तों पे हँसते थे
बड़े ज़िंदा-नज़र थे जिन को मर जाने की जल्दी थी
मैं साबित किस तरह करता कि हर आईना झूटा है
कई कम-ज़र्फ़ चेहरों को उतर जाने की जल्दी थी