ग़ालिब के लिखे पत्र, जो उस समय प्रकाशित नहीं हुए थे, Mirza Ghalib Urdu Shayari को भी उर्दू लेखन का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है। ग़ालिब को भारत और पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में जाना जाता है। उन्हे दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला का खिताब मिला।
एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिक्खा था सो भी मिट गया
ज़ाहिरन काग़ज़ तिरे ख़त का गलत-बर-दार है
जी जले ज़ौक़-ए-फ़ना की ना-तमामी पर न क्यूँ
हम नहीं जलते नफ़स हर चंद आतिश-बार है
आग से पानी में बुझते वक़्त उठती है सदा
हर कोई दरमांदगी में नाले से नाचार है
उसको यूसुफ़ कहना यानी उसे ग़ुलाम कहना। Mirza Ghalib Urdu Shayari मैंने उसे ऐसा कहा। इससे वो मुझसे नाराज़ भी हो सकता था क्योंकि यूसुफ़ को एक ग़ुलाम की तरह ही ज़ुलेख़ा ने मिस्र के बाज़ार से ख़रीदा था। वो चाहता तो मेरी इस ख़ता की मुझे सज़ा दे सकता था। मेरी ख़ैर हुई के मैं सज़ा से बच गया।
यूसुफ़ उसको कहूं और कुछ न कहे ख़ैर हुई
गर बिगड़ बैठे तो मैं लाइक़-ए-ताज़ीर भी था
शायरी में, इनके ग़ज़ल प्रमुख रूप से तारीफ़ के बिसय बाड़ी आ Mirza Ghalib Urdu Shayari इनहन के संकलन दीवान-ए-ग़ालिब के नाँव से उपलब्ध बा
है वही बद-मस्ती-ए-हर-ज़र्रा का ख़ुद उज़्र-ख़्वाह
जिस के जल्वे से ज़मीं ता आसमाँ सरशार है
मुझ से मत कह तू हमें कहता था अपनी ज़िंदगी
ज़िंदगी से भी मिरा जी इन दिनों बे-ज़ार है
आँख की तस्वीर सर-नामे पे खींची है कि ता
तुझ पे खुल जावे कि इस को हसरत-ए-दीदार है