भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति में ऐसा होता आया है कि अगर कोई शेर लोकप्रीय हो जाए तो Mohabbat Shayari वह लोक-संस्कृति में एक सूत्रवाक्य की तरह शामिल हो जाता है। उदाहरण के लिए: इब्तेदा-ए-इश्क़ है, रोता है क्या – इसकी दूसरी पंक्ति है, ‘आगे-आगे देखिये होता है क्या’। यह अक्सर किसी मुश्किल काम (जिसमें प्रेम-प्रयास भी है) के करते समय कहा जाता है। इसका अर्थ है कि ‘अभी तो मुश्किल काम शुरू हुआ है, अभी और कठिनाई आएगी, अभी से क्या रोना?

मोहब्बतें जब शुमार करना तो साज़िशें भी शुमार करना
जो मेरे हिस्से में आई हैं वो अज़िय्यतें भी शुमार करना

जलाए रक्खूँगी सुब्ह तक मैं तुम्हारे रस्तों में अपनी आँखें
मगर कहीं ज़ब्त टूट जाए तो बारिशें भी शुमार करना

love Shayari

जो हर्फ़ लौह-ए-वफ़ा पे लिक्खे हुए हैं उन को भी देख लेना
जो राएगाँ हो गईं वो सारी इबारतें भी शुमार करना

Mohabbat Shayari Ka Unmaan

और भी ग़म हैं ज़माने में – यह फैज़ अहमद फैज़ के एक शेर का हिस्सा है, पूरा शेर है: ‘मुझ से पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग और भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा’। इसका अर्थ है कि दुनिया में इतनी मुश्किलें-तकलीफ़ें हैं कि आदमी हर समय आनंद देने वाली चीज़ों पर ध्यान नहीं दे सकता।

ये सर्दियों का उदास मौसम कि धड़कनें बर्फ़ हो गई हैं
जब उन की यख़-बस्तगी परखना तमाज़तें भी शुमार करना

तुम अपनी मजबूरियों के क़िस्से ज़रूर लिखना वज़ाहतों से
जो मेरी आँखों में जल-बुझी हैं वो ख़्वाहिशें भी शुमार करना

वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेशतर वो करम कि था मिरे हाल पर
मुझे सब है याद ज़रा ज़रा तुम्हें याद हो कि न याद हो

वो नए गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो

प्रेमी व प्रेमिका या पति व पत्नी के प्रेम करने व अलग होने की मनोस्थित एक समान है । परन्तु कुछ विवाह जुड़े अलग नहीं हो सकते है क्योंकि उनकी आत्मा ही एक है जो भीतर से एक है वे बाहर से अलग हो ही नहीं सकते है ।