Ishq Poetry  काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य के दो और भेद किए गए हैं, महाकाव्य और खंड काव्य। महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई देवता, राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न क्षत्रिय होना चाहिए।

दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें
जानेवाली चीज़ का ग़म क्या करें

पूरे होंगे अपने अरमां किस तरह
शौक़ बेहद वक्त है कम क्या करें

love Shayari

ये मिस्रा नहीं है वज़ीफ़ा मिरा है
ख़ुदा है मोहब्बत मोहब्बत ख़ुदा है

अश्क के अतिरिक्त वृंदावनलाल वर्मा, भगवतीचरण वर्मा, इलाचन्द्र जोशी, अमृतलाल नागर आदि उपन्यासकारों ने भी कहानियों के क्षेत्र में काम किया है। Ishq Poetry किन्तु इनका वास्तविक क्षेत्र उपन्यास है कहानी नहीं। इसके बाद सन १९५० के आसपास से हिन्दी कहानियाँ नए दौर से गुजरने लगीं। आधुनिकता बोध की कहानियाँ या नई कहानी नाम दिया गया।

फिरा कर्ण, त्यों ‘साधु-साधु’ कह उठे सकल नर-नारी,
राजवंश के नेताओं पर पड़ी विपद अति भारी।
द्रोण, भीष्म, अर्जुन, सब फीके, सब हो रहे उदास,
एक सुयोधन बढ़ा, बोलते हुए, ‘वीर! शाबाश!’

मिरे भी सुर्ख़-रू होने का इक मौक़ा निकल आता
ग़म-ए-जानाँ के मलबे से ग़म-ए-दुनिया निकल आता

ये माना मैं थका-हारा मुसाफ़िर हूँ मगर फिर भी
तुम्हारे साथ चलने का कोई रस्ता निकल आता

तिरी यादों की पथरीली ज़मीं शादाब हो जाती
अगर आँखों के सहरा से कोई दरिया निकल आता