Mirza Ghalib Shayari शायरी में आपन मूल नाँव असद (मने कि “शेर”) भी इस्तमाल भी करें। इनके दबीर-उल-मुल्क़नज़्म-उद-दौला के दरबारी उपाधि दिहल गइल रहे। ई अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के समकालीन रहलें आ इनके जिनगिये में मुग़ल लोग के सत्ता के अंत भइल आ दिल्ली में अंगरेजी राज कायम भइल

लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर
मैं हूँ वो क़तरा-ए-शबनम कि हो ख़ार-ए-बयाबाँ पर

न छोड़ी हज़रत-ए-यूसुफ़ ने याँ भी ख़ाना-आराई
सफ़ेदी दीदा-ए-याक़ूब की फिरती है ज़िंदाँ पर

Mirza Ghalib Shayari मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू के एक ऐसे शहंशाह हैं जिनका शेर जिंदगी के किसी भी मौके पर इस्तेमाल किया जा सकता है। यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत है गालिब की कुछ चुनिंदा शायरियां…

हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था
आप आते थे मगर कोई अनागीर भी था

इससे पहले के वर्षो में मीर तक़ी “मीर” भी इसी वजह से जाने जाता है। ग़ालिब के लिखे पत्र, जो उस समय प्रकाशित नहीं हुए थे, Mirza Ghalib Shayari  को भी उर्दू लेखन का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है। ग़ालिब को भारत और पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में जाना जाता है।

नहीं इक़लीम-ए-उल्फ़त में कोई तूमार-ए-नाज़ ऐसा
कि पुश्त-ए-चश्म से जिस की न होवे मोहर उनवाँ पर

मुझे अब देख कर अबर-ए-शफ़क़-आलूदा याद आया
कि फ़ुर्क़त में तिरी आतिश बरसती थी गुलिस्ताँ पर

अगर आने में कुछ देर हुई है तो इसकी कोई न कोई वजह ज़रूर होगी। और वजह इसके सिवा और क्या हो सकती है के Mirza Ghalib Shayari किसी रक़ीब ने तुम्हें रोक लिया होगा। आप तो वक़्त पर आना चाहते थे मगर रास्ते में रक़ीब मिल गया।

ब-जुज़ परवाज़-ए-शौक़-ए-नाज़ क्या बाक़ी रहा होगा
क़यामत इक हवा-ए-तुंद है ख़ाक-ए-शहीदाँ पर

‘असद’ ऐ बे-तहम्मुल अरबदा बे-जा है नासेह से
कि आख़िर बे-कसों का ज़ोर चलता है गरेबाँ पर