Mirza Ghalib Urdu Poetry कबिता वर्तमान भारते-पाकिस्तान में ना बलुक पूरा दुनिया में जहाँ भी हिंदुस्तानी मूल के लोग बा ओहिजा पापुलर बा। शायरी में, इनके ग़ज़ल प्रमुख रूप से तारीफ़ के बिसय बाड़ी आ इनहन के संकलन दीवान-ए-ग़ालिब के नाँव से उपलब्ध बा जबकि शायरी के अलावा इनके लिखल चिट्ठी-पतरी सभ, जे ख़तूते-ग़ालिब के नाँव से छपल बा, साहित्य में एगो महत्व के चीज मानल जाला।

कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में
ये सू-ए-ज़न है साक़ी-ए-कौसर के बाब में

हैं आज क्यूँ ज़लील कि कल तक न थी पसंद
गुस्ताख़ी-ए-फ़रिश्ता हमारी जनाब में

जाँ क्यूँ निकलने लगती है तन से दम-ए-समा
गर वो सदा समाई है चंग ओ रबाब में

रौ में है रख़्श-ए-उम्र कहाँ देखिए थमे
ने हाथ बाग पर है न पा है रिकाब में

हमारे कांधों पर बिठाए फ़रिश्तों ने जो समझ में आया हमारे बारे में लिख दिया Mirza Ghalib Urdu Poetry और हम सज़ा के मुस्तहक़ ठहराए गए। फ़रिश्तों से पूछा जाए के जब वो हमारे आमाल लिख रहे थे तब कोई आदमी बतौर गवाह वहां था या नहीं अगर नहीं तो फिर बग़ैर गवाह के सज़ा कैसी।
पकड़े जाते हैं फ़रिश्तों के लिखे पर नाहक़
आदमी कोई हमारा दम-ए-तहरीर भी था

Mirza Ghalib Urdu Poetry उर्दू लेखन का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है। ग़ालिब को भारत और पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में जाना जाता है। उन्हे दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला का खिताब मिला।

है मुश्तमिल नुमूद-ए-सुवर पर वजूद-ए-बहर
याँ क्या धरा है क़तरा ओ मौज-ओ-हबाब में

शर्म इक अदा-ए-नाज़ है अपने ही से सही
हैं कितने बे-हिजाब कि हैं यूँ हिजाब में

है गै़ब-ए-ग़ैब जिस को समझते हैं हम शुहूद
हैं ख़्वाब में हुनूज़ जो जागे हैं ख़्वाब में

‘ग़ालिब’ नदीम-ए-दोस्त से आती है बू-ए-दोस्त
मश्ग़ूल-ए-हक़ हूँ बंदगी-ए-बू-तराब में