लताफ़त बे-कसाफ़त जल्वा पैदा कर नहीं सकती
चमन ज़ंगार है आईना-ए-बाद-ए-बहारी का

हरीफ़-ए-जोशिश-ए-दरिया नहीं खुद्दारी-ए-साहिल
जहाँ साक़ी हो तू बातिल है दा’वा होशियारी का

बहार-ए-रंग-ए-ख़ून-ए-गुल है सामाँ अश्क-बारी का
जुनून-ए-बर्क़ नश्तर है रग-ए-अब्र-ए-बहारी का

बरा-ए-हल्ल-ए-मुश्किल हूँ ज़ि-पा उफ़्तादा-ए-हसरत
बँधा है उक़्दा-ए-ख़ातिर से पैमाँ ख़ाकसारी का

ब-वक़्त-ए-सर-निगूनी है तसव्वुर इंतिज़ारिस्ताँ
निगह को आबलों से शग़्ल है अख़्तर-शुमारी का

‘असद’ साग़र-कश-ए-तस्लीम हो गर्दिश से गर्दूं की
कि नंग-ए-फ़हम-ए-मस्ताँ है गिला बद-रोज़गारी का